India-China / मानसरोवर झील के करीब चीन बना रहा है नया मिसाइल बेस, सैटेलाइट की तस्वीरों से हुआ खुलासा

ABP News : Aug 21, 2020, 08:29 PM
India-China: लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चल रही तनातनी और विवाद सुलझाने के लिए चल रही वार्ताओं के बीच बड़ी खबर ये है कि चीन पवित्र मानसरोवर झील के करीब एक नया मिसाइल बेस तैयार कर रहा है। जमीन से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल बेस के करीब ही चीन ने कुछ नया निर्माण-कार्य भी किया है जो सैनिकों के बैरक हो सकते हैं। सैटेलाइट तस्वीरों से इस बात का खुलासा हुआ है। मानसरोवर झील भारत-चीन-नेपाल के विवादित ट्राइ-जंक्शन, लिपूलेख के बेहद करीब है, जहां चीन लगातार अपने सैनिकों की तादाद बढ़ा रहा है।

ओपन सोर्स इंटेलीजेंस, ‘डेटर्सफ’ ने सैटेलाइट तस्वीरों से इस बात का खुलासा किया है कि तिब्बत में कैलाश पर्वत से सटी मानसरोवर झील के बेहद करीब चीन ने सर्फेस टू एयर यानि ‘सैम’ (जमीन से हवा में मार करने वाली) मिसाइलों का एक बेस तैयार कर रहा है। इन सैटेलाइट इमेज में नए मिसाइल बेस का निर्माण-कार्य दिखाई पड़ रहा है। इन सैम मिसाइलों का इस्तेमाल किसी संवदेनशील सैन्य-अड्डे या फिर इमारत की हवाई-हमले से सुरक्षा के लिए अमूमन इस्तेमाल किया जाता है। ये मिसाइल सिस्टम आसमान से हमला करने वाले फाइटर-जेट, हेलीकॉप्टर या फिर ड्रोन से सुरक्षा प्रदान करता है।

इसके अलावा डेटसर्फ ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर इस बात का भी दावा किया है कि मानसरोवर झील के करीब कुछ इंफ्रस्ट्राक्चर डेवलपमेंट और कुछ रिहायशी निर्माण कार्य भी दिखाई पड़ रहा है। ये निर्माण-कार्य इस साल मई के महीने से चल रहा है। माना जा रहा है कि ये रिहायशी निर्माण-क्षेत्र चीनी सैनिकों के बैरक इत्यादि हो सकते हैं।

बता दें कि कैलाश पर्वत के करीब पवित्र मानसरोवर झील हिंदुओं का पवित्र धर्म-स्थल है। ये झील तिब्बत क्षेत्र का हिस्सा है और भारत-चीन-नेपाल सीमा के बेहद करीब है। ये झील इस ट्राइ-जंक्शन के विवादित इलाके लिपूलेख और कालापानी के बेहद करीब है। ये वही लिपूलेख दर्रा और कालापानी इलाका है जिसकों लेकर हाल ही में नेपाल ने नया नक्शा जारी कर अपना बताया है। हालांकि, ये इलाके सदियों से भारत का हिस्सा हैं और उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के अधिकार-क्षेत्र में है। माना जा रहा है कि नेपाल की सरकार ने चीन की शह पर इस इलाकों को अपने नए नक्शे में शामिल किया है।

भारत के जो हिंदू् तीर्थयात्री हर साल चीन का वीजा लेकर मानसरोवर की यात्रा के लिए तिब्बत जाते हैं, वे इसी लिपूलेख दर्रे से ही होकर गुजरते हैं (एक दूसरा रास्ता सिक्किम के नाथूला दर्रे से होकर पहुंचता है)। पिथौरागढ़ के धारचूला से लिपूलेख दर्रे और फिर एलएसी पार कर मानसरोवर झील तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन ये बेहद ही कठिन और दुर्गम इलाका है जहां तक पैदल का ही ट्रैक (रास्ता) था। 8 मई को बॉर्डर रोड ऑर्गेनेजाइजेशन (बीआरओ) ने धारचूला से लिपूलेख दर्रे तक एक नई सड़क बनाई थी जिसके बनने से इस रास्ते पर लिपूलेख तक गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सड़क का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया था। इस नई सड़क के बनने से सैनिकों का एलएसी तक पहुंचने का रास्ता भी बेहद आसान हो गया है और जल्द लिपूलेख दर्रे तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन इस सड़क के बनने से नेपाल और चीन तिलमिला गए हैं।

यहां तक की लिपूलेख दर्रे के करीब आईटीबीपी ने जो तीर्थयत्रियों के लिए जो टीन-शेड तैयार किए हैं उसको लेकर भी चीनी सेना ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। ऐसी खबरें भी थी कि इन टिन-शेड्स पर चीनी सेना ने पेंट कर पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) लिख दिया था।

 यहां ये बात भी दीगर है कि जब से पूर्वी लद्दाख में भारत के साथ चीन का टकराव शुरू हुआ है तब से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि चीन की पीएलए सेना इस ट्राइ-जंक्शन से सटी एलएसी पर अपनी तैनाती लगातार बढ़ा रही है। हालांकि, भारतीय सेना ने भी इस एलएसी पर मिरर-डिप्लोयमेंट कर रखी है यानि जितने सैनिक और सैन्य साजो सामान चीनी सेना का है उतना ही भारतीय सेना का भी है। लिपूलेख और कालापानी का एरिया हालांकि आईटीबीपी (इंडिया तिब्बत बॉर्डर पुलिस) के हवाले है लेकिन अब भारतीय सेना भी यहां एलएसी पर तैनात हो चुकी है। सैन्य तौर से ये इलाका भारतीय सेना की मध्य कमान (सेंट्रल कमांड) के अंतर्गत आता है जिसका मुख्यालय लखनऊ में है। हाल ही में थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने इस कमान मुख्यालय का दौरा कर सभी कमांर्डस को ऑपरेशनली अलर्ट रहने का निर्देश दिया था।

 मध्य कमान के अंतर्गत आनी वाली एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर लिपूलेख और कालापानी के अलावा दूसरा विवादित क्षेत्र, बाड़ाहोती है जो गढ़वाल के चमोली जिले में है। ये इलाका काफी लंबे समय से भारत और चीन ने  ‘डिमिलिट्राइज़ जोन’ घोषित कर रखा है।

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