बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र, जिन्हें उनके चाहने वाले 'ही-मैन' के नाम से जानते हैं, पिछले करीब पैंसठ सालों से सिर्फ 'धर्मेंद्र' नाम से ही मशहूर हैं। उनका वास्तविक नाम धर्म सिंह देओल है, लेकिन उन्होंने अपने पेशेवर करियर में कभी भी अपना सरनेम 'देओल' नहीं लगाया। यह एक ऐसा रहस्य है जो उनके प्रशंसकों के बीच हमेशा कौतूहल का विषय रहा है। एक ऐसा नाम जो बोलने में आसान, लिखने में सरल और सुनने में कर्णप्रिय। है, उसी एक शब्द के नाम से उन्होंने करोड़ों दिलों पर राज किया है।
सरनेम न लगाने की वजह
धर्मेंद्र के अपने नाम के साथ सरनेम 'देओल' न लगाने के पीछे कई दिलचस्प कारण हैं, जो उस दौर के फिल्मी सितारों के बीच एक आम चलन को दर्शाते हैं। गुजरे जमाने में कई कलाकार अपनी जातीय या सामुदायिक पहचान को सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे। उनका मानना था कि एक कलाकार की पहचान किसी विशेष जाति या समुदाय। से नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे पूरे देश और समाज का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। सरनेम लगाने से अक्सर जाति या समुदाय का बोध होता है, और। धर्मेंद्र जैसे कलाकार खुद को इन सीमाओं में बांधना नहीं चाहते थे। वे चाहते थे कि उनके प्रशंसक उन्हें एक समान भाव से देखें, बिना किसी पूर्वाग्रह के और यह एक ऐसा कदम था जो उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष छवि प्रदान करता था, जैसा कि उन्होंने खुद भी कहा है कि वह हर देशवासी के दिल में बसते हैं, क्योंकि उनके प्रशंसक सभी धर्मों और मजहबों से आते हैं।
बच्चों द्वारा सरनेम का उपयोग
यह और भी दिलचस्प हो जाता है कि धर्मेंद्र ने भले ही अपने पेशेवर करियर में कभी अपना सरनेम नहीं लिखा, लेकिन उनके सभी बच्चे अपने नाम के साथ 'देओल' सरनेम का उपयोग करते हैं। उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर से हुए चारों बच्चे, सनी देओल, बॉबी देओल, विजेता देओल और अजीता देओल, सभी अपने नाम में 'देओल' लगाते हैं। इतना ही नहीं, उनकी दूसरी पत्नी और मशहूर अभिनेत्री हेमा मालिनी से हुई दोनों बेटियां, ईशा देओल और अहाना देओल भी सार्वजनिक जीवन में अपने पिता का सरनेम लिखती रही हैं। ईशा देओल ने तो कई फिल्मों में सफलतापूर्वक अभिनय भी किया है। यह दर्शाता है कि परिवार के भीतर सरनेम का महत्व बरकरार है,। जबकि धर्मेंद्र ने अपने सार्वजनिक और पेशेवर जीवन में एक अलग पहचान बनाई।
पहली फिल्म से ही परंपरा
धर्मेंद्र के बिना सरनेम वाला नाम लिखने का फैसला उनकी पहली फिल्म से भी पहले का है। जब वह पहली बार फिल्मी पर्दे पर आए, वह साल 1960 था। धर्मेंद्र ने राष्ट्रीय स्तर पर फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट जीता था, जिससे उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में पहचान मिली। हालांकि, अभिनय का मौका मिलना तब भी आसान नहीं था। सन् 1960 में अर्जुन हिंगोरानी के निर्देशन में उनकी पहली फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' रिलीज हुई। इस फिल्म के क्रेडिट रोल पर भी उनका नाम केवल 'धर्मेंद्र' ही चस्पा था। इससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपनी पेशेवर यात्रा की शुरुआत। से ही सरनेम का उपयोग न करने का निर्णय ले लिया था। घर के सदस्य उन्हें प्यार से 'धरम' नाम से पुकारते थे, जो पंजाबी जुबान में 'धर्म' का उच्चारण है।
अन्य कलाकारों का उदाहरण
