इंडिया / महाराष्ट्र में सत्ता के संघर्ष पर सुप्रीम कोर्ट में आज निर्णायक सुनवाई, कल हुई थी जोरदार बहस

Live Hindustan : Nov 25, 2019, 07:19 AM
नई दिल्ली | महाराष्ट्र में सत्ता के लिए चल रहे संघर्ष को लेकर रविवार को उच्चतम न्यायालय में करीब आधे घंटे बहस चली। याचिकाकर्ता शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर से जहां सदन में जल्द बहुमत परीक्षण कराने पर जोर दिया गया, वहीं सत्ता पक्ष ने संबंधित याचिका पर सवाल उठाए। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुनवाई सोमवार (25 नवंबर) तक स्थगित कर दी। महाराष्ट्र में भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी के अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी गई है।

इस याचिका पर सुबह 11.34 बजे जस्टिस एनवी रमन,जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की ओर से उनके गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का आग्रह किया गया। दलील दी गई कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास बहुमत नहीं है। अगर, उनके पास बहुमत है तो उन्हें 24 घंटे के भीतर सदन में इसे साबित करना चाहिए।

शीर्ष कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र व महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति एनवी रमन, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, वे राष्ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा व सरकार बनाने का आमंत्रण देने वाले दस्तावेज देखना चाहते हैं। इस मामले में सोमवार सुबह 10:30 बजे सुनवाई होगी।

पीठ ने मुख्यमंत्री फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजित पवार को भी नोटिस जारी किया। अदालत ने दस्तावेज पेश करने के लिए दो दिन का समय देने के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध को भी नहीं माना। कोर्ट ने कहा, दस्तावेज सोमवार को ही पेश किए जाएं। 

किसने क्या दलील दी

राष्ट्रपति शासन हटाने को कैबिनेट मंजूरी नहीं ली

शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आनन-फानन में राष्ट्रपति शासन हटाकर मुख्यमंत्री पद पर शपथ दिलाए जाने का फैसला सही नहीं है। राष्ट्रपति शासन को हटाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी नहीं लेना भी अपने आप में अजीब लगता है। 

गठबंधन के पास बहुमत

कपिल सिब्बल ने दावा किया कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के पास पूर्ण बहुमत है और वे इसे सदन में भी साबित करने के लिए तैयार हैं। तीनों दलों की ओर से अभिषेक मुन सिंघवी ने भी फडणवीस को सदन में बहुमत साबित करने का आदेश देने की मांग पर जोर दिया। किसी वरिष्ठ विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाने का आग्रह किया। 

कर्नाटक का हवाला दिया

सिब्बल ने कर्नाटक का हवाला देते हुए कहा कि 2018 में राज्यपाल ने बीएस येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 19 दिनों का वक्त दिया था। मगर, उच्चतम न्यायालय ने 24 घंटे में सदन में बहुमत साबित का आदेश दिया था।

अजीत को उपमुख्यमंत्री क्यों बनाया

एनसीपी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मनु सिंघवी ने अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि एनसीपी ने अजीत को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया है। उनके पास उनकी ही पार्टी का समर्थन नहीं है, ऐसे में उन्हें उप मुख्यमंत्री क्यों नहीं नियुक्त किया गया। 

समर्थन पत्र की जांच क्यों नहीं

याचिका दाखिल करने वाले तीनों दलों की ओर से सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल ने यह कैसे मान लिए कि फडणवीस के पास बहुमत है। राज्यपाल को ऐसी कौन सी चिट्ठी मिली या समर्थन पत्र मिला और उसकी जांच क्यों नहीं की गई। मुख्यमंत्री पद के शपथ का आखिर आधार क्या है? 

तीन सप्ताह से तीनों दल क्या सो रहे थे

भाजपा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सवाल किया क्या पिछले तीन सप्ताह से कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना सो रही थी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को नोटिस जारी कर उनका पक्ष सुने बगैर किसी तरह का आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए।

राज्यपाल विवेक से फैसला लेने को स्वतंत्र 

भाजपा विधायकों की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल अपने विवेक से फैसला लेने को स्वतंत्र हैं। राज्यपाल ने किसी को सड़क से उठाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं दिलाई है। साथ ही यह भी कहा कि राज्यपाल के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती।

राज्यपाल अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं

मुकुल रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल किसी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के पास बहुमत था तो सरकार बनाने का दावा पेश क्यों नहीं किया गया। 

आप किसकी तरफ से

मामले की सुनवाई के दौरान भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की मौजूदगी को देखकर शीर्ष अदालत ने जानना चाहा कि आप किसी तरफ से हैं, आप किसका पक्ष रखेंगे। इस पर मेहता ने पीठ को बताया कि उन्हें रात में याचिका दी गई, इसलिए मैं कोर्ट में आया हूं। 

सीधे कोर्ट कैसे आए

केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस मामले में सीधे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल किए जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि तीनों दल उच्च न्यायालय जा सकते थे।

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