Donald Trump News / ट्रंप की 'Make in America' रणनीति कितनी प्रभावशाली होगी, भारत पर कैसे पड़ेगा असर

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से वैश्विक राजनीति और व्यापार में उथल-पुथल बढ़ी है। उनकी 'मेक इन अमेरिका' नीति ने कंपनियों पर अमेरिका में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए दबाव डाला। 15% कॉरपोरेट टैक्स प्रस्ताव आकर्षक है, लेकिन उच्च लेबर लागत बड़ी चुनौती है। भारत की मैन्यूफैक्चरिंग पर इसका गहरा असर पड़ेगा।

Vikrant Shekhawat : Jan 28, 2025, 06:00 AM
Donald Trump News: पिछले साल अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में उथल-पुथल मच गई। ट्रंप ने अमेरिका को फिर से महान बनाने के वादे के साथ न केवल घरेलू नीतियों में बदलाव किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी बड़ा प्रभाव डाला।

‘मेक इन अमेरिका’ की रणनीति और उसका असर

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों को देश में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए आकर्षक योजनाएं पेश कीं, जिनमें 15% कॉरपोरेट टैक्स रेट का प्रस्ताव सबसे अहम है। यह योजना अमेरिका में उत्पादन के लिए प्रोत्साहन देने का वादा करती है, लेकिन इसने एशियाई देशों में बसे मैन्युफैक्चरिंग हब के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

हालांकि, अमेरिका का उच्च श्रम खर्च कंपनियों को झिझकने पर मजबूर कर सकता है। अमेरिका में उत्पादन लागत एशियाई देशों की तुलना में कहीं अधिक है, जो कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

चीन और अन्य एशियाई देशों पर प्रभाव

चीन ने पिछले कुछ दशकों में सस्ते श्रम, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र बनने में कामयाबी पाई है। वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों ने भी कम लागत और अनुकूल नीतियों के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ों और जूतों के उत्पादन में खुद को स्थापित किया। लेकिन अमेरिका की चिप मैन्युफैक्चरिंग में अभी भी बड़ी बढ़त है, जो उसकी तकनीकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।

भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की स्थिति

भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को अभी भी कई संरचनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) पर भारत की जीडीपी का सिर्फ 0.64% खर्च होता है, जो चीन (2.4%) और अमेरिका (3.5%) की तुलना में बहुत कम है। यह इनोवेशन के मामले में भारत को पीछे रखता है।

भारत की लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी का लगभग 14-15% है, जो उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करती है। नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी 2022 के तहत इसे घटाकर 9% करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन यह अभी भी लंबी प्रक्रिया है।

PLI (Production Linked Incentive) स्कीम जैसे कदम मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए हैं, लेकिन इनका असर धीमा है। इसके अलावा, पुरानी तकनीक और कड़े नियम भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग रेस में पीछे कर रहे हैं।

ट्रंप की रणनीति का भारतीय कंपनियों पर असर

ट्रंप की ‘मेक इन अमेरिका’ रणनीति का सीधा प्रभाव भारतीय कंपनियों पर पड़ सकता है, खासकर आईटी और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों पर। अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित करना भारतीय कंपनियों के लिए महंगा हो सकता है, जिससे वे वैकल्पिक बाजारों की तलाश कर सकती हैं।

भारत को न केवल अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने की जरूरत है, बल्कि इनोवेशन, रिसर्च और टेक्नोलॉजी में भी निवेश करना होगा। सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स सुधार पर फोकस किया जाना चाहिए ताकि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा की संभावना बढ़ सके।

निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अमेरिका को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र बनाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन यह कदम एशियाई देशों के लिए नई चुनौतियां प्रस्तुत करता है। भारत के लिए यह समय अपनी कमजोरी को सुधारने और अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करने का है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल को तेज गति से लागू करना और रिसर्च व इनोवेशन पर अधिक ध्यान देना भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बना सकता है।