- भारत,
- 09-Jun-2025 07:40 PM IST
Share Market News: शेयर बाजार में निवेश के हजारों तरीके हैं — कोई पेनी स्टॉक में किस्मत आजमाता है तो कोई मल्टीबैगर स्टॉक्स की तलाश करता है। लेकिन सही मल्टीबैगर स्टॉक को भीड़ में पहचानना एक कला है, जो हर किसी को नहीं आती। इस पर मशहूर निवेश विशेषज्ञ और मोतीलाल फाइनेंशियल सर्विसेज के को-फाउंडर रामदेव अग्रवाल ने ईटी से खास बातचीत में अपने अनुभव और रणनीति साझा की है।
मल्टीबैगर ढूंढना आसान, समझना मुश्किल
रामदेव अग्रवाल का मानना है कि मल्टीबैगर स्टॉक ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन उसे समझना और भरोसा करना बहुत कम लोगों को आता है। उन्होंने कहा कि निवेश की सबसे ताकतवर अवधारणा "कंपाउंडिंग" को शायद ही कोई गंभीरता से समझता है—even IIT क्लास में भी नहीं। कंपाउंडिंग ही असली मल्टीबैगर का राज है।
दो प्रमुख तत्व: शुरुआती सहायता और अच्छा मैनेजमेंट
अग्रवाल के अनुसार, किसी भी कंपनी के मल्टीबैगर बनने के पीछे दो बड़े फैक्टर होते हैं:
-
शुरुआती चरण में मिलने वाली सहायता
-
दृढ़ और ईमानदार मैनेजमेंट
जब कंपनी के शुरुआती चरण में ही इसे सही समर्थन मिलता है और साथ में मजबूत नेतृत्व होता है, तो यह निवेशकों को गजब का रिटर्न देने की क्षमता रखती है।
उदाहरण: कंपाउंडिंग का करिश्मा
रामदेव अग्रवाल ने बताया कि:
-
यदि कोई स्टॉक 25% सालाना रिटर्न देता है, तो 10 साल में आपकी संपत्ति 10 गुना हो सकती है।
-
35% पर यह 20 गुना और
-
45% पर 40 गुना तक जा सकती है।
इसलिए अगर कोई स्टॉक 10 साल में 40 गुना बढ़ सकता है, तो उसे आज थोड़ा महंगा खरीदना भी सही हो सकता है, भले ही उसका P/E रेशियो 100 के पार क्यों न हो।
वैल्यूएशन का खेल: इंडेक्स और रियल एस्टेट से तुलना
रामदेव अग्रवाल वैल्यूएशन को गतिशील और तुलनात्मक बताते हैं। उनके अनुसार यह ठीक वैसा है जैसे रियल एस्टेट की कीमतें—नई बिल्डिंग की कीमत हमेशा पुरानी से ज्यादा होती है। शेयर बाजार में भी वैल्यूएशन हर दिन, हर घंटे बदलता रहता है — खबरों, भावनाओं और सूचनाओं के आधार पर।
लॉन्ग टर्म में फंडामेंटल ही असली राजा
उन्होंने कहा कि रिटेल निवेशक छोटी अवधि के लिए कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन लंबे समय में सिर्फ फंडामेंटल ही मायने रखता है। इसलिए मार्केट का अनुशासन और कंपनियों की बुनियादी मजबूती को समझना बेहद जरूरी है।
डिमैट अकाउंट का उछाल: निवेश की नई क्रांति
रामदेव अग्रवाल ने बताया कि:
-
2020 में सिर्फ 2 करोड़ डिमैट अकाउंट थे,
-
जो अब बढ़कर 20 करोड़ हो चुके हैं।
लेकिन इनमें से केवल 1 करोड़ अकाउंट ही गंभीर निवेशक हैं, जो कुल मार्केट वैल्यू का लगभग 90% कंट्रोल करते हैं। इसका मतलब ये है कि असली दिशा उन्हीं के फैसले तय करते हैं, जबकि नए निवेशक सिर्फ अस्थायी उतार-चढ़ाव ला सकते हैं।