धर्मेंद्र अकेले ऐसे कलाकार नहीं थे जिन्होंने इस तरह की प्रथा अपनाई और उनके दौर में कई सितारों ने अपने लिए एक अलग फिल्मी नाम रखने का चलन शुरू किया था। यह सिलसिला अशोक कुमार और दिलीप कुमार जैसे दिग्गजों से ही शुरू हो गया था और बाद के दौर में प्रदीप कुमार, मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार, राजकुमार, किशोर कुमार से लेकर आज के अक्षय कुमार तक, कई अभिनेताओं ने अपने नाम में बदलाव किए। जिन्होंने 'कुमार' नहीं लगाया, उन्होंने ऐसे नाम चुने जो अलग हों, सुनने में अच्छे लगते हों या जिनके खास मायने हों। अभिनेत्रियों में मधुबाला, नरगिस, नूतन, साधना जैसे नाम सामने आए, तो। अभिनेताओं में धर्मेंद्र, जितेंद्र, मोतीलाल, गुरुदत्त, जीवन, जगदीप, रहमान, गोविंदा आदि।
जितेंद्र का मूल नाम रवि कपूर है, लेकिन कपूर परिवार के कलाकारों के बीच पहचान के संकट से बचने के लिए उन्होंने भी सरनेम नहीं लिखा और केवल 'जितेंद्र' नाम से मशहूर हुए। उनके बेटे तुषार कपूर और बेटी एकता कपूर अपने नाम में 'कपूर' लगाते हैं। इसी तरह, गोविंदा भी अपने नाम में कभी 'आहूजा' सरनेम नहीं लगाते, जबकि उनके बेटे यशवर्धन आहूजा और बेटी टीना आहूजा अपना पूरा नाम लिखते हैं। यहां तक कि कई खलनायकों ने भी अपने सरनेम या मजहब को सार्वजनिक नहीं किया, जैसे जयंत (मूल नाम: जकारिया खान), अजीत (मूल नाम: हामिद अली खान), रंजीत (पूरा नाम: गोपाल बेदी) और जगदीप (पूरा नाम: सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी) और इन सभी के बच्चों ने सार्वजनिक जीवन में अपने पूरे नाम का उपयोग किया है। कुछ अंकशास्त्री धर्मेंद्र के सरनेम न लिखने के पीछे अंक 6 का तर्क देते हैं, लेकिन धर्मेंद्र के मस्तमौला मिजाज को देखते हुए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वे ऐसे टोटकों में पड़े होंगे।
'ही-मैन' की उपाधि
धर्मेंद्र को 'ही-मैन' क्यों कहा जाता है, इसकी कहानी भी उनकी दमदार शख्सियत से जुड़ी है और फिल्मों में जांबाज नायकों के लिए 'ही-मैन' और 'रॉबिनहुड' जैसे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, जो हॉलीवुड से निकले हैं। रॉबिनहुड गरीबों का मसीहा होता है, जबकि 'ही-मैन' एक पराक्रमी और साहसी नायक होता है। पारसी थिएटर के नायक भी साहसी कारनामे करने वाले होते थे। 'ही-मैन' मास्टर्स ऑफ द यूनिवर्स फ्रेंचाइज का एक ऐसा नायक है जो अपनी बहादुरी के लिए जाना जाता है। छठे दशक में, जब धर्मेंद्र को पहली बार 1966 की फिल्म 'फूल और पत्थर' में शर्टलेस देखा गया, तो उनकी शक्तिशाली काया और प्रभावशाली व्यक्तित्व ने सबका ध्यान खींचा। उनकी ताकतवर बॉडी और उसके प्रभाव को देखते हुए उन्हें 'ही-मैन' कहा जाने लगा, और यह उपाधि उनके साथ हमेशा के लिए जुड़ गई।
धर्मेंद्र नाम का अर्थ और धर्मनिरपेक्षता
'धर्मेंद्र' नाम का अर्थ भी बड़ा अनोखा है। जैसे 'जितेंद्र' का मतलब होता है जो इंद्रियों का स्वामी हो, जिसने इंद्रियों पर जीत हासिल कर ली हो, उसी तरह 'धर्मेंद्र' का मतलब है – जो धर्म का स्वामी हो, जो धर्म के अनुसार जीता हो। हालांकि, कलाकार धर्मेंद्र ने खुद को हमेशा धर्मनिरपेक्ष माना है। उनका कहना है कि वह हर देशवासी के दिल में बसते हैं, क्योंकि उनके प्रशंसक सभी धर्मों और मजहबों वाले हैं। उनका सोशल मीडिया हैंडल 'एक्स' पर भी 'आपका धरम' के। नाम से है, भले ही वे वहां 'धर्मेंद्र देओल' लिखते हों। यह उनकी उस सोच को दर्शाता है कि वे अपने प्रशंसकों के बीच एक समान और समावेशी छवि बनाए रखना चाहते हैं। इसी तरह, देव आनंद और राजेश खन्ना जैसे कलाकारों ने भी अपने प्रशंसकों के बीच जगह बनाने के लिए अपने नाम में बदलाव किए थे। धर्मेंद्र की यह यात्रा, एक साधारण नाम से 'ही-मैन' बनने तक, उनकी अद्वितीय पहचान और उनके प्रशंसकों के साथ उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाती है।