हिंदी सिनेमा में कई ऐसे कलाकार हुए हैं, जिन्होंने भले ही लीड रोल न निभाए हों, लेकिन अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई और इन्हीं में से एक हैं दिग्गज अभिनेता असरानी, जो अपनी छोटी हाइट और लुक के कारण शुरुआती दिनों में रिजेक्शन का सामना करते रहे, लेकिन 'शोले' के 'जेलर' बनकर उन्होंने इतिहास रच दिया। हाल ही में 20 अक्टूबर को उनका निधन हो गया, पर उनकी विरासत अमर रहेगी।
संघर्ष भरा शुरुआती सफर
गोवर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी, 1941 को जयपुर में हुआ था। सेंट जेवियर्स स्कूल और राजस्थान कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने FTII से एक्टिंग की डिग्री ली। 1967 में 'हरे कांच की चूड़ियां' से बॉलीवुड में डेब्यू करने के बाद भी उनका सफर आसान नहीं रहा और अपनी हाइट और लुक के कारण उन्हें कई बार 'कमर्शियल एक्टर' न होने का ताना सुनना पड़ा। डायरेक्टर्स ने उन्हें हीरो या विलेन के तौर पर स्वीकार करने से मना कर दिया, जिसके बाद उन्होंने साउथ इंडियन सिनेमा का रुख किया।
'गुड्डी' और 'शोले' ने बदला भाग्य
जया भादुड़ी स्टारर फिल्म 'गुड्डी' में उनके काम को काफी सराहा गया, लेकिन असली पहचान उन्हें 1975 में रिलीज हुई रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' से मिली और इस फिल्म में 'अंग्रेजों के जमाने के जेलर' के उनके किरदार ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। उनका यह डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर है। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, अक्षय कुमार जैसे कई सुपरस्टार्स के साथ 300 से अधिक हिंदी और गुजराती फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं।
अभिनय और राजनीति में योगदान
असरानी ने अपने पांच दशक के करियर में कॉमेडी और कैरेक्टर रोल्स में अपनी छाप छोड़ी और अभिनय के साथ-साथ वह राजनीति में भी सक्रिय रहे और 2004 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के आगे कोई बाधा टिक नहीं पाती।