G20 Summit / अमेरिकी बायकॉट के बावजूद G20 घोषणापत्र मंजूर, मोदी ने पेश कीं तीन बड़ी पहल

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के बायकॉट के बावजूद G20 घोषणापत्र सर्वसम्मति से मंजूर हुआ। साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति रामफोसा 'खाली कुर्सी' को मेजबानी सौंपेंगे। पीएम मोदी ने पुराने डेवलपमेंट मॉडल पर पुनर्विचार की अपील की और वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार, अफ्रीका स्किल इनिशिएटिव, और ड्रग-टेरर नेक्सस के खिलाफ तीन महत्वपूर्ण पहलें पेश कीं। दिल्ली घोषणा-पत्र की सराहना हुई और UNSC में भारत को जगह देने का प्रस्ताव पारित हुआ।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बायकॉट के बावजूद, G20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन शनिवार को। सदस्य देशों ने साउथ अफ्रीका द्वारा तैयार किए गए घोषणा पत्र को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। इस सर्वसम्मत स्वीकृति ने वैश्विक मंच पर एकजुटता का प्रदर्शन किया, भले ही एक प्रमुख सदस्य देश अनुपस्थित रहा। साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने इस बात पर जोर दिया कि सभी देशों के लिए अंतिम बयान पर सहमत होना अत्यंत महत्वपूर्ण था, भले ही अमेरिका इसमें शामिल नहीं हुआ। यह निर्णय वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है, और यह। दिखाता है कि G20 सदस्य देश साझा लक्ष्यों की दिशा में काम करने के लिए दृढ़ हैं।

अमेरिकी बायकॉट और 'खाली कुर्सी' को मेजबानी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का शिखर सम्मेलन से बायकॉट एक महत्वपूर्ण घटना रही और ट्रम्प ने अंतिम सत्र में मेजबानी लेने के लिए एक अमेरिकी अधिकारी को भेजने की बात कही थी, लेकिन साउथ अफ्रीकी अध्यक्षता ने इस प्रस्ताव को नकार दिया। यह निर्णय G20 के स्थापित प्रोटोकॉल और राजनयिक मानदंडों के प्रति साउथ अफ्रीका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आज, अफ्रीकी राष्ट्रपति रामफोसा G20 की अगली अध्यक्षता 'खाली कुर्सी' को सौंपेंगे। यह प्रतीकात्मक इशारा इस बात का प्रतीक है कि G20 शिखर सम्मेलन की 2026 की मेजबानी अमेरिका को मिलनी है। हालांकि, ट्रम्प के बायकॉट के चलते अमेरिका का कोई भी प्रतिनिधि इस शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ, जिससे यह मेजबानी एक अनुपस्थित राष्ट्र को सौंपी जाएगी, जो वैश्विक मंच पर अमेरिका की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है।

पीएम मोदी का वैश्विक चुनौतियों पर दृष्टिकोण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G20 शिखर सम्मेलन के पहले दो सत्रों को संबोधित करते हुए भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। पहले सत्र में, उन्होंने वैश्विक चुनौतियों पर भारत के व्यापक नजरिए को दुनिया के सामने रखा। पीएम मोदी ने पुराने डेवलपमेंट मॉडल के मानकों पर दोबारा सोचने की अपील की, जो उनके अनुसार संसाधनों का अत्यधिक दोहन करते हैं और असमानता को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन पुराने मॉडलों को बदलना बेहद जरूरी है ताकि एक अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ विकास सुनिश्चित किया जा सके, जो सभी के लिए समान अवसर प्रदान करे।

पुराने डेवलपमेंट मॉडल पर पुनर्विचार की अपील

अपने संबोधन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने मौजूदा वैश्विक विकास मॉडल की आलोचना की। उन्होंने कहा कि G20 ने भले ही दुनिया की अर्थव्यवस्था को दिशा दी हो, लेकिन आज के वैश्विक विकास मॉडल के पैरामीटर्स ने बड़ी आबादी को संसाधनों से वंचित किया है और प्रकृति के दोहन को बढ़ावा दिया है। मोदी ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि अफ्रीकी देशों पर इसका असर सबसे ज्यादा दिखता है, जहां संसाधन छीनने और पर्यावरणीय गिरावट के गंभीर परिणाम सामने आए हैं। उन्होंने एक ऐसे नए मॉडल की वकालत की जो समावेशी हो, प्रकृति के। साथ सामंजस्य स्थापित करे और वैश्विक समुदाय के सभी वर्गों को लाभान्वित करे।

