OPINION / नेहरू से लेकर इंदिरा और अब सोनिया, गांधी परिवार का बागियों से मुकाबला करने का पुराना इतिहास रहा है

News18 : Aug 29, 2020, 03:49 PM
नई दिल्ली।  कांग्रेस (Cpngress)  28 दिसंबर को अपने 136 वें स्थापना दिवस के आसपास दिल्ली के पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर नए पार्टी कार्यालय में जाने की योजना बना रही है। इन सबके बीच लोगों के मन में दो सवाल उठ रहे हैं क्या कांग्रेस को फुल टाइम पार्टी पार्टी अध्यक्ष मिलेगा? और क्या तब तक कांग्रेस के सारे नेता एकजुट रहेंगें? दोनों सवाल मौजूदा हालात को देखते हुए बेहद अहम है। दरअसल 23 नेताओं की तरफ से पार्टी में बड़े बदलाव की मांग को लेकर चिट्ठी लिखने बाद पार्टी में खींचतान शुरू हो गई है। हो सकता है कि ये कदम पार्टी विरोधी न दिखे। लेकिन ध्यान से इन 23 असंतुष्टों की बातों को देंखे तो नेहरू-गांधी (Nehru Gaandhi Family) परिवार के तीन सदस्यों - सोनिया, राहुल और प्रियंका से इनका विश्वास उठ गया है।

सोनिया गांधी ने पार्टी चुनाव कराने के लिए छह महीने का समय मांगा है। लेकिन कोरोना महामारी के बीच चुनाव करना आसाना नहीं होगा। अगर चुनाव होते हैं तो ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी के मैदान में उतरने पर ये असंतुष्ट नेता उन्हें किस तरह की चुनौती देते हैं। इतिहास गवाह है कि कई बार गांधी परिवार को बागियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में यहां ये भी देखना बेहद दिलचस्प होगा कि सोनिया, पाहुल और प्रियंका किस तरह से इस संकट को चुनौती देते हैं।

1969 में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के एक समूह ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया, जिससे पार्टी में फूट पैदा हो गई थी। इसके बाद इंदिरा ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस की सदस्यता उनका 'जन्मसिद्ध अधिकार' है। उन्होंने कहा था, 'कोई भी मुझे कांग्रेस से बाहर नहीं निकाल सकता है।'

1967 में कांग्रेस संसदीय दल में मोरारजी देसाई पर 355 से 169 के अंतर से इंदिरा की जीत अधूरी रही क्योंकि बाद में उन्होंने पार्टी संगठन और मुख्यालय, 7, जंतर मंतर रोड पर नियंत्रण खो दिया। 7, जंतर मंतर में उनकी मजबूत भावनात्मक कड़ी थी क्योंकि वह पहली बार 1959 में उस कार्यालय में कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं।

1969 के विभाजन के बाद, मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस (ओ) ने 7, जंतर मंतर रोड पर कब्जा कर लिया। बाद में, देसाई ने 1977 में जनता पार्टी के साथ कांग्रेस (ओ) का विलय कर दिया। उस समय देसाई, जो तब प्रधानमंत्री थे, उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर एक अलग ट्रस्ट बनाकर, 7 जंतर मंतर पर बड़ी चतुराई से सत्ता संभाली, जिसे सरदार पटेल स्मारक संस्थान कहा जाता है। इसी के पास इस भवन का स्वामित्व था। जनता पार्टी को सिर्फ दूसरी मंजिल किराए पर दी गई थी, जो सत्ता में थी। वर्षों बाद, सोनिया गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस ने इमारत को नियंत्रण को फिर से हासिल करने की कोशिश की,। कहा गया कि ये ट्रस्ट अयोग्य हो गया है।

