- भारत,
- 27-Aug-2025 09:54 PM IST
India-US Tariff War: 27 अगस्त 2025 से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लागू किए गए 50% टैरिफ ने भारत-अमेरिका संबंधों में तल्खी ला दी है। इस कदम ने न केवल दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित किया है, बल्कि भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के एक तीखे बयान ने अमेरिका में हंगामा मचा दिया है। जयशंकर के बयान की अमेरिकी मीडिया में खूब चर्चा हो रही है, और इसके बाद अमेरिकी प्रशासन के रुख में नरमी के संकेत दिखाई दे रहे हैं। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट को भी यह स्वीकार करना पड़ा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और दोनों देश अंततः एक साथ आएंगे।
जयशंकर का बयान: अमेरिका में हड़कंप
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस से तेल खरीदने के अमेरिकी आरोपों पर करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, "अगर अमेरिका को भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने से समस्या है, तो वह भारत से शोधित तेल खरीदना बंद कर दे।" इस बयान ने अमेरिकी प्रशासन को सकते में डाल दिया। अमेरिकी चैनल फॉक्स टीवी पर एक एंकर ने वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट से इस बारे में सवाल किया, "भारत के विदेश मंत्री ने कहा है कि अगर अमेरिका को भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने से समस्या है, तो वह भारत से रिफाइंड तेल खरीदना बंद कर सकता है। इस पर आपका क्या कहना है?" इसके जवाब में बेसेंट ने कहा, "भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। अंततः हम एक साथ आ ही जाएंगे।" बेसेंट का यह बयान दर्शाता है कि अमेरिका भारत के साथ टकराव से बचना चाहता है, क्योंकि भारत के साथ संबंधों का महत्व वह अच्छी तरह समझता है।
अमेरिका ने क्यों लगाया 50% टैरिफ?
अमेरिका का दावा है कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर उसे शोधित कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहा है, जिससे रूस को आर्थिक ताकत मिल रही है। ट्रंप का कहना है कि यह यूक्रेन युद्ध को रोकने के प्रयासों में बाधा बन रहा है। हालांकि, सच्चाई यह है कि अमेरिका भारत से अपने उत्पादों के लिए अधिक बाजार पहुंच और टैरिफ में रियायत चाहता था, जिसे भारत ने ठुकरा दिया। इसके जवाब में ट्रंप ने पहले 7 अगस्त 2025 से 25% टैरिफ लागू किया, और फिर रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त 25% टैरिफ जोड़कर कुल शुल्क 50% कर दिया, जो 27 अगस्त से प्रभावी हो गया।
ट्रंप ने भारत को समझौते के लिए 21 दिन का समय दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी शर्तों को मानने से इनकार कर दिया। सोमवार को अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में पीएम मोदी ने स्पष्ट किया, "हम किसानों, पशुपालकों और लघु उद्योगों के हितों से समझौता नहीं करेंगे। दबाव चाहे जितना बढ़े, हम डटकर सामना करेंगे।" भारत के इस सख्त रुख ने ट्रंप के दांव को कमजोर कर दिया है।
भारत की रणनीति: नए बाजारों की तलाश
भारत ने अमेरिकी टैरिफ का जवाब देने के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश शुरू कर दी है। यूरोप, कनाडा, लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की योजनाएं बन रही हैं। विशेष रूप से समुद्री उत्पाद, चमड़े के सामान और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा, सरकार ने निर्यातकों के लिए $2.8 बिलियन के राहत पैकेज और टैक्स कटौती की घोषणा की है। यह रणनीति दर्शाती है कि भारत अमेरिकी दबाव के सामने झुकने के बजाय अपनी आर्थिक स्वतंत्रता को मजबूत करने पर केंद्रित है।
टैरिफ का आर्थिक प्रभाव
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अनुसार, भारत हर साल अमेरिका को लगभग 86.5 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है, जिसमें से 60.2 अरब डॉलर के निर्यात पर 50% टैरिफ का असर पड़ेगा। विशेष रूप से कपड़ा, रत्न-आभूषण, समुद्री भोजन और चमड़े के सामान जैसे क्षेत्रों में 70% तक निर्यात में कमी की आशंका है। इससे भारत की जीडीपी वृद्धि पर 0.4-1% का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की मजबूत घरेलू मांग, 700 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार और विविध राजनयिक रणनीति इसे इस झटके को झेलने में सक्षम बनाएगी।
अमेरिका में आलोचना और ट्रंप की रणनीति पर सवाल
ट्रंप का यह कदम अमेरिका में भी आलोचनाओं का शिकार हो रहा है। फरीद जकारिया जैसे विशेषज्ञों ने इसे ट्रंप प्रशासन की सबसे बड़ी गलती करार दिया है। भारत जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी के साथ टकराव से अमेरिका को रणनीतिक और आर्थिक नुकसान हो सकता है। भारत ने रूस के साथ अपने व्यापार को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से जोड़ा है, जिसे वैश्विक मंचों पर भी समर्थन मिल रहा है। जयशंकर का बयान और भारत का सख्त रुख इस बात का संकेत है कि भारत दबाव में नहीं झुकेगा।
