कोरोना अलर्ट / तो इसलिए हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पर नहीं जाते तबलीगी जमात के लोग? जाने क्यों

निजामुद्दीन औलिया की दरगाह की देखभाल और सारी जिम्मेदारी चिश्ती परिवार के पास है। यहां कई तरह के संगठन बने हुए हैं और वे सब मिलकर दरगाह की देखभाल करते हैं। वहीं, तबलीगी जमात मरकज के सर्वेसर्वा संस्थापक मौलाना इलियास कांधलवी के परपोते मौलाना साद हैं। निजामुद्दीन औलिया की दरगाह सदियों से मुसलमानों के बीच खासी अहमियत रखती है, पर तबलीगी जमात के लोग वहां नहीं जाते।

AajTak : Apr 02, 2020, 10:32 AM
दिल्ली:  निजामुद्दीन औलिया की दरगाह की देखभाल और सारी जिम्मेदारी चिश्ती परिवार के पास है। यहां कई तरह के संगठन बने हुए हैं और वे सब मिलकर दरगाह की देखभाल करते हैं। वहीं, तबलीगी जमात मरकज के सर्वेसर्वा संस्थापक मौलाना इलियास कांधलवी के परपोते मौलाना साद हैं। निजामुद्दीन औलिया की दरगाह सदियों से मुसलमानों के बीच खासी अहमियत रखती है, पर तबलीगी जमात के लोग वहां नहीं जाते। इतना ही नहीं अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सहित तमाम औलियाओं की मजारों पर इन्हें जाते नहीं देखा जाता। मजारों पर होने वाली कव्वाली और सजने वाली महफिलों को तबलीगी जमात इस्लाम का खिलाफ बताती है और हराम करार देती है।

मजारों पर विश्वास बरेलवी और सूफीज्म विचारधारा के लोग करते हैं। वे जियारत करने, चादर चढ़ाने, मन्नत मांगने इन मजारों पर जाते हैं। मुस्लिमों के अलावा हिंदू, सिख सहित बाकी धर्मों के लोग भी दरगाह जाते हैं। मजारों पर जाने वाले मुसलमान निजामुद्दीन औलिया ही नहीं तमाम बुजुर्गों की मजारों पर जाते हैं और उन्हें अल्लाह के करीब मानते हैं। दरगाहों पर जाने को ये लोग रुहानी तस्कीम (आध्यात्मिक सुकून) मानते हैं।

सुन्नी इस्लाम में चार बड़े संप्रदाय हैं, इमाम अबू हनीफा को मानने वाले हनफी मुस्लिम कहलाते हैं। भारतीय उप-महाद्वीप में 90 फीसदी सुन्नी मुसलमान हनफी मसलक के मानने वाले हैं। तबलीगी जमात और बरेली या सूफीज्म दोनों हनफी मसलक से ही हैं। इनके नमाज, रोजा, हज जैसे तरीके एक हैं, बस मजारों पर जाने और न जाने को लेकर विवाद है। मुसलमानों में तबलीगी जमात के लोग देवबंदी विचाराधारा के करीब हैं।

देवबंदी विचारधारा दरगाहों, मजारों पर जाने को लेकर साफ तौर पर मना तो नहीं करती, लेकिन यह जरूर कहती है कि इससे पूजा पद्धति को बढ़ावा मिलता है। इतना ही नहीं इनका कहना है कि जो मर गया है वो आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। ऐसे में उनसे किसी तरह की कोई मन्नत नहीं मांगनी चाहिए। हालांकि, ये कहते हैं कि मजारों पर जाकर सिर्फ फातिहा पढ़िए और मरने वाले को बख्श कर चले आइए। न तो मजारों को चूमें और न ही किसी तरह की चादर वगैराह चढ़ाएं। यही वजह है कि तबलीगी जमात के लोग मरकज से चंद कदमों की दूरी पर स्थित निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर नहीं जाते

दूसरी तरफ बरेलवी और सूफीज्म मुस्लिम कहता है कि औलिया मरे नहीं बल्कि दुनिया से परदा हो गए हैं। वो आज भी हमारी बातों को सुनते हैं और अल्लाह तक हमारी सिफारिश करते हैं। हजरत निजामुद्दीन औलिया सहित तमाम मुस्लिम बुजुर्गों के जन्मदिन पर उनकी मजारों पर उर्स लगते हैं और कव्वाली होती है। इसमें हर धर्म के लोग शरीक होते हैं। इसे एक रुहानी महफिल करार दिया जाता है। लेकिन तबलीगी जमात और देवबंदी इस तरह की महफिल और कव्वाली को जायज नहीं मानते इसलिए इससे दूर रहते हैं