भारत की तीन महत्वपूर्ण पहल

शिखर सम्मेलन के दूसरे सत्र में, पीएम मोदी ने भारत के 'श्री अन्न' (मोटा अनाज) के महत्व, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे, G20 सैटेलाइट डेटा पार्टनरशिप और आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर विस्तार से बात की और इन विषयों पर चर्चा के अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने तीन महत्वपूर्ण पहलें भी पेश कीं, जिनका उद्देश्य वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना और प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना है। ये पहलें भारत की वैश्विक नेतृत्व की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं और विभिन्न क्षेत्रों में ठोस कार्रवाई का आह्वान करती हैं।

वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तुत पहली पहल 'वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार' की स्थापना थी। इसका मुख्य मकसद दुनिया के लोक ज्ञान, पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और सामुदायिक प्रथाओं को एक साथ लाना है। यह भंडार एक वैश्विक संसाधन के रूप में कार्य करेगा, जो। स्वदेशी ज्ञान को संरक्षित, मान्यता और उचित उपयोग को बढ़ावा देगा। यह पहल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और समकालीन समस्याओं के समाधान में पारंपरिक ज्ञान। के मूल्य में उसके विश्वास को दर्शाती है, जिससे दुनिया भर के लोग लाभान्वित हो सकें।

अफ्रीका स्किल इनिशिएटिव

अफ्रीकी महाद्वीप की विशाल क्षमता को पहचानते हुए, पीएम मोदी ने 'अफ्रीका स्किल इनिशिएटिव' का भी अनावरण किया। यह एक व्यापक योजना है जिसका उद्देश्य अफ्रीकी युवाओं के लिए। कौशल विकास, प्रशिक्षण और रोजगार के नए अवसरों को बढ़ाना है। इस पहल का लक्ष्य अफ्रीकी युवाओं को आधुनिक अर्थव्यवस्था में सफल होने के लिए आवश्यक उपकरण और क्षमताएं प्रदान करना है, जिससे महाद्वीप में आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा मिल सके और यह भारत की दक्षिण-दक्षिण सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है और अफ्रीकी देशों के साथ मजबूत साझेदारी का प्रतीक है।

ड्रग-टेरर नेक्सस के खिलाफ पहल

प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत तीसरी महत्वपूर्ण पहल 'ड्रग-टेरर नेक्सस' के खिलाफ एक ठोस प्रयास था। उन्होंने इसे अहम बताते हुए कहा कि ड्रग तस्करी, अवैध पैसों का नेटवर्क और आतंकवाद की फंडिंग आपस में जुड़े हुए हैं। इस पहल का प्रस्ताव है कि सदस्य देशों के वित्तीय, सुरक्षा और शासन तंत्र को। एकजुट किया जाए ताकि इन परस्पर जुड़े खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके। मोदी के मुताबिक, इस फ्रेमवर्क से ड्रग नेटवर्क पर सख्त चोट की जा सकेगी और आतंकवाद की फंडिंग भी कमजोर होगी, जिससे वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता बढ़ेगी और समाज को इन खतरों से मुक्ति मिलेगी।

दिल्ली घोषणा-पत्र की सराहना और UNSC विस्तार

इस G20 शिखर सम्मेलन के दौरान, 2023 के 18वें G20 दिल्ली घोषणा-पत्र की सभी सदस्य देशों ने सराहना की। इस घोषणा-पत्र में महिला सशक्तिकरण, जलवायु परिवर्तन फंड और डिजिटल लिटरेसी को बढ़ावा देने जैसे प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जिनकी समीक्षा कर नए और प्रभावशाली निर्णय लिए गए। एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण परिणाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का विस्तार कर भारत को भी जगह दिए जाने का प्रस्ताव पारित होना था। यह कदम भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा और अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा में उसके योगदान। की बढ़ती मान्यता को दर्शाता है, जिससे वैश्विक शासन में भारत की भूमिका और मजबूत होगी।

