दिल्ली में 10 नवंबर 2025 को हुए भीषण ब्लास्ट की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के हवाले है, और इस मामले में अब एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है और सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस घातक विस्फोट को अंजाम देने से ठीक पहले, दो मुख्य संदिग्धों, डॉ. उमर और डॉ. मुजम्मिल के बीच पैसों को लेकर एक गंभीर झगड़ा हुआ था। यह विवाद इतना बढ़ गया था कि इसने आतंकी मॉड्यूल की। आंतरिक कार्यप्रणाली को भी प्रभावित किया, जिसके बाद कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए।
लाल किले के पास हुआ था भीषण विस्फोट
पैसों को लेकर डॉ. उमर और डॉ.
दिल्ली में लाल किले के पास, विशेष रूप से रेड फोर्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास ट्रैफिक सिग्नल पर, 10 नवंबर 2025 को एक कार विस्फोट हुआ था। यह घटना इतनी भयावह थी कि इसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था और इस आतंकी हमले में कम से कम 13 से 15 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई अन्य घायल हुए थे। इस घटना को डॉ. उमर नामक एक फिदायीन ने अंजाम दिया था, जिसकी पहचान बाद में जांच एजेंसियों द्वारा की गई। इस विस्फोट ने न केवल जान-माल का भारी नुकसान किया, बल्कि यह भी उजागर किया कि भारत के खिलाफ एक संगठित साजिश रची जा रही थी, जिसमें डॉक्टरों का एक पूरा नेटवर्क शामिल था।
जांच के दौरान सामने आया है कि इस बड़े आतंकी हमले से पहले, मॉड्यूल के भीतर ही गंभीर मतभेद उभर आए थे। डॉ. उमर और डॉ. मुजम्मिल, जो इस आतंकी साजिश के प्रमुख सदस्य थे, के बीच पैसों को लेकर जबरदस्त झगड़ा हुआ था। यह झगड़ा इतना सार्वजनिक था कि इसे यूनिवर्सिटी के अंदर कई लोगों ने देखा था। मुजम्मिल ने मॉड्यूल के सामने दो स्पष्ट शर्तें रखी थीं: या तो उसे उसका पैसा। तुरंत लौटाया जाए, या फिर मॉड्यूल से संबंधित सारा सामान उसी के पास रखा जाए। मॉड्यूल ने दूसरा विकल्प चुना, और विस्फोटकों सहित सारा महत्वपूर्ण सामान डॉ और मुजम्मिल के पास रखवाया गया। यह वही सामान था जो बाद में 9 नवंबर को मुजम्मिल की गिरफ्तारी के बाद उसकी निशानदेही पर बरामद किया गया था, जिससे जांच में एक बड़ी सफलता मिली।
विवाद सुलझाने की कोशिशें और सिग्नल ऐप ग्रुप
डॉ. उमर ने इस आंतरिक कलह को सुलझाने के लिए एक प्रयास किया था। उसने सिग्नल ऐप पर एक विशेष ग्रुप बनाया था, जिसमें डॉ. मुजम्मिल के अलावा आदिल, मुफ़्फर और इरफ़ान जैसे अन्य प्रमुख सदस्यों को भी जोड़ा गया था। इस ग्रुप का उद्देश्य विवाद को बातचीत के माध्यम से हल करना था, लेकिन यह प्रयास विफल रहा। पैसों को लेकर उपजा यह मतभेद इतना गहरा था कि सिग्नल ऐप पर की गई बातचीत भी इसे सुलझाने में नाकाम रही, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मॉड्यूल के भीतर दरारें कितनी गहरी थीं।
विस्फोटकों की खरीद और बम बनाने की तैयारी
डॉ. उमर इंटरनेट पर बम बनाने के वीडियो और साहित्य का गहन अध्ययन करता था। वह विस्फोटक बनाने के लिए आवश्यक सामान नूंह से खरीदता था, जबकि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फरीदाबाद के भागीरथ पैलेस और एनआईटी मार्केट जैसे स्थानों से प्राप्त करता था। यह उसकी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें वह विभिन्न स्रोतों। से सामग्री जुटाकर एक बड़ा आतंकी हमला करने की तैयारी कर रहा था। उसकी गतिविधियां दर्शाती हैं कि वह एक सुनियोजित तरीके से काम कर रहा था और अपनी योजनाओं को अंजाम देने के लिए हर संभव संसाधन जुटा रहा था।
विस्फोटकों का भंडारण और रासायनिक बमों का निर्माण
झगड़े के बाद, डॉ. उमर ने अपनी लाल इको कार, जिसमें विस्फोटक भी थे, डॉ. मुजम्मिल को दे दी थी। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जो उनके बीच के तनाव और मॉड्यूल के भीतर की गतिशीलता को दर्शाता है। उमर ने विस्फोटकों और रसायनों को सुरक्षित रखने के लिए एक डीप फ्रीजर भी खरीदा था। वह इस डीप फ्रीजर के अंदर रासायनिक बम तैयार कर रहा था और उसकी योजना विभिन्न स्थानों पर एक साथ विस्फोट करने के लिए विस्फोटकों को जमा करना था, जिससे अधिकतम क्षति और दहशत फैलाई जा सके। यह दर्शाता है कि उसका इरादा केवल एक स्थान पर हमला करना नहीं था, बल्कि एक समन्वित और बड़े पैमाने पर आतंकी अभियान चलाना था।
डॉक्टरों का नेटवर्क और देशव्यापी साजिश
इस मामले के सामने आने के बाद, जांच एजेंसियों को डॉक्टरों के एक पूरे नेटवर्क का पता चला है, जो भारत के खिलाफ एक बड़ी साजिश रच रहे थे। यह खुलासा बेहद चिंताजनक है क्योंकि यह दर्शाता है कि शिक्षित और समाज में प्रतिष्ठित पदों पर बैठे लोग भी आतंकी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। इस नेटवर्क का पर्दाफाश NIA की जांच का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है और इस नेटवर्क के अन्य सदस्यों और उनकी भूमिकाओं की जांच अभी भी जारी है, ताकि इस पूरी साजिश की जड़ों तक पहुंचा जा सके और भविष्य में ऐसे किसी भी प्रयास को विफल किया जा सके।