World News / UN 2.0 की 21वीं सदी में जरूरत... UfC मॉडल का भारत ने किया विरोध

Zoom News : Mar 21, 2024, 08:29 AM
World News: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के लिये पाकिस्तान की सदस्यता वाले समूह यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस (यूएफसी) समूह द्वारा पेश एक प्रारूप की आलोचना की है. भारत ने इसे स्थायी और गैर-स्थायी सीटों के विस्तार के लिए सदस्य देशों के बहुमत द्वारा समर्थित विचार के खिलाफ बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि 21वीं सदी की दुनिया को संयुक्त राष्ट्र 2.0 की सख्त जरूरत है. यूएफसी में अर्जेंटीना, कनाडा, कोलंबिया, कोस्टा रिका, इटली, माल्टा, मैक्सिको, पाकिस्तान, कोरिया गणराज्य, सैन मारिनो, स्पेन और तुर्किये शामिल हैं. स्थायी सदस्य चीन और इंडोनेशिया पर्यवेक्षक के रूप में समूह में भाग ले रहे हैं.

नए स्थायी सदस्य बनाए जाने का विरोध

यूएफसी समूह सुरक्षा परिषद में नए स्थायी सदस्य बनाए जाने का विरोध करता है. यूएफसी प्रारूप में 26 सीटों वाली एक सुरक्षा परिषद शामिल है, जिसमें केवल अस्थायी, निर्वाचित सदस्यों की वृद्धि होती है. इसमें तत्काल पुनः चुनाव की संभावनाओं के साथ नौ नयी दीर्घकालिक सीटें बनाने का प्रस्ताव है.

भारत इस मॉडल के खिलाफ

संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने सोमवार को यूएनएससी सुधारों पर अंतर सरकारी वार्ता (आईजीएन) की बैठक में इटली द्वारा प्रस्तुत यूएफसी मॉडल के जवाब में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरे अधिक जटिल, अप्रत्याशित और अपरिभाषित हो गए हैं. 21वीं सदी की दुनिया को ऐसे संयुक्त राष्ट्र 2.0 की सख्त जरूरत है जो विश्वसनीय हो, प्रतिनिधित्व पर आधारित हो, सदस्य देशों की जरूरतों और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे तथा शांति और सुरक्षा बनाए रखने में सक्षम हो.

उन्होंने कहा कि यूएफसी जिसमें 12 देश और एक पी5 देश सहित 2 पर्यवेक्षक शामिल हैं, संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देशों द्वारा समर्थित विचार, यानी स्थायी और गैर-स्थायी श्रेणियों में विस्तार के खिलाफ खड़ा है. कंबोज ने पूछा कि यूएफसी मॉडल अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया का प्रतिनिधित्व कैसे करता है.

दोनों श्रेणियों में विस्तार की मांग

अफ्रीका, 54 सदस्यीय एक समूह, दोनों श्रेणियों में विस्तार का आह्वान कर रहा है. उन्होंने कहा कि जब अफ़्रीका स्वयं सदस्यता की दोनों श्रेणियों में विस्तार की मांग कर रहा है, तो क्या यह अनावश्यक नहीं है कि अफ़्रीका को अतीत में जो झेलना पड़ा है वह फिर न हो- कोई और उनकी तरफ से निर्णय ले? मैं यह निर्णय लेने के औचित्य पर आपकी प्रतिक्रिया सुनने के लिए उत्सुक हूं कि दूसरों के साथ क्या अफ्रीका को स्थायी श्रेणी में प्रतिनिधित्व नहीं मिलना चाहिए?

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