आंबेडकर जयंती 2020 / बाबा साहेब की प्रेरणा और अंत्योदय का संकल्प

AMAR UJALA : Apr 14, 2020, 09:59 AM
Ambedkar jayanti 2020: राष्ट्र को दो महानायक मिले, जिन्होंने भारत को समग्र दृष्टि से देखा और सामाजिक विकृतियों से मुक्त राष्ट्र को पुनः विश्व गुुरु बनाने की परिकल्पना रखी। ये विभूतियां थीं बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर और पंडित दीनदयाल उपाध्याय।

बाबासाहेब का मत था कि दलितों का संघर्ष राजनीतिक सत्ता में भागीदारी का संघर्ष है और एक बार भागीदारी मिल गई तो सामाजिक न्याय के आधार पर समतामूलक समाज की रचना सरल हो जाएगी। पंडित दीनदयाल जी कहते थे कि जो विकास की बाट जोह रहा है और समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा है, उसकी प्रगति के बिना सरकार का दायित्व पूरा नहीं माना जायेगा। उनकी इस कल्पना को अंत्योदय कहा गया।

दोनों ही राष्ट्रवाद के प्रखर पुरोधा थे। ऐसा राष्ट्रवाद जिसमें समाज सुधार, छुआ-छूत, जाति, विषमता उन्मूलन और समाज के शोषित, उपेक्षित वर्ग के सबलीकरण के साथ राष्ट्र निर्माण की समग्र भावना हो।

दरअसल राष्ट्रवाद का यही सिद्धांत भारतीय जनता पार्टी की नीतियों व कार्यक्रमों का आधार है। भाजपा ने दीनदयाल जी के अंत्योदय को शासन का आधार बनाकर बाबासाहेब के आदर्श समाज की स्थापना की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं।

बाबासाहेब की इच्छा थी कि दलितों को सत्ता में भागीदारी मिले और यह गर्व का विषय है कि 17वीं लोकसभा में देश की आरक्षित 131 लोकसभा सीटों में से 77, यानी 59 प्रतिशत अनुसूचित जाति व जनजाति के सांसद भाजपा से हैं।

देश की राजनीति में भागीदारी 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले मंत्रिमंडल ने 2014 में जब शपथ ली तो 46 मंत्रियों में से 22 मंत्री, यानी 48 प्रतिशत, अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े समुदाय से थे। पिछली सरकारों की तुलना में यह सर्वाधिक है। वैसे भी यदि दलित प्रतिनिधित्व की बात करें तो भाजपा सरकारों में बहुजन समुदाय को हमेशा सम्मान प्राप्त हुआ। 

भाजपा सरकारों के शासन में दलितों की उच्च भागीदारी बाबासाहेब के उसी ध्येय की श्रृंखला है, जिसमें उन्होंने राजनैतिक अधिकार को समाज के उत्थान का हेतु माना था और दीनदयाल जी के उस सिद्धांत की परिणिति है, जिसमें समाज के समावेशी विकास की बात कही गई थी। भाजपा के अंत्योदय व दलितोत्थान के इस क्रम में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान, सशक्तिकरण व समुचित सम्मान के लिए केंद्र सरकार ने क्रांतिकारी निर्णय लिए हैं। उन्होंने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक में संवैधानिक संशोधन करके और अधिक सशक्त बनाया। इतना ही नहीं, एससी-एसटी समुदायों के सदस्यों के विरुद्ध अत्याचार के मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की।

बाबा साहब के ‘शिक्षित बनो-जागरूक बनो’ के मंत्र और दीनदयाल जी के अंत्योदय के विचार की परिकल्पना को समग्रता में देखकर मोदी सरकार ने दलित समाज के विकास, आर्थिक सशक्तिकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रोजगार के लिये अभूतपूर्व कदम उठाए हैं।

राजनैतिक भागीदारी के साथ ही दलित समुदाय के शैक्षणिक उत्थान के लिए मोदी सरकार ने इस वर्ग के पात्र छात्रों को छात्रवृति देने के लिए सामाजिक कल्याण की कई योजनाओं को जमीन पर उतारा है। चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो या रोजगार और सामाजिक सुरक्षा। यही नहीं अंतर-जातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए भी अनुसूचित जाति वर्ग में विवाह करने पर 2.5 लाख रुपये की सम्मान राशि देने की घोषणा की गई और सभी मंत्रालयों में जनजातीय कल्याण हेतु बजटीय आवंटन में 40% तक की वृद्धि की गई है।

बाबा साहेेेब  का विराट व्यक्तित्व 

बाबासाहेब का व्यक्तित्व किसी एक समुदाय तक ही सीमित नहीं हैं, उनका संघर्ष और उनका जीवन इस देश के प्रत्येक नागरिक के लिए प्रेरणादायी है। किंतु राजनैतिक दुर्भावनायुक्त  दलों ने बाबासाहेब की सदैव उपेक्षा की और उनकी महान विरासत को संजोने का किंचित प्रयास नहीं किया। 

मोदी सरकार ने मध्य प्रदेश के महू में बाबासाहेब की जन्मभूमि, लंदन में उनकी शिक्षाभूमि पर डॉक्टर अम्बेडकर मेमोरियल, नागपुर में दीक्षाभूमि, मुंबई में चैत्य भूमि और दिल्ली में परिनिर्वाण भूमि को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित किया। इन पंचतीर्थों की महत्ता भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में आने वाले कई दशकों तक प्रतिबिंबित होगी।

मोदी सरकार ने बाबासाहेब के जन्म के 125 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में वर्ष 2015 में 125 रुपये का विशेष सिक्का और डाक टिकट भी निर्गत किया था। इतना ही नहीं, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम के धन अंतरण ऐप का नाम ‘भीम’ बाबासाहेब के सम्मान में रखा गया।

मोदी सरकार बाबासाहेब के जीवनमूल्यों में बसने वाले उस भारत के निर्माण के लिए प्रयासरत है, जहां दलितों, पिछड़ों, वंचितों व निर्धनों के वास्तविक उत्थान की गौरवगाथा लिखी जा रही है। यह भगीरथ प्रयास किसी राजनैतिक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि बाबासाहेब की नीतियों पर अमल करने की मंशा और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना और एक भारत, श्रेष्ठ भारत के निर्माण के संकल्प की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER