नई दिल्ली / आप कैसे याद करना चाहेंगे रामजेठमलानी को? पढ़ें और बताएं!

Vikrant Shekhawat : Sep 08, 2019, 11:10 AM
कहा जाता है रामजेठमलानी ऐसे वकील थे, जिन्होंने मौत के खिलाफ स्टे ले रखा था। परन्तु मौत तो सबको आनी ही है। जेठमलानी की भी आई, लेकिन वे देश के न्यायिक इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे। सवाल यह है मात्र 18 साल की उम्र में वकालत शुरू करने वाले रामजेठमलानी पहले और आखिरी वकील के रूप में याद किए जाएं या स्मगलरों के वकील की ख्याति के रूप में। उन्हें इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले केहरसिंह और सतवंतसिंह की पैरवी करने वाले वकील के रूप में पहचाना जाए या राजीव गांधी के हत्यारों के पक्ष में कोर्ट में खड़ा होने के लिए? संसद पर हमला करने के आरोपी अफजल गुरु के पक्ष में खड़ा होने के लिए अथवा उन्हें दुष्कर्म के मामले में आसाराम, देशद्रोह के मामले में अफजल गुरु, घोटालेबाजी के आरोपी हर्षद मेहता, कनिमोझी, जयललिता, केतन पारेख, येदियुरप्पा, लालू प्रसाद यादव के पक्ष में मुकदमा लड़ने के लिए याद किया जाएं। यह लिस्ट लम्बी है। उन्होंने रामलीला मैदान वाकये में बाबा रामदेव का बचाव किया तो हवाला मामलों में नाम आने पर लालकृष्ण आडवाणी तथा सेबी के मामले में सुब्रतो राय का भी। उम्र के अंतिम पड़ाव में राज्यसभा के उप सभापति पद चुनाव के लिए उन पर क्रॉस वोटिंग का आरोप भी लगा। अरुण जेटली के खिलाफ उन्होंने केजरीवाल के मानहानि का मुकदमा लड़ते—लड़ते उन्होंने संन्यास ले लिया। उन्हें सबसे महंगी फीस के लिए भी जाना जाएगा। यह सब वे वाकये हैं जिन्होंने राम जेठमलानी को ख्याति दिलाई। राम जेठमलानी और विवादों का साथ सिर्फ उनकी वकालत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी निजी जिंदगी, उनके बयान और शैली सभी विवादों से घिरे रहे। कभी भाजपा में शामिल रहे तो अक्सर उसकी खिलाफत भी करते रहे। यहां तक कि उन्होंने एक नई पार्टी भी बनाई तो कभी खुद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बताते रहे। 

वरिष्ठ वकील और पूर्व विधि मंत्री राम जेठमलानी का निधन, राजस्थान से राज्यसभा सांसद रहे

