Sébastien Lecornu / इमैनुएल मैक्रों को झटका, एक महीने में ही फ्रांस के PM ने दिया इस्तीफा

फ्रांस के प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लोकोर्नु ने एक महीने में ही इस्तीफा दे दिया है। बजट पेश न कर पाने और राजनीतिक गतिरोध से निपटने में असफल रहने पर उन्होंने पद छोड़ा। इस्तीफे के बाद पेरिस स्टॉक एक्सचेंज में 1.7% गिरावट दर्ज हुई। विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया था।

Sébastien Lecornu: फ्रांस के राजनीतिक परिदृश्य में एक बार फिर उथल-पुथल मच गई है। हाल ही में नियुक्त प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु ने मात्र एक महीने के कार्यकाल के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। बजट पेश करने में असफलता और राजनीतिक गतिरोध से निपटने में नाकामी के चलते लेकोर्नु ने यह कदम उठाया। उनके इस्तीफे के तुरंत बाद पेरिस स्टॉक एक्सचेंज में 1.7% की गिरावट दर्ज की गई, जो फ्रांस की आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता को दर्शाती है।

इस्तीफे की पृष्ठभूमि

France 24 की एक रिपोर्ट के अनुसार, लेकोर्नु ने कैबिनेट गठन के कुछ ही घंटों बाद इस्तीफा दे दिया। विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसका सामना करने में वे असमर्थ रहे। कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन बैठक से पहले ही लेकोर्नु ने यह कदम उठाया। सूत्रों के अनुसार, उन्हें यह अहसास हो गया था कि संसद में उनकी स्वीकार्यता खत्म हो चुकी है। अपनी और सरकार की किरकिरी से बचने के लिए उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया।

एक महीने में कुर्सी छोड़ने की वजह

लेकोर्नु को राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने करीब एक महीने पहले प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। लेकिन उनकी नियुक्ति शुरू से ही विवादों में रही। इसके पीछे दो मुख्य कारण थे:

  1. राजनीतिक अस्थिरता और बहुमत की कमी: 2024 के आम चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। इसके बावजूद, मैक्रों ने अपने करीबी नेताओं को प्रधानमंत्री पद सौंपा, जिसकी शुरुआत फ्रांस बायरु से हुई। बायरु की नियुक्ति पर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगा, और वे ज्यादा समय तक पद पर टिक नहीं पाए। इसके बाद लेकोर्नु को यह जिम्मेदारी दी गई, लेकिन वे भी सदन का विश्वास हासिल करने में नाकाम रहे।

  2. आर्थिक संकट और बजट विवाद: फ्रांस की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही है। बढ़ता हुआ कर्ज और आर्थिक अस्थिरता सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। सरकार ने बजट कटौती का प्रस्ताव रखा, जिसका जनता और विपक्ष ने तीव्र विरोध किया। बायरु की तरह लेकोर्नु भी इस प्रस्ताव को संसद से पास कराने में असफल रहे, जिसने उनकी स्थिति को और कमजोर कर दिया।

इस्तीफे का तात्कालिक प्रभाव

लेकोर्नु के इस्तीफे ने फ्रांस के वित्तीय बाजारों को तुरंत प्रभावित किया। पेरिस स्टॉक एक्सचेंज में 1.7% की गिरावट दर्ज की गई, जो निवेशकों के बीच बढ़ती अनिश्चितता को दर्शाता है। इसके अलावा, विपक्षी दलों ने इसे मैक्रों सरकार की विफलता के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है।

अब आगे क्या?

फ्रांस की नेशनल असेंबली में 577 सीटें हैं, और सरकार बनाने के लिए कम से कम 279 सीटों का समर्थन जरूरी है। वर्तमान में, द रैली ग्रुप के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं, और संभावना है कि राष्ट्रपति मैक्रों इस ग्रुप को सरकार बनाने का न्योता दे सकते हैं। हालांकि, द रैली ग्रुप ने मांग की है कि नेशनल असेंबली को तुरंत भंग किया जाए और नए सिरे से चुनाव कराए जाएँ। यह मांग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मैक्रों का कार्यकाल 2027 तक है, और लगातार दो प्रधानमंत्रियों की असफलता ने उनकी स्थिति को कमजोर किया है।