Indigo Crisis / क्या इंडिगो संकट बड़ी समस्या का संकेत- भारत के प्रमुख क्षेत्रों में एकाधिकार का बढ़ता खतरा

भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो का हालिया परिचालन संकट देश के एविएशन सेक्टर में कम प्रतिस्पर्धा को उजागर करता है। यह समस्या दूरसंचार, एयरपोर्ट और रिफाइनिंग जैसे अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भी व्याप्त है, जहां कुछ ही कंपनियों का दबदबा है, जिससे अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरे पैदा हो रहे हैं।

भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन, इंडिगो, नवंबर में एक बड़े परिचालन संकट में फंस गई, जब पायलटों और चालक दल के सदस्यों को अधिक आराम देने के लिए एक नया नियम लागू किया गया। यह नियम, जिसका उद्देश्य उड़ान सुरक्षा को बढ़ाना था, एयरलाइन के पहले से ही व्यस्त और जटिल उड़ान कार्यक्रम को बाधित कर गया। दिसंबर के पहले सप्ताह तक, स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो गई, जिसके परिणामस्वरूप एक ही दिन में 1,000 से अधिक उड़ानें रद्द कर दी गईं और इस व्यापक व्यवधान ने 10 लाख से अधिक यात्रियों की बुकिंग को प्रभावित किया, जिससे देश भर में व्यापक निराशा और अराजकता फैल गई। यात्रियों की परेशानी और बिगड़ते हालात को देखते हुए, सरकार को एयरलाइन की कार्यप्रणाली की गहन जांच का आदेश देना पड़ा। यह घटना भारत के तेजी से बढ़ते विमानन क्षेत्र में अंतर्निहित कमजोरियों को उजागर करती है, जो एक ही कंपनी की विफलता के कारण इतने बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकता है।

बाजार में कम प्रतिस्पर्धा का परिणाम

यह सवाल उठता है कि दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन क्षेत्र, महज एक कंपनी की गड़बड़ी से कैसे ठप हो सकता है? इसका सीधा जवाब भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा की कमी में निहित है। 2007 में अपनी स्थापना के बाद से, इंडिगो ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है, जिससे उसे भारतीय घरेलू विमानन बाजार का 64% से अधिक हिस्सा मिल गया है। इसकी तुलना में, एअर इंडिया के पास लगभग 25% हिस्सेदारी है, जो बाजार में अन्य खिलाड़ियों के लिए बहुत कम जगह छोड़ती है। इस तरह की एकाग्रता का मतलब है कि जब इंडिगो जैसी प्रमुख एयरलाइन को परिचालन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, तो इसका प्रभाव पूरे देश में महसूस होता है, जिससे यात्रियों के लिए विकल्प सीमित हो जाते हैं और समग्र प्रणाली की लचीलापन कम हो जाती है। यात्रियों की परेशानी और व्यापक व्यवधान के बाद, इंडिगो के प्रबंधन ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी और। खराब मौसम तथा सॉफ्टवेयर अपडेट जैसे कई कारणों को उड़ानों में देरी और रद्द होने के लिए जिम्मेदार ठहराया।

सरकारी हस्तक्षेप और प्रतिक्रिया

देशभर में यात्रियों की बढ़ती परेशानी के बाद, सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। विमानन बाजार के सबसे बड़े हिस्से पर काबिज इंडिगो की गड़बड़ी से देशभर के हवाई अड्डे प्रभावित हुए, जिससे सरकार को अपना नया सुरक्षा नियम अस्थायी रूप से वापस लेना पड़ा। यह कदम यात्रियों की तत्काल राहत के लिए उठाया गया था, लेकिन इसने नियामक ढांचे की कमजोरियों को भी उजागर किया। इस गड़बड़ी पर शेयर बाजार ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी, जहां इंडिगो के शेयर में करीब 15% की गिरावट आई और उसकी मार्केट वैल्यू भी 4. 8 अरब डॉलर (लगभग 43 हजार करोड़ रुपए) कम हो गई। इसके बाद सरकार ने सख्ती दिखाई। नागरिक उड्डयन मंत्री के. राम मोहन नायडू ने संसद में कहा कि कोई भी एयरलाइन, चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो, गलत योजनाओं से यात्रियों को इतना परेशान नहीं कर सकती। नायडू ने इस मसले पर 'सख्त कार्रवाई' का वादा किया, ताकि हर एयरलाइन के लिए एक मिसाल कायम हो। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में हवाई यात्रा की मांग तेजी से बढ़ रही है, इसलिए हमें कम से। कम पांच बड़ी एयरलाइंस की जरूरत है ताकि बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे और ऐसी स्थितियों से बचा जा सके।