G20 का गठन और इतिहास

G20 को दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के समूह G7 के विस्तार के रूप में देखा जाता है। G7 में फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा जैसे देश शामिल हैं। G20 के गठन का प्रेरणा स्रोत 1997-98 का एशियाई वित्तीय संकट था, जिसने थाईलैंड, इंडोनेशिया और कोरिया जैसे कई एशियाई देशों को गंभीर रूप से प्रभावित किया था। उस समय, वैश्विक आर्थिक निर्णय मुख्य रूप से G7 द्वारा लिए जाते थे। हालांकि, संकट ने G7 सदस्यों के बीच एक महत्वपूर्ण एहसास जगाया: कि केवल सात धनी देश अकेले वैश्विक अर्थव्यवस्था की जटिलताओं का प्रभावी ढंग से प्रबंधन नहीं कर सकते और यह स्पष्ट हो गया कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे प्रमुख विकासशील देशों को भी शामिल करना व्यापक और प्रभावी वैश्विक शासन के लिए आवश्यक है। परिणामस्वरूप, G20 का गठन 1999 में हुआ। शुरुआत में, यह केवल वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों का एक मंच था। हालांकि, 2008 में, इसकी स्थिति को ऊपर उठाने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया, जिससे देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी इसमें शामिल हो सकें। पहली लीडर्स समिट नवंबर 2008 में वॉशिंगटन में हुई, और तब से, ये उच्च-स्तरीय शिखर सम्मेलन सालाना आयोजित किए जाते हैं, जिससे G20 अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में अपनी भूमिका मजबूत कर रहा है।

दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार राष्ट्रीय आपदा घोषित

G20 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर, दक्षिण अफ्रीका को आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। शुक्रवार को, देश के कई शहरों में बड़ी संख्या में महिलाएं इकट्ठा हुईं, कार्रवाई की मांग कर रही थीं। लगातार दबाव और विरोध प्रदर्शनों के बाद, दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने महिलाओं पर अत्याचार को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का अभूतपूर्व कदम उठाया। यह घोषणा संकट की गंभीरता और इसे संबोधित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जिससे इस गंभीर सामाजिक समस्या पर तत्काल ध्यान दिया जा सके।

G20 वीमेन शटडाउन आंदोलन

जोहान्सबर्ग, प्रिटोरिया, केप टाउन और डरबन सहित कम से कम 15 स्थानों पर हुए विरोध प्रदर्शनों में महिलाएं काले। कपड़े पहनकर सड़कों पर उतरीं, जो पीड़ितों के लिए शोक और व्यापक हिंसा के खिलाफ विरोध दोनों का प्रतीक था। उनके प्रदर्शन का एक मार्मिक क्षण यह था कि महिलाएं 15 मिनट तक चुपचाप जमीन पर लेटी रहीं, यह एक प्रतीकात्मक कार्य था जो इस दुखद आंकड़े का प्रतिनिधित्व करता है कि दक्षिण अफ्रीका में हर दिन लगभग 15 महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। इस शक्तिशाली आंदोलन को "G20 वीमेन शटडाउन" नाम दिया गया। था, जिसे "वूमेन फॉर चेंज" नामक संस्था ने आयोजित किया था। आयोजकों ने महिलाओं और LGBTQ+ समुदाय से एक दिन के लिए काम और खर्च से दूर रहने का आग्रह किया, जिसका उद्देश्य समाज। और अर्थव्यवस्था में उनकी अपरिहार्य भूमिका को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना था, जिससे उनकी अनुपस्थिति के गहरे प्रभाव को उजागर किया जा सके।

अन्य विरोध प्रदर्शन और सामाजिक अशांति

लैंगिक हिंसा के महत्वपूर्ण मुद्दे के अलावा, दक्षिण अफ्रीका में G20 शिखर सम्मेलन के साथ-साथ अन्य प्रकार की सामाजिक अशांति भी देखी गई। जलवायु परिवर्तन और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती असमानता पर केंद्रित कार्यकर्ताओं ने G20 की इन क्षेत्रों में कथित कमियों के खिलाफ अपनी असहमति व्यक्त करते हुए एक अलग शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इसके अतिरिक्त, श्वेत अल्पसंख्यक समुदाय के यूनियनों और विभिन्न आप्रवासन-विरोधी समूहों ने भी बेरोजगारी और कथित भेदभाव से संबंधित शिकायतों को उठाते हुए अपने विरोध प्रदर्शन किए। इन विविध विरोध प्रदर्शनों ने सामूहिक रूप से एक ऐसे राष्ट्र की तस्वीर पेश की जो एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय। मंच की मेजबानी करते हुए भी कई सामाजिक-आर्थिक और मानवाधिकार मुद्दों से जूझ रहा है, जिससे वैश्विक ध्यान आकर्षित हुआ।