कुछ समय बाद साल 2000 में, AICC के महासचिव ऑस्कर फर्नांडीस ने दिल्ली में कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को पत्र लिखकर इस ट्रस्ट स्वामित्व का दावा किया। फर्नांडिस चाहते थे कि रजिस्ट्रार ऑफ ट्रस्ट, जो राज्य सरकार के अधीन आता है, AICC के पदाधिकारियों को अपना ट्रस्टी नियुक्त करके सरदार पटेल स्मारक संस्थान को पुनर्जीवित करना चाहिए। लेकिन यहां एक गफलत हो गई। शीला दीक्षित सरकार ने 7 जंतर मंतर रोड को सीधे कांग्रेस पार्टी के नाम से पंजीकृत करने की कोशिश की। उन्होंने शहरी विकास मंत्रालय से नो ओबजेक्शन सर्टिफिकेट मांगा। उन दिनों इसके प्रमुख संजय गांधी के विश्वासपात्र पूर्व सिविल सेवक जग मोहन मल्होत्रा थे। कांग्रेस को अपने पूर्व कार्यस्थल पर जाने से मना कर दिया।

1977 में आजादी के बाद से कांग्रेस की पहली हार के बाद हंगामा मच गया। 1 जनवरी, 1978 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के ब्रह्मानंद रेड्डी सहित पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने घोषणा की कि इंदिरा को पार्टी से निकाल दिया गया है। रेड्डी को वाईबी चव्हाण, वसंत दादा पाटिल और स्वर्ण सिंह जैसे कई शक्तिशाली नेताओं का समर्थन प्राप्त था। डीके बरूआ, जिन्होंने 'इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा' का नारा दिया था, कहीं नहीं थे। सीडब्लूसी 3 जनपथ में मारागथम चंद्रशेखर के आवास पर मिले। बारह सदस्य इंदिरा के साथ बैठे थे, लेकिन एआईसीसी प्रमुख उन्हें रखने के मूड में नहीं थे।

1978 में तत्कालीन कार्यालय सचिव सद्दीक अली ने इंदिरा को कोई भी आधिकारिक रिकॉर्ड, कागजात या किताबें सौंपने से मना कर दिया था। इसलिए, पार्टी के पास अब कोई फाइल, पुराने रिकॉर्ड, पत्राचार, कार्यालय स्टेशनरी, झंडे या टाइपराइटर नहीं थे। इंदिरा को अपनी पार्टी के अमूल्य अभिलेखागार को खोने के लिए बहुत पीड़ा हो रही थी, लेकिन जब वह 1980 में प्रचंड बहुमत के बाद उन्होंने 7, जंतर मंतर पर दावा करने से इनकार कर दिया। 1978 से, कांग्रेस 24, अकबर रोड, नई दिल्ली से काम कर रही है।

साल 1999 में शरद पवार और पीएम संगमा ने सोनिया के विदेशी मूल का विरोध किया था। 15 मई 1999 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी के ज़्यादातर सदस्य वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के पहले मैच का इंतज़ार कर रहे थे। शाम को CWC की बैठक होने वाली थी जहां गोवा चुनाव के उम्मीदवारों की घोषणा, चुनाव गठबंधन और राजीव गांधी मर्डर केस पर चर्चा होनी थी। ज़्यादातर सदस्य बैठक जल्दी खत्म कर टीवी पर मैच देखना चाहते थे। इसी बैठक में पवार और संगमा की तरफ से विरोध के स्वर उभरने लगे। संगमा ने बैठक में कहा कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा बीजेपी लगातार उठा रही है जिसका नुकसान उनकी पार्टी को उठाना पड़ सकता है। संगमा ने सोनिया से कहा, "हमलोग आपको और आपके माता-पिता के बारे में काफी कम जानते हैं।'' उस वक्त बैठक में मौजूद लोगों के मुताबिक संगमा के इस सवाल को सुनकर सोनिया गांधी हैरान हो गई। संगमा को खुद सोनिया ने CWC में नोमिनेट किया था। सीताराम केसरी के हटने के बावजूद तारीक़ अनवर भी सोनिया गांधी की वजह से CWC में बने हुए थे।

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER