- भारत,
- 22-Nov-2025 05:44 PM IST
दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन का दूसरा सत्र शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभावशाली संबोधन का गवाह बना। यह पहली बार था जब दक्षिण अफ्रीकी महाद्वीप पर जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसने इसे ग्लोबल साउथ के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बना दिया और 'सॉलिडैरिटी, इक्वालिटी, सस्टेनेबिलिटी' की थीम के तहत, पीएम मोदी ने भारत की प्राचीन अवधारणा 'वसुधैव कुटुंबकम्' को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया, जिसका अर्थ 'वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर' है। उनका भाषण समावेशी विकास, जलवायु न्याय और ग्लोबल साउथ की आवाज को सशक्त। करने पर केंद्रित था, जिसकी वैश्विक नेताओं और विश्लेषकों ने व्यापक सराहना की।
'वसुधैव कुटुंबकम्' का वैश्विक आह्वान
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में 'वसुधैव कुटुंबकम्' के सिद्धांत को वैश्विक एकजुटता और सहयोग के आधार के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने इस दर्शन को वर्तमान वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बताया। यह अवधारणा न केवल भारत की विदेश नीति का मूल है, बल्कि यह दर्शाती है कि कैसे भारत दुनिया को एक परिवार के रूप में देखता है, जहां सभी सदस्य एक-दूसरे के कल्याण और प्रगति के लिए मिलकर काम करते हैं। इस दृष्टिकोण ने वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को एक ऐसे देश के रूप में मजबूत किया जो केवल अपने हितों की नहीं, बल्कि पूरी मानवता के कल्याण की बात करता है।दक्षिण अफ्रीका का ऐतिहासिक महत्व और गांधी जी का संदेश
पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए की। उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन का विशेष रूप से उल्लेख किया, जिसने अहिंसा और समानता के सिद्धांतों को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि यह भूमि, जहां गांधी जी ने इन महान संदेशों को प्रसारित किया, आज वैश्विक एकजुटता का प्रतीक बनी हुई है और यह संदर्भ न केवल भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंधों को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे अतीत के संघर्षों से सीखकर वर्तमान में वैश्विक सहयोग की नींव रखी जा सकती है। यह जी-20 जैसे मंचों पर साझा मूल्यों और सिद्धांतों को मजबूत करने का एक शक्तिशाली तरीका था।अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता: एक मील का पत्थर
प्रधानमंत्री मोदी ने 2023 में भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ (एयू) को जी-20 की स्थायी सदस्यता दिलाने के भारत के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस फैसले को विकासशील देशों की साझा विरासत को मजबूत करने वाला एक महत्वपूर्ण कदम बताया और अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता प्रदान करना ग्लोबल साउथ की आवाज को वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह भारत की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह वैश्विक मंच पर सभी की भागीदारी और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना चाहता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों का जिनकी आवाज अक्सर अनसुनी रह जाती है। यह कदम वैश्विक शासन संरचनाओं को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।समावेशी आर्थिक विकास पर जोर
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनमें से पहला समावेशी आर्थिक विकास था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। इस संदर्भ में, उन्होंने भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) और आयुष्मान भारत मॉडल को दुनिया के लिए उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। यूपीआई ने भारत में डिजिटल लेनदेन में क्रांति ला दी है, जबकि आयुष्मान भारत ने लाखों लोगों को स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान की है और हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि विकासशील देशों को समावेशी विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सस्ती पूंजी और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता है, ताकि वे इन मॉडलों को अपना सकें और अपनी आबादी को लाभान्वित कर सकें। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और विकासशील देशों की आवश्यकताएँ पीएम मोदी ने बताया कि कैसे भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से वित्तीय समावेशन और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा दिया है। यूपीआई ने करोड़ों भारतीयों को डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ा है, जिससे छोटे। व्यवसायों और व्यक्तियों को आसानी से लेनदेन करने में मदद मिली है। इसी तरह, आयुष्मान भारत योजना ने गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करके स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की है और उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इन सफल मॉडलों को अन्य विकासशील देशों में दोहराने के लिए, उन्हें पर्याप्त वित्तीय सहायता और उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुंच की आवश्यकता होगी। यह वैश्विक सहयोग और साझेदारी के महत्व को दर्शाता है ताकि। विकास के लाभों को विश्व स्तर पर साझा किया जा सके।जलवायु लचीलापन और न्याय की मांग
