India-Japan Relation / चीन को पटखनी देने के लिए रेयर अर्थ में भारत और जापान ने मिलाया हाथ!

चीन द्वारा रेयर अर्थ मैटेरियल्स की सप्लाई पर रोक से भारत की ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में हलचल मच गई है। संकट से निपटने को भारत-जापान साथ आए हैं। जापानी कंपनियां दिल्ली में साझेदारी तलाश रहीं हैं, जबकि रिलायंस और अमारा राजा सप्लाई चेन मजबूत करने को तैयार हैं।

India-Japan Relation: चीन द्वारा रेयर अर्थ मैटेरियल्स की सप्लाई पर लगाई गई पाबंदियों ने भारत की ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में हड़कंप मचा दिया है। स्मार्टफोन्स से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक की तकनीक इन मैटेरियल्स पर निर्भर है, और चीन की इस सख्ती ने भारतीय प्रोडक्शन लाइनों को ठप पड़ने के खतरे में डाल दिया है। लेकिन इस संकट में अब उम्मीद की किरण जापान के रूप में सामने आई है, जिसने भारत के साथ मिलकर सप्लाई चेन को फिर से मजबूत करने का बीड़ा उठाया है।

जापानी दिग्गज कंपनियों का दिल्ली में डेरा

मित्सुबिशी केमिकल्स, सुमिमोतो मेटल्स एंड माइनिंग और पैनासोनिक जैसी जापान की बड़ी कंपनियां इन दिनों दिल्ली में मौजूद हैं। ये सभी बैटरी एसोसिएशन ऑफ सप्लाई चेन (BASC) से जुड़ी हैं और भारत की कंपनियों के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाश रही हैं। इनका लक्ष्य है—रेयर अर्थ मैटेरियल्स और ईवी बैटरी की सप्लाई चेन को चीन की पकड़ से आज़ाद करना। चीन इस समय वैश्विक रेयर अर्थ सप्लाई का 90% से अधिक हिस्सा नियंत्रित करता है, जो किसी भी देश के लिए रणनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।

भारत की कंपनियों का पलटवार

भारतीय कंपनियां भी इस अवसर को भुनाने में जुट गई हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और अमारा राजा जैसी कंपनियां जापानी विशेषज्ञता के साथ मिलकर लीथियम-आयन बैटरी और क्रिटिकल मिनरल्स जैसे लिथियम और ग्रेफाइट की सप्लाई चेन तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। मुकेश अंबानी की अगुआई में रिलायंस इस साझेदारी को भारत के तकनीकी और बाजार सामर्थ्य के साथ मिलाकर एक नया युग शुरू करना चाहती है। वहीं अमारा राजा भी बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में अपनी पकड़ को और मजबूत करने में लगी है।

सरकार की रणनीतिक सक्रियता

भारत सरकार भी इस संकट को लेकर सतर्क हो चुकी है। वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह क्रिटिकल मिनरल्स की सप्लाई को सुरक्षित करने के लिए हर संभव कदम उठा रही है। भारत अब न केवल अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहता है, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में एक मज़बूत भूमिका निभाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। जापान के साथ तकनीकी साझेदारी इस दिशा में एक बड़ा कदम है, जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सहायक साबित हो सकता है।

चीन की चुनौती बरकरार

हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन का दबदबा तोड़ना आसान नहीं है। रेयर अर्थ एलिमेंट्स की माइनिंग से लेकर प्रोसेसिंग तक की पूरी वैल्यू चेन पर चीन का लगभग एकाधिकार है। ग्लोबल लीथियम बैटरी निर्माण में भी चीन की हिस्सेदारी 80% है, जबकि जापान मात्र 10% पर टिका है। भारत की अधिकांश ईवी कंपनियां अभी तक बैटरियों के लिए चीन पर ही निर्भर हैं। चीन की ताकत इस बात में है कि उसे कच्चे माल के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

घरेलू उत्पादन की चुनौतियां

भारत में अगर रेयर अर्थ या बैटरी का उत्पादन शुरू भी होता है तो लागत चीन से 20–30% तक अधिक हो सकती है। इसकी वजह है—भारत और जापान की कच्चे माल पर निर्भरता, जबकि चीन आत्मनिर्भर है। जापान तकनीकी सहयोग दे सकता है, लेकिन उसकी विशेषज्ञता खासकर हाइब्रिड तकनीक में अधिक है। इसके बावजूद, भारत के लिए यह संकट अवसर में बदलने का समय है।