देश / आरोप अगर सही हैं तो गंभीर हैं: केंद्र के पेगासस से जासूसी करने की रिपोर्ट्स पर एससी

Zoom News : Aug 05, 2021, 05:22 PM
नई दिल्ली: जिस पेगासस जासूसी कांड को लेकर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा, आज उसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पहली बार सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद कहा कि अगर रिपोर्ट सही है तो इसमें कोई शक नहीं कि आरोप गंभीर हैं। वहीं, कपिल सिब्बल ने मामले को गंभीर बताते हुए सीजेआई से गुहार लगाई कि केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया जाए। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई मंगलवार को करेगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पेगासस जासूसी मामले को लेकर विभिन्न याचिकाएं दायर की गई हैं और इन याचिकाओं में पेगासस जासूसी कांड की कोर्ट कि निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की गई है। इनमें राजनेता, एक्टिविस्ट, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एन. राम और शशि कुमार द्वारा दी गई अर्जियां भी शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ इसकी सुनवाई कर रही है। 

पेगासस कांड पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या-क्या हुआ-

-सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपनी याचिका की प्रति केंद्र को दें। अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को करेगा। 

-सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने कहा कि संपूर्ण और व्यक्तिगत गोपनीयता के रूप में नागरिकों की गोपनियाता पर विचार किया जाना चाहिए। 

-पेगासस जासूसी कांड पर याचिकाकर्ता शिक्षाविद् जगदीप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वर्तमान मामले की भयावहता बहुत बड़ी है और कृपया मामले की स्वतंत्र जांच पर विचार करें।

-वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि मैं और हम सभी चाहते हैं कि आप केंद्र सरकार को नोटिस जारी करें।

-सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने दलील दी कि पत्रकार, सार्वजनिक हस्तियां, संवैधानिक प्राधिकरण, अदालत के अधिकारी, शिक्षाविद सभी स्पाइवेयर द्वारा टारगेटेड हैं और सरकार को जवाब देना होगा कि इसे किसने खरीदा? हार्डवेयर कहां रखा गया था? सरकार ने FIR क्यों नहीं दर्ज की?

-सीजेआई ने कहा कि अगर रिपोर्ट सही है तो इसमें कोई शक नहीं कि आरोप गंभीर हैं। पेगासस कांड पर सीजेआई ने कहा कि 2019 में जासूसी की खबरें आई थीं। मुझे नहीं पता कि अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कोई प्रयास किया गया या नहीं। मैं हरेक मामले के तथ्यों की बात नहीं कर रहा, कुछ लोगों ने दावा किया है कि फोन इंटरसेप्ट किया गया है। ऐसी शिकायतों के लिए टेलीग्राफ अधिनियम है।

-याचिकाकर्ता एन.राम और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह स्पाइवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है और निजी संस्थाओं को नहीं बेचा जा सकता है। एनएसओ प्रौद्योगिकी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल है। उन्होंने आगे कहा कि पेगासस एक दुष्ट अथवा कपटी तकनीक है, जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है। यह हमारे गणतंत्र की निजता, गरिमा और मूल्यों पर हमला है।

बता दें कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने एक खबर में दावा किया है कि 300 सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाईवेयर के जरिये जासूसी के संभावित निशाने वाली सूची में शामिल थे। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपनी अर्जी में अनुरोध किया है कि पत्रकारों और अन्य के सर्विलांस की जांच कराने के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए। 

गिल्ड ने अपनी अर्जी, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे भी याचिकाकर्ता हैं, में कहा है कि उसके सदस्य और सभी पत्रकारों का काम है कि वे सूचना और स्पष्टीकरण मांग कर और राज्य की कामयाबी और नाकामियों का लगातार विश्लेषण करके सरकार के सभी अंगों को जवाबदेह बनाएं। न्यायालय वरिष्ठ पत्रकार प्रांजय गुहा ठकुराता की ओर से दायर याचिका पर भी सुनवाई करेगा। उनका नाम उस कथित सूची में शामिल है जिनकी पेगासस की मदद से जासूसी की जा सकती थी। 

पत्रकार ने अपनी अर्जी में अनुरोध किया है कि शीर्ष अदालत केन्द्र सरकार को जांच से जुड़ी सभी सामग्री सार्वजनिक करने का निर्देश दे। ठकुराता ने अपनी अर्जी में कहा है कि पेगासस की मौजूदगी का भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, उन्होंने न्यायालय से स्पाईवेयर या मालवेयर के उपयोग को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है।

वहीं, जनहित याचिका में यह मांग भी की गई है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि वह बताए कि आखिर उसने पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल करने का आदेश लिया है या नहीं। याचिका में कहा गया है कि यह मिलिट्री स्पायवेयर है और इसका आम नागरिकों पर इस्तेमाल होना स्वीकार नहीं किया जा सकता। अर्जी में कहा गया है कि इस तरह की जासूसी निजता के अधिकार का उल्लंघन है, जिसे संविधान के आर्टिकल 14 में मूल अधिकार बताया गया है। इसके अलावा अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का भी यह हनन है।

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