'बदनाम लोगों की पैरवी अनैतिक नहीं'
रामजेठमलानी कहते थे कि किसी भी व्यक्ति के दोष का फैसला न्यायालय करता है। वकील को यह अधिकार नहीं है। वकील के लिए बदनाम व्यक्ति की पैरवी करना अनैतिक नहीं है, बल्कि बदनामी के डर से किसी की पैरवी से इनकार करना अनैतिक है।
रुस्तम फिल्म तो देखी होगी आपने?
अक्षय कुमार अभिनीत रुस्तम फिल्म तो आपने देखी ही होगी, जिसमें नेवी के अफसर द्वारा हत्या के मामले में उसे बचा लिया जाता है। फैसला ज्यूरी सुनाती थी। हकीकत में यह नानावटी केस के नाम से मशहूर था और नानावटी को ज्यूरी ने बरी कर दिया था। उच्च न्यायालय में यह केस राम जेठमलानी ने नानावटी के खिलाफ लड़ा और उन्हें सजा करवाई। इसके बाद भारत में ज्यूरी की व्यवस्था ही समाप्त कर दी गई। जेठमलानी रातोंरात भारत के प्रसिद्ध वकील बन गए। यही नहीं अजय देवगन अभिनीत सुल्तान ​मिर्जा का रोल जिस स्मगलर हाजी मस्तान के उपर था, उसके वकील भी यही थे। जेसीका लाल के हत्यारे मनु शर्मा की पैरवी करने वाले भी जेठमलानी ही थे। ऐसे ही विवादित मामलों में जेठमलानी वकील बनते, मोटी फीस वसूलते। कभी शरणार्थी के रूप में मुम्बई आते वक्त जेठमलानी की जेब में मात्र एक पैसा था और बाद में वकालात के लिए मुम्बई में मात्र बैठने भर की जगह के लिए उन्हें साठ रुपए चुकाने होते थे। यही देश के सबसे महंगे वकील बने। 
वाजपेयी के मंत्रिमण्डल से निकाले गए
वाजपेयी जेठमलानी को मंत्रिमण्डल में लेना नहीं चाहते थे, लेकिन आडवाणी से नजदीकियों के चलते उन्हें मंत्रिमण्डल में लिया गया। तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और मुख्य न्यायाधीश से विवादों के चलते उन्हें मंत्रिमण्डल से हटाया गया। बाद में उन्होंने 2004 में लोकसभा का चुनाव वाजपेयी के खिलाफ लड़ा और हार गए। 2010 में उनकी बीजेपी में वापसी हुई। 2014 में उन्होंने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का बीड़ा उठाया और 2015 में उनके खिलाफ खड़े हो गए। यह चौंकाने वाला अंदाज जेठमलानी का हमेशा बना रहा।
आप मेरे मरने की तारीख क्यों जानना चाहते हैं
राम जेठमलानी को जब भी उनके रिटायरमेंट के बारे में पूछा जाता तो वे तपाक से कह देते आप मेरे मरने की तारीख क्यों जानना चाहते हैं। उन्होंने दो बाद ऐसा कहा भी कि वे वकालत नहीं करेंगे। उन्होंने घर के बाहर एक तख्ती लटका ​ली, जिस पर लिखा था कि सिर्फ महत्वपूर्ण राष्ट्रहित के मामलों में ही उनसे सम्पर्क किया जा सकता है। परन्तु एक बार उन्होंने जेसीका की हत्या का आरोपी मनु शर्मा का केस ले लिया और दूसरी बार केजरीवाल पर मानहानि के आरोपों का।
सबसे महंगे और कम उम्र वाले वकील
जेठमलानी भारत और पाकिस्तान में आज तक सबसे कम उम्र में वकालत शुरू करने वाले वकील बने हैं। उन्होंने मात्र 17 साल में एलएलबी कर ली और 18 साल की उम्र में पैरवी शुरू कर दी।  उनके पिता और दादा वकील थे, लेकिन वे चाहते थे कि राम इंजीनियर बने। तीसरी कक्षा में वे मुगल इतिहास पर वाद विवाद और प्रश्नोत्तरी में अपने शिक्षकों को भी निरुत्तर कर गए। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वे मात्र 13 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर चुके। सरकार ने उस वक्त नियम बनाया कि कोई भी एक परीक्षा पास करके वकालत में दाखिला ले सकता था। राम ने यह परीक्षा दी और अव्वल आते हुए दाखिला पाया। महज 17 साल की उम्र में राम जेठमलानी अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर चुके थे। परन्तु बार काउंसिल के नियमों के मुताबिक 21 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति वकालत का लाइसेंस नहीं पा सकता था। उन्होंने कराची हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा और अपनी बात कहने का मौका मांगा। मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें समय दिया तो उन्होंने कहा कि ‘जब मैंने वकालत में दाखिला लिया था उस वक्त ऐसा कोई नियम नहीं था कि मुझे 21 साल की उम्र से पहले लाइसेंस नहीं दिया जा सकता. लिहाजा मेरे ऊपर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए।’ मुख्य न्यायाधीश इस 17 साल के नौजवान की बात और इसके आत्मविश्वास से प्रभावित हुए और बार काउंसिल को पत्र लिख कर राम जेठमलानी को लाइसेंस देने पर विचार करने को कहा। इसके बाद नियमों में बदलाव किया गया और एक अपवाद को शामिल करते हुए 18 साल की उम्र में ही राम जेठमलानी को वकालत का लाइसेंस जारी कर दिया गया। इतनी कम उम्र में वकालत शुरू करने वाले वे देश के पहले और आखिरी व्यक्ति बन गए।

आपराधिक मामलों में जाने जाएंगे, लेकिन संवैधानिक नहीं
राम जेठमलानी संवैधानिक मामलों में कभी पैरवी नहीं कर पाए और न ही कोई मील का पत्थर छोड़ पाए। केशवानंद भारती केस, शाह बानो केस, उत्तरप्रदेश राज्य बनाम राज नारायण, मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य, मिनर्वा मिल्स केस आदि मामलों में उनका नाम नहीं आएगा। वरन जूरी व्यवस्था समाप्त करवाने वाले मामले नानावटी केस जैसे मामले उनके नाम से जरूर पहचाने जाएंगे। 

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