अन्य प्रमुख क्षेत्रों में एकाधिकार की समस्या

इंडिगो का यह बुरा हफ्ता भारत की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी समस्या को उजागर करता है: प्रमुख क्षेत्रों में एकाधिकार या कुछ कंपनियों का दबदबा। हवाई क्षेत्र में इतनी कम प्रतिस्पर्धा और कुछ ही कंपनियों के हाथ में इतना ज्यादा नियंत्रण अब भारत में आम हो गया है। यह प्रवृत्ति केवल विमानन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के कई अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी देखी जा रही है। उदाहरण के लिए, भारत के सबसे फायदेमंद हवाई अड्डे केवल दो कंपनियों द्वारा चलाए जाते हैं, जो हवाई यात्रा के बुनियादी ढांचे पर उनके नियंत्रण को दर्शाता है। इसी तरह, देश के 40% ईंधन की रिफाइनिंग भी केवल दो कंपनियों द्वारा की जाती है, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में भी एकाधिकार की स्थिति बनी हुई है। इनके अलावा, दूरसंचार, ई-कॉमर्स, बंदरगाह और स्टील जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी कुछ ही बड़ी कंपनियां हावी हैं, जो बाजार में प्रतिस्पर्धा की कमी का संकेत देती हैं।

दूरसंचार बाजार का उदाहरण

दूरसंचार बाजार भी इस एकाधिकार प्रवृत्ति का एक प्रमुख उदाहरण है। आठ महीने पहले, भारत की दो बड़ी दूरसंचार कंपनियों, जियो और एयरटेल के पीछे तीसरी कंपनी वोडाफोन आइडिया थी, जो सरकार को दिए जाने वाले भारी टैक्स से दबी हुई थी। मार्च में, सरकार ने उस कर्ज का एक बड़ा हिस्सा अपनी हिस्सेदारी में बदल दिया और अब सरकार का कंपनी में 49% हिस्सा है। आज की स्थिति देखकर साफ है कि भारत में कम से कम तीन नेशनल टेलीकॉम कंपनियां बनी रहेंगी,।

हालांकि वोडाफोन आइडिया अभी भी बकाया शुल्क नहीं चुका पाई है और संचार मंत्रालय से मदद मांगती रहती है। सरकार की यह दोहरी भूमिका, जिसमें वह एक नियामक और एक हितधारक दोनों के रूप। में कार्य करती है, इंडिगो जैसे संकट में उसके रिस्पॉन्स का एक तरीका सुझाती है। जब उड्डयन मंत्री ने कहा कि भारत को पांच बड़ी एयरलाइंस चाहिए, तो इसका मतलब था कि उनके बॉस यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाजार में मोनोपॉली को एक समस्या मानकर उससे निपटना शुरू कर सकते हैं। यह एक संकेत है कि सरकार अब इस मुद्दे की गंभीरता को पहचान रही है और बाजार में अधिक संतुलन लाने की दिशा में कदम उठा सकती है।

नई दिल्ली के पास ओ. पी और जिंदल यूनिवर्सिटी के राजनीतिक अर्थशास्त्री रोहित ज्योतिष कहते हैं कि एकाधिकार का मतलब है कि आपके पास सिर्फ दो फेलियर पॉइंट हैं, यही इस तरह के बाजार का सबसे बड़ा खतरा है। यदि इन दो प्रमुख खिलाड़ियों में से कोई एक विफल हो जाता है, तो इसका। पूरे क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि इंडिगो संकट ने दिखाया। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र प्रोफेसर और भारत के केंद्रीय बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के 2023 के एक पेपर। के अनुसार, 2015 से भारत के पांच सबसे बड़े समूहों की कॉर्पोरेट आय और संपत्तियों में हिस्सा तेजी से बढ़ा है। यह दर्शाता है कि बड़ी कंपनियां लगातार बड़ी होती जा रही हैं,।

