- भारत,
- 07-Aug-2025 07:20 PM IST
Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल भारत की सैन्य ताकत को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया, बल्कि इसने भारत की अंतरराष्ट्रीय दोस्ती की सूची को भी पूरी तरह से बदल दिया है। जो देश पहले मित्रों की सूची में शीर्ष पर थे, वे अब नीचे खिसक गए हैं, और जो नीचे थे, वे ऊपर आ गए हैं। इस नए समीकरण में तीन बड़े नाम उभरकर सामने आए हैं—चीन, रूस और अमेरिका। जहां अमेरिका पहले भारत का सबसे करीबी सहयोगी माना जाता था, अब वह इस सूची में नीचे खिसक गया है। दूसरी ओर, चीन ऊपर आया है, लेकिन सावधानी के साथ, क्योंकि भारत जिनपिंग के देश पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकता। वहीं, रूस, जो हमेशा से भारत का भरोसेमंद दोस्त रहा है, अब इस सूची में शीर्ष पर काबिज है।
रूस: भारत का सदाबहार दोस्त
रूस और भारत की दोस्ती ऐतिहासिक और अटूट रही है। हर मुश्किल घड़ी में रूस ने भारत का साथ दिया है। ऑपरेशन सिंदूर में रूसी हथियारों ने भारत की ताकत को और बढ़ाया। रूस का S-400 एयर डिफेंस सिस्टम भारत के लिए ढाल बनकर खड़ा रहा और पाकिस्तान के कई ड्रोनों को मार गिराया। इस ऑपरेशन ने न केवल भारत की सैन्य क्षमता को मजबूत किया, बल्कि रूस के साथ रिश्तों को और गहरा किया।
पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान रूस ने भारत का खुलकर समर्थन किया। इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों के बीच भी रूस ने भारत का मजबूती से साथ दिया। ट्रंप भारत को रूस से तेल खरीदने से रोकना चाहते हैं, लेकिन मॉस्को का स्पष्ट रुख है कि कोई देश किससे व्यापार करता है, यह उसका अपना फैसला है। ट्रंप की कोशिश भारत और रूस की दोस्ती में दरार डालने की थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उनकी इस मंशा को विफल कर दिया। उल्टे, दोनों देशों की दोस्ती और मजबूत हो रही है।
हाल ही में, जब ट्रंप टैरिफ को लेकर धमकियां दे रहे थे, उसी दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल मॉस्को पहुंचे। डोभाल रूस में रक्षा और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करेंगे। उनके दौरे से पहले रूस के उपसेना प्रमुख ने भारतीय दूत के साथ बैठक की, जो दोनों देशों के बीच बढ़ती नजदीकी का प्रतीक है। यह स्पष्ट है कि ट्रंप के बयानों का भारत-रूस संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ रहा।
अमेरिका: दोस्ती में दरार
डोनाल्ड ट्रंप की बयानबाजी ने भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। ट्रंप भारत-पाकिस्तान सीजफायर का श्रेय लेने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन भारत उनकी इस कोशिश को तवज्जो नहीं दे रहा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यही वजह है कि ट्रंप टैरिफ को लेकर बार-बार नए ऐलान कर रहे हैं। उनके व्यवहार ने भारत को यह समझा दिया है कि अमेरिका अब वह दोस्त नहीं रहा, जो ऑपरेशन सिंदूर से पहले था।
इस साल की शुरुआत में ट्रंप ने पीएम मोदी को बांग्लादेश के लिए खुली छूट दी थी, जिसके बाद भारत-अमेरिका दोस्ती की मिसालें दी जाने लगी थीं। लेकिन ट्रंप के बदलते रवैये ने भारत को चीन की ओर झुकने के लिए मजबूर किया है।
चीन: सतर्कता के साथ बढ़ती नजदीकी
भारत और चीन के बीच संबंधों में हाल के वर्षों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। 2020 की गलवान झड़प के बाद दोनों देश अपने रिश्तों को सुधारने में जुटे हैं। मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हुई है, चीनी पर्यटकों के लिए वीजा जारी किए गए हैं, और सीधी उड़ानें शुरू करने पर विचार चल रहा है। लेकिन भारत अपनी सतर्कता नहीं छोड़ रहा। ऑपरेशन सिंदूर में चीन की भूमिका को उजागर कर भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह ड्रैगन पर पूरा भरोसा नहीं करता।
हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय दौरे बढ़े हैं। जून में NSA अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन का दौरा किया। जुलाई में विदेश मंत्री एस. जयशंकर वहां गए। अब पीएम मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन की यात्रा करेंगे, जहां वे SCO समिट में हिस्सा लेंगे। इस दौरान उनकी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी हो सकती है। दोनों नेताओं की मुलाकात इससे पहले 23 अक्टूबर, 2024 को रूस के कजान में हुई थी।
पीएम मोदी का यह दौरा सात साल बाद हो रहा है। इससे पहले वे 2018 में चीन गए थे। यह दौरा भारत-चीन संबंधों में सुधार का संकेत देता है, लेकिन भारत की सतर्कता बरकरार है। चीन ने अतीत में कई बार भारत को धोखा दिया है, इसलिए वह कभी भी भारत की फ्रेंडलिस्ट में शीर्ष पर नहीं हो सकता।