देशभर में क्रिसमस डे के उत्सव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं, जहां बाजार से लेकर कार्यालयों तक हर जगह क्रिसमस की सजावट देखने को मिल रही है और इसी बीच, राजस्थान से एक महत्वपूर्ण आदेश सामने आया है, जिसने स्कूलों में क्रिसमस समारोहों के आयोजन को लेकर एक नई दिशा प्रदान की है। इस आदेश के तहत, स्कूलों में क्रिसमस डे के अवसर पर बच्चों को जबरदस्ती सांता क्लॉज बनाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है और यह एक सरकारी पत्र के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि किसी भी अभिभावक या बच्चे पर सांता क्लॉज बनने का अनावश्यक दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए। यह कदम बच्चों और उनके परिवारों के अधिकारों की रक्षा तथा शैक्षिक। संस्थानों में संवेदनशीलता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
दबाव बनाना अनुचित
शिक्षा विभाग ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि किसी भी स्कूल द्वारा बच्चों या उनके अभिभावकों पर सांता क्लॉज बनने या उससे जुड़ी किसी भी गतिविधि में भाग लेने के लिए दबाव बनाना सरासर गलत है। यह निर्देश विशेष रूप से श्रीगंगानगर में जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक, कार्यालय की ओर से जारी एक पत्र में रेखांकित किया गया है। इस पत्र में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि यदि ऐसी कोई शिकायत प्राप्त होती है, जिसमें बच्चों या उनके। माता-पिता पर किसी भी प्रकार का दबाव बनाया गया हो, तो संबंधित स्कूल प्रबंधन के खिलाफ नियमों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह सुनिश्चित करना शिक्षा विभाग का प्राथमिक उद्देश्य है कि स्कूल परिसर में किसी भी प्रकार की धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधि में भागीदारी स्वैच्छिक हो और किसी पर थोपी न जाए।
स्वैच्छिक भागीदारी को प्रोत्साहन
हालांकि, शिक्षा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि किसी स्कूल में अभिभावकों और बच्चों की पूर्ण सहमति से क्रिसमस से जुड़ी गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, तो विभाग को इस पर कोई आपत्ति नहीं है। यह प्रावधान इस बात पर जोर देता है कि शैक्षिक संस्थान विभिन्न त्योहारों और परंपराओं। का सम्मान करते हैं, बशर्ते कि उनमें भागीदारी व्यक्तिगत इच्छा और सहमति पर आधारित हो। विभाग का मानना है कि स्वैच्छिक भागीदारी बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों और त्योहारों के बारे में जानने का अवसर देती है, जबकि जबरदस्ती या मानसिक दबाव की स्थिति में स्कूल प्रबंधन को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा। यह नीति स्कूलों को एक समावेशी और सम्मानजनक वातावरण बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती है, जहां हर बच्चे की भावना का सम्मान किया जाए।
वीर बाल दिवस का महत्व
इस संदर्भ में, ADEO अशोक वधवा ने एक महत्वपूर्ण बिंदु उठाया है। उन्होंने बताया कि 25 दिसंबर को, जिस दिन क्रिसमस मनाया। जाता है, उसी दिन 'वीर बाल दिवस' भी मनाया जाता है। यह दिवस साहिबजादों के अद्वितीय बलिदान की स्मृति से जुड़ा हुआ है, जो भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है। वधवा ने इस बात पर जोर दिया कि स्कूलों को अपने कार्यक्रमों में संतुलन और संवेदनशीलता बनाए रखनी चाहिए। उनका कहना था कि किसी भी प्रकार की जबरदस्ती से बचना चाहिए, ताकि एक ही दिन मनाए जाने वाले दो अलग-अलग महत्वपूर्ण आयोजनों के प्रति उचित सम्मान सुनिश्चित किया जा सके। यह निर्देश स्कूलों को सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करने और सभी छात्रों के लिए एक संतुलित शैक्षिक अनुभव प्रदान करने की याद दिलाता है।
विशेष परंपराओं को थोपने का विरोध
भारत-तिब्बत सहयोग मंच के जिला अध्यक्ष सुखजीत सिंह अटवाल ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से कुछ स्कूलों में क्रिसमस डे के नाम पर बच्चों को जबरन सांता क्लॉज बनाया जा रहा है, जिससे अभिभावकों में काफी नाराजगी देखी जा रही है। अटवाल ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि श्रीगंगानगर जिला सनातन हिंदू और सिख बहुल क्षेत्र है। ऐसे में, किसी विशेष परंपरा को बच्चों पर थोपना उचित नहीं है, क्योंकि यह स्थानीय सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के विपरीत हो सकता है। उनका बयान इस बात पर प्रकाश डालता है कि शैक्षिक संस्थानों को स्थानीय आबादी की सांस्कृतिक संवेदनशीलता का ध्यान रखना चाहिए और किसी भी एक परंपरा को दूसरों पर थोपने से बचना चाहिए।
व्यक्तिगत अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता
बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह। टीटी ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति भावनात्मक रूप से और अपनी इच्छा से किसी धर्म से जुड़ता है, तो यह उसका निजी अधिकार है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि किसी पर जबरन किसी धर्म के प्रचार-प्रसार या उससे जुड़ने का दबाव बनाया जाता है, तो यह अनुचित है और इसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। टीटी का यह बयान धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांत को रेखांकित करता है, जिसमें व्यक्ति को अपनी आस्था चुनने और उसका पालन करने का अधिकार है, लेकिन किसी भी प्रकार का दबाव या जबरदस्ती अस्वीकार्य है। यह शिक्षा विभाग के आदेश को राजनीतिक समर्थन भी प्रदान करता है, जो बच्चों के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के सम्मान पर केंद्रित है। यह सुनिश्चित करना कि स्कूल एक ऐसा वातावरण प्रदान करें जहां सभी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचानों का सम्मान किया जाए, एक स्वस्थ और समावेशी समाज के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।
आगे की राह
शिक्षा विभाग का यह आदेश स्कूलों के लिए एक स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करता है कि वे क्रिसमस जैसे त्योहारों को कैसे मनाएं। यह बच्चों और उनके परिवारों के अधिकारों की रक्षा करता है, उन्हें किसी भी प्रकार के अनावश्यक दबाव से बचाता है। यह सुनिश्चित करता है कि शैक्षिक संस्थान सभी सांस्कृतिक और धार्मिक। पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए एक सम्मानजनक और समावेशी वातावरण बनाए रखें। इस आदेश का उद्देश्य यह है कि उत्सवों को खुशी और स्वैच्छिक भागीदारी के साथ मनाया जाए, न कि किसी प्रकार के दबाव या मजबूरी के तहत। यह कदम राजस्थान में शिक्षा प्रणाली में संवेदनशीलता और संतुलन को। बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।