- भारत,
- 12-Dec-2025 05:53 PM IST
मेक्सिको ने हाल ही में भारत, चीन, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड जैसी प्रमुख एशियाई अर्थव्यवस्थाओं से आयात होने वाले सामानों पर 50% का भारी-भरकम टैरिफ लगाकर वैश्विक व्यापार परिदृश्य में हलचल मचा दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब मेक्सिको खुद अमेरिका द्वारा लगाए गए 25% टैरिफ और अतिरिक्त शुल्क की धमकियों का सामना कर रहा है। इस कदम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं: मेक्सिको ने यह फैसला क्यों लिया? क्या यह डोनाल्ड ट्रंप के दबाव का परिणाम है और और भारत के निर्यात पर इसका क्या असर पड़ेगा, खासकर जब अमेरिका के साथ कोई ठोस व्यापार समझौता नहीं है? इन जटिल सवालों के जवाब को समझना आवश्यक है।
मेक्सिको सरकार ने इस टैरिफ वृद्धि के पीछे एक आधिकारिक बयान जारी किया है, जिसमें उसने अपने घरेलू उद्योगों के संरक्षण को प्राथमिक कारण बताया है। राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबॉम की सरकार का तर्क है कि यह कदम स्थानीय विनिर्माण इकाइयों और उनमें कार्यरत लोगों की नौकरियों को बचाने के लिए आवश्यक है। मेक्सिको का मानना है कि विदेशों से, विशेषकर एशियाई देशों से आने वाले बहुत सस्ते उत्पादों के कारण घरेलू बाजार में अनुचित प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। इस टैरिफ का उद्देश्य इस प्रतिस्पर्धा को कम करना है, जिससे मेक्सिको की अपनी कंपनियों को भारत सहित अन्य एशियाई देशों से आने वाले सस्ते सामानों के मुकाबले बराबरी का मौका मिल सके। यह नीति विशेष रूप से कार, कपड़े, लोहा, प्लास्टिक, जूते और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं जैसे क्षेत्रों को लक्षित करती है, जहां विदेशी आयात का प्रभुत्व अधिक है। मेक्सिको के अधिकारी इसे व्यापार में गड़बड़ी को दूर करने और विदेशी सामान पर। अपनी निर्भरता कम करने के एक महत्वपूर्ण तरीके के रूप में भी देखते हैं।पर्दे के पीछे की कहानीक्या ट्रंप के आगे झुका मेक्सिको?
हालांकि मेक्सिको ने घरेलू उद्योग संरक्षण का तर्क दिया है, लेकिन कई व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि। इस फैसले के पीछे अमेरिकी दबाव, विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रंप का प्रभाव एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। यह तर्क कुछ हद तक ट्रंप की पिछली व्यापार नीतियों से मिलता-जुलता है, जिन्होंने दुनिया भर में टैरिफ थोपने की वकालत की थी। एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था जो खुद व्यापार पर काफी हद तक निर्भर है, उसका अचानक एशियाई देशों पर उतना ही टैरिफ लगाना जितना अमेरिका ने लगाया है, यह संकेत देता है कि पर्दे के पीछे कुछ और ही चल रहा है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां मेक्सिको ने अमेरिकी नीतियों के समानांतर एक व्यापारिक निर्णय लिया है, या यह कहा जाए कि वह ट्रंप के दबाव के आगे झुक गया है।