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया दूसरा प्रमुख मुद्दा जलवायु लचीलापन था। उन्होंने स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन कोई विकसित या विकासशील देशों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता के लिए एक संकट है। उन्होंने भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य का उल्लेख किया, जिसके तहत भारत ने 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का संकल्प लिया है। यह लक्ष्य जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ग्लोबल साउथ को जलवायु न्याय मिलना चाहिए। इसका अर्थ है कि विकसित देशों को ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिए अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए और विकासशील देशों को।जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने 'लॉस एंड डैमेज फंड' को मजबूत करने का भी आह्वान किया, जो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान और क्षति के लिए विकासशील देशों को मुआवजा प्रदान करता है। भारत का नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य और ग्लोबल साउथ के लिए जलवायु न्याय भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है और 500 गीगावाट का लक्ष्य एक साहसिक कदम है जो वैश्विक जलवायु प्रयासों में भारत की अग्रणी भूमिका को दर्शाता है। पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले ग्लोबल साउथ के देशों को पर्याप्त समर्थन मिलना चाहिए और जलवायु न्याय का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की लागत और लाभों को समान रूप से साझा किया जाए, और जो देश ऐतिहासिक रूप से कम उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिए सहायता मिले। 'लॉस एंड डैमेज फंड' को मजबूत करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जिससे उन देशों को मदद मिल सकेगी जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का सामना कर रहे हैं।कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बहुपक्षीय सुधार
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और बहुपक्षीय सुधारों को तीसरे प्रमुख मुद्दे के रूप में उठाया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एआई को मानवीय मूल्यों से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि यह असमानता को न बढ़ाए बल्कि सभी के लिए लाभ सुनिश्चित करे। एआई की तीव्र प्रगति के साथ, इसके नैतिक उपयोग और शासन पर वैश्विक सहमति बनाना महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि ग्लोबल गवर्नेंस सभी देशों का प्रतिनिधित्व करे और वर्तमान वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे। उन्होंने कहा कि मौजूदा बहुपक्षीय संस्थाएं अब 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह। से तैयार नहीं हैं और उन्हें अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। एआई का नैतिक उपयोग और वैश्विक शासन में सुधार की आवश्यकता कृत्रिम बुद्धिमत्ता में मानवता के लिए अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इसके अनियंत्रित। विकास से सामाजिक असमानता और नैतिक दुविधाएं भी पैदा हो सकती हैं। पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि एआई के विकास और उपयोग को मानवीय मूल्यों, जैसे निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही, के साथ संरेखित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक शासन संरचनाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी संस्थाओं को अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि बनाने की आवश्यकता है और वर्तमान में, ये संस्थाएं दुनिया की बदलती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करती हैं, और उनमें सुधार से उन्हें वैश्विक चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान करने में मदद मिलेगी।आतंकवाद और वैश्विक चुनौतियों के खिलाफ एकजुटता
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में आतंकवाद, महामारी और आर्थिक अस्थिरता जैसी वैश्विक चुनौतियों से लड़ने के लिए एकजुटता का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इन खतरों का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग ही एकमात्र हथियार है। उन्होंने भारत के 'पूर्ण मानवतावाद' के सिद्धांत को भी साझा किया, जो सभी के कल्याण पर आधारित है। यह सिद्धांत दर्शाता है कि भारत वैश्विक समस्याओं को केवल अपने दृष्टिकोण से नहीं देखता, बल्कि पूरी मानवता के व्यापक हित में समाधान खोजने का प्रयास करता है और यह दृष्टिकोण वैश्विक शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। प्रधानमंत्री मोदी का लगभग 15 मिनट का यह संबोधन बेहद प्रभावशाली रहा। उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और अन्य वैश्विक नेताओं का धन्यवाद किया। उनके संबोधन के बाद, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर #ModiAtG20 ट्रेंड करने लगा, जो उनके भाषण की व्यापक पहुंच और प्रभाव को दर्शाता है। पीएम मोदी ने स्वयं एक्स पर पोस्ट किया, “जोहान्सबर्ग से वैश्विक संदेश: एक परिवार, एक भविष्य। ” विश्लेषकों का मानना है कि यह भाषण भारत की वैश्विक नेतृत्व। भूमिका को और मजबूत करता है, खासकर ग्लोबल साउथ के देशों के बीच। यह दर्शाता है कि भारत एक जिम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है जो साझा चुनौतियों का समाधान खोजने और एक अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी विश्व व्यवस्था बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। भाषण का प्रभाव और भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका निष्कर्ष: जोहान्सबर्ग घोषणा और आगे का मार्ग जोहान्सबर्ग में जी-20 शिखर सम्मेलन 23 नवंबर तक चलेगा, जहां विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के बाद एक संयुक्त घोषणा पर अंतिम मुहर लगेगी। अमेरिकी बहिष्कार के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति और उनके विचारों ने ग्लोबल साउथ को एक मजबूत आवाज प्रदान की। उनके संबोधन ने न केवल भारत की प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के लिए एक सहयोगात्मक और मानवतावादी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी बल दिया। यह शिखर सम्मेलन वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के। लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हो रहा है, जिसमें भारत एक केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।Spoke at the first session of the G20 Summit in Johannesburg, South Africa, which focussed on inclusive and sustainable growth. With Africa hosting the G20 Summit for the first time, NOW is the right moment for us to revisit our development parameters and focus on growth that is… pic.twitter.com/AxHki7WegR
— Narendra Modi (@narendramodi) November 22, 2025
#WATCH | Johannesburg, South Africa | Prime Minister Narendra Modi attends the G-20 Summit
— ANI (@ANI) November 22, 2025
(Source: Reuters/Host Broadcaster Pool) pic.twitter.com/NtDmjfl0cF
