अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा। लगाए गए 50% टैरिफ को लेकर अब अमेरिकी संसद में जोरदार प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। यह मामला तब गरमाया जब अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के तीन सदस्यों ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पेश किया, जिसका मुख्य उद्देश्य ट्रंप के इस राष्ट्रीय आपातकाल घोषणा को समाप्त करना है और यह कदम ट्रंप की व्यापार नीति के खिलाफ एक खुला और मुखर विरोध माना जा रहा है, और विश्लेषकों का मानना है कि यह भारत-अमेरिका संबंधों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इन टैरिफ को अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) के तहत लागू किया गया था, जिसमें पहले 25% और फिर अतिरिक्त 25% सेकेंडरी ड्यूटी लगाकर कुल टैरिफ 50% तक पहुंचा दिया गया था। यह अधिनियम राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में व्यापक आर्थिक शक्तियां। प्रदान करता है, लेकिन इसके दुरुपयोग को लेकर अक्सर बहस होती रही है।
प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद और उनकी दलीलें
यह महत्वपूर्ण प्रस्ताव कांग्रेसवुमन डेबोरा रॉस, कांग्रेसमैन मार्क वीसी और भारतीय मूल के सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने मिलकर पेश किया है। इन सांसदों का मानना है कि ट्रंप का यह फैसला न केवल कानूनी रूप से संदिग्ध और अवैध है, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था और आम उपभोक्ताओं के हितों के भी सीधे खिलाफ है और उन्होंने इस बात पर बार-बार जोर दिया कि भारत अमेरिका का एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक साझेदार है, और ऐसे एकतरफा व्यापारिक निर्णय दोनों देशों के बीच के मजबूत और ऐतिहासिक रिश्तों को कमजोर कर सकते हैं। सांसदों ने तर्क दिया कि व्यापारिक संबंध आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित होने चाहिए, न कि एकतरफा दंडात्मक शुल्कों पर।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव की विस्तृत चर्चा
सांसदों ने इन टैरिफ के अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डाला और कांग्रेसवुमन डेबोरा रॉस ने विशेष रूप से नॉर्थ कैरोलाइना राज्य का उदाहरण दिया, जहां की अर्थव्यवस्था भारत के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि भारतीय कंपनियों ने नॉर्थ कैरोलाइना में एक अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिससे हजारों की संख्या में नौकरियां पैदा हुई हैं। ये निवेश विनिर्माण, प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्रों में फैले हुए हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं। ऐसे में भारत पर टैरिफ बढ़ाना सीधे तौर पर अमेरिकी रोजगार और स्थानीय व्यवसायों। को नुकसान पहुंचाता है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है। यह न केवल मौजूदा नौकरियों को खतरे में डालता है, बल्कि भविष्य के। निवेश को भी हतोत्साहित करता है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास बाधित होता है।
उपभोक्ताओं पर महंगाई का बढ़ता बोझ
टेक्सास से सांसद मार्क वीसी ने इन टैरिफ को आम अमेरिकियों पर एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर बताया, जो पहले से ही बढ़ती महंगाई से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी उपभोक्ता पहले से ही भोजन, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं, और ऐसे में भारतीय उत्पादों पर 50% तक का शुल्क लगाने से उनकी जेब पर और बोझ पड़ेगा। यह फैसला आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर सकता है, जिससे परिवारों की क्रय शक्ति कम होगी और जीवन यापन की लागत बढ़ जाएगी। वीसी ने यह भी दोहराया कि भारत अमेरिका का एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक साझेदार है, और इस तरह के व्यापारिक अवरोध दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को कमजोर करते हैं, जिससे वैश्विक मंच पर उनकी संयुक्त क्षमता प्रभावित होती है।
वैश्विक सप्लाई चेन और द्विपक्षीय सहयोग पर असर
भारतीय मूल के सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने भी ट्रंप के टैरिफ को 'काउंटरप्रोडक्टिव' यानी प्रतिकूल बताया। उन्होंने तर्क दिया कि ये टैरिफ वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित करते हैं, जिससे अमेरिकी उद्योगों और श्रमिकों को नुकसान होता है। कई अमेरिकी कंपनियां भारतीय घटकों और तैयार उत्पादों पर निर्भर करती हैं, और इन पर उच्च शुल्क। लगाने से उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को अधिक कीमतों का सामना करना पड़ता है। कृष्णमूर्ति के अनुसार, इन टैरिफ को समाप्त करने से अमेरिका और भारत के बीच। आर्थिक और सुरक्षा सहयोग मजबूत होगा, जो वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को सुचारू बनाने और साझा हितों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया और
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों पर विधायी लगाम
यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी सीनेट में भी ब्राजील पर लगाए गए टैरिफ के खिलाफ द्विदलीय पहल की जा चुकी है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि अमेरिकी कांग्रेस अब राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करके लिए गए एकतरफा व्यापारिक फैसलों पर लगाम लगाना चाहती है और सांसदों का मानना है कि व्यापार नीति जैसे महत्वपूर्ण निर्णय व्यापक विचार-विमर्श और विधायी प्रक्रिया के माध्यम से लिए जाने चाहिए, न कि केवल आपातकालीन घोषणाओं के तहत। यह पहल कार्यकारी शक्ति पर विधायी निरीक्षण को मजबूत करने की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यापार नीतियां देश के दीर्घकालिक हितों के अनुरूप हों और
आगे की राह और भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य
यदि यह प्रस्ताव अमेरिकी संसद में आगे बढ़ता है और पारित हो जाता है, तो भारत पर लगे 50% टैरिफ हटने की राह खुल सकती है।
यह न केवल भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ी राहत होगी,। बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को भी सामान्य करेगा। टैरिफ हटने से भारत-अमेरिका के रिश्तों में नई गर्माहट आ सकती है और दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में अपने सहयोग को और मजबूत कर सकते हैं, जिसमें रक्षा, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। यह घटनाक्रम वैश्विक व्यापार नीतियों में विधायी निरीक्षण के बढ़ते महत्व को भी दर्शाता है, जो भविष्य में अधिक संतुलित और सहयोगात्मक अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। यह दोनों देशों के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा कि उनके आर्थिक। संबंध किसी एकतरफा निर्णय के बजाय साझा मूल्यों और हितों पर आधारित हैं।