जबकि छोटी कंपनियों के लिए बाजार में टिके रहना मुश्किल हो रहा है। बड़ी कंपनियों के बड़े होने और छोटी कंपनियों के बंद होने के कई कारण हैं और बड़ी कंपनियां स्केल की बचत से कम खर्च कर सकती हैं, यानी उनकी लागत कम होती है, जिससे उन्हें प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलती है। लेकिन इससे कंपनियों को ग्राहकों से ज्यादा पैसे वसूलकर मुनाफा बढ़ाने की ताकत भी मिलती है, जिससे उपभोक्ताओं को नुकसान होता है।

राजनीतिक प्रभाव और इनोवेशन पर असर

ज्योतिष यह भी कहते हैं कि बड़ी कंपनियां राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सकती हैं, जिससे इनोवेशन रुक जाता है और नीतियां ऐसी बनती हैं जो बड़ी कंपनियों को और फायदा पहुंचाती हैं। यह एक दुष्चक्र बनाता है जहां बड़ी कंपनियां अपने आकार और प्रभाव का उपयोग करके अपनी स्थिति को और मजबूत करती हैं, जबकि नई और छोटी कंपनियों के लिए बाजार में प्रवेश करना या सफल होना लगभग असंभव हो जाता है। इस तरह का माहौल रचनात्मकता और नए विचारों को हतोत्साहित। करता है, जो किसी भी गतिशील अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है। नई कंपनियों के लिए सबसे बड़ी रुकावट आसानी से कर्ज न मिलना है।

2015 के आसपास भारत के पिछले इन्फ्रास्ट्रक्चर बूम के फटने के बाद, बैंक सिर्फ सबसे ताकतवर कंपनियों को ही कर्ज दे रहे हैं, जिससे छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों के लिए पूंजी जुटाना बेहद मुश्किल हो गया है। बेंगलुरु की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जिको दासगुप्ता और अर्जुन जयदेव ने डेटा के जरिए दिखाया कि बड़ी कंपनियों का बड़ा फायदा आसान कर्ज की वजह से है। दासगुप्ता कहते हैं कि बड़ा होना आपको सफल होने की ज्यादा संभावना देता है जैसा कई देशों में होता है, लेकिन भारत में बड़ी कंपनियों की कर्ज लेने की ताकत निर्णायक है। यह वित्तीय प्रणाली में एक अंतर्निहित पूर्वाग्रह को दर्शाता है जो मौजूदा दिग्गजों का पक्ष लेता है।

प्रतिस्पर्धा आयोग की सीमित शक्तियां

भारत के कॉम्पटीशन कमीशन यानी प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने इस साल पहली बार पाया कि 8 बड़े सेक्टर्स में बड़ी कंपनियों की मोनोपॉली है और यह एक महत्वपूर्ण खोज है जो बाजार में एकाधिकार की व्यापकता को दर्शाती है। हालांकि, आयोग के पास सिर्फ संभावित विलय की जांच करने और उसे मंजूर या खारिज करने की ताकत है। कंपनियों के आकार में बढ़ोतरी रोकने या हवाई जैसे उद्योगों में मोनोपॉली कम करने की पावर उसके पास नहीं है और यह सीसीआई की शक्तियों में एक महत्वपूर्ण कमी को उजागर करता है, जिससे वह मौजूदा एकाधिकार को प्रभावी ढंग से चुनौती देने में असमर्थ हो जाता है।

भारत में कभी कॉम्पटीटिव मार्केट्स का एक मजबूत मॉडल नहीं रहा है, इसीलिए इसके खिलाफ होने वाले एक्शन को लेकर भी बहुत ज्यादा क्लेरिटी नहीं है। 2016 में आयोग में काम कर चुके बाजार विशेषज्ञ एम. एस और साहू कहते हैं कि रेगुलेटर की बजाय चुनी हुई सरकारों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी हालात बनाने पर जोर देना होगा। इसका मतलब है कि नीति निर्माताओं को सक्रिय रूप से ऐसे कानून और नीतियां बनानी होंगी जो नए प्रवेशकों को प्रोत्साहित करें, छोटे व्यवसायों का समर्थन करें और बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दें, ताकि भविष्य में इंडिगो जैसे संकटों से बचा जा सके और अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला बनाया जा सके।