Harsha Richhariya / महाकुंभ में फेमस होने से लेकर मैदान छोड़ने तक,सुंदर 'साध्वी' हर्षा रिछारिया क्या बोली

महाकुंभ 2025 में हर्षा रिछारिया ने सुर्खियां बटोरीं, लेकिन विवादों ने उन्हें घेर लिया। रथ पर बैठने को लेकर संतों ने आलोचना की। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के बाद उन्होंने महाकुंभ छोड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने धर्म और गुरु के अपमान का आरोप लगाते हुए दुखी मन से इस फैसले की घोषणा की।

Vikrant Shekhawat : Jan 17, 2025, 01:00 PM
Harsha Richhariya: महाकुंभ 2025 में सुर्खियों में रहने वाला एक नाम है—हर्षा रिछारिया। 30 वर्षीय इस युवती ने अपने विशेष व्यक्तित्व और उपस्थिति के कारण न केवल धर्मप्रेमियों बल्कि सोशल मीडिया पर भी लोगों का ध्यान खींचा। उन्हें "सबसे सुंदर साध्वी" का टैग मिला, जो उनके प्रति समाज के जिज्ञासु और उत्सुक दृष्टिकोण को दर्शाता है। हालांकि, उनका यह सफर विवादों से भी घिरा रहा, जिसकी वजह से उन्हें महाकुंभ छोड़ने तक का निर्णय लेना पड़ा।

धर्म से जुड़ने की शुरुआत

हर्षा रिछारिया, जो एक अभिनेत्री और एंकर रह चुकी हैं, ने आध्यात्मिकता की ओर रुख किया और निरंजनी अखाड़े से जुड़ीं। महाकुंभ में, वह निरंजनी अखाड़े के छावनी प्रवेश के दौरान शाही रथ पर बैठी नजर आईं। उनकी यह उपस्थिति सोशल मीडिया और धार्मिक समुदायों में चर्चा का विषय बन गई। हालांकि, यह चर्चा जल्द ही विवाद में बदल गई, और कई संत-महात्माओं ने इस पर अपनी असहमति व्यक्त की।

विवादों का आगाज़

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जैसे प्रमुख धार्मिक नेताओं ने हर्षा के रथ पर बैठने की परंपरा को अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ जैसे आध्यात्मिक आयोजन में चेहरे की सुंदरता नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता महत्वपूर्ण होनी चाहिए। अन्य संतों ने इसे एक "मॉडलिंग शो" की तरह पेश करने का आरोप लगाते हुए इसे सनातन धर्म की परंपराओं के खिलाफ बताया।

हर्षा का जवाब और ट्रोलिंग का दर्द

विवादों के बीच, हर्षा ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट कर अपना दुख और गुस्सा जाहिर किया। वीडियो में उन्होंने ट्रोलिंग और व्यक्तिगत हमलों का खुलकर विरोध किया। फूट-फूटकर रोते हुए हर्षा ने कहा, “मैं धर्म को जानने और सनातन संस्कृति से जुड़ने आई थी, लेकिन मुझे ऐसा महसूस कराया गया जैसे मैंने कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो। आपने मुझसे महाकुंभ का अनुभव छीन लिया।”

समर्थकों की राय

जहां एक ओर हर्षा को आलोचना का सामना करना पड़ा, वहीं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने उनका समर्थन किया। उन्होंने कहा कि भगवा पहनना और आध्यात्मिक आयोजनों में भाग लेना कोई अपराध नहीं है। हर्षा ने निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर से दीक्षा ली थी और यह परंपरा के अनुसार था।

गुरु की प्रतिष्ठा और महाकुंभ से विदाई

हर्षा ने कहा कि विवाद उनके गुरु तक पहुंच गया है, और वह अपने गुरु की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा, “मुझे मॉडल के रूप में दिखाना गलत है। मैं अब महाकुंभ में नहीं रह सकती। अगले तीन दिनों में मैं यहां से चली जाऊंगी।”

हर्षा की कहानी पर समाज का चिंतन

हर्षा रिछारिया की कहानी केवल एक विवाद नहीं, बल्कि आधुनिक समाज और पारंपरिक धर्म के बीच तालमेल की चुनौतियों को उजागर करती है। यह घटना यह भी दिखाती है कि एक महिला का धर्म से जुड़ने का प्रयास, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से क्यों न हो, कैसे विवादों और ट्रोलिंग का शिकार हो सकता है।

अंत में

हर्षा का महाकुंभ छोड़ने का निर्णय समाज और धर्म के बीच संवाद की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह समय है कि हम व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा के बीच संतुलन बनाना सीखें। हर्षा की यात्रा एक प्रेरणा है कि किसी भी चुनौती के बावजूद, अपने उद्देश्य और मूल्यों के प्रति सच्चे रहना सबसे महत्वपूर्ण है।