देश के सबसे बड़े और सम्मानित कारोबारी घरानों में से एक, टाटा ग्रुप में एक बार फिर ‘अक्टूबर’ का महीना बड़ी उथल-पुथल लेकर आया है। साल 2016 में साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने की घटना अभी भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा है, और अब एक और ‘मिस्त्री’ के बाहर जाने की खबर ने कॉरपोरेट जगत में हलचल मचा दी है। इस बार, दिवंगत रतन टाटा के बेहद करीबी माने जाने वाले मेहली। मिस्त्री को टाटा ट्रस्ट्स से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। यह फैसला टाटा संस की होल्डिंग कंपनियों, यानी सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) में एक बड़े उलटफेर का संकेत है, जहां मेहली के कार्यकाल को आगे बढ़ाने की मंजूरी नहीं मिली है और यह घटना समूह के भीतर एक गंभीर कॉर्पोरेट खींचतान की ओर इशारा करती है, खासकर ऐसे समय में जब स्थिरता की उम्मीद की जा रही थी।
कार्यकाल विस्तार पर असहमति
टाटा ट्रस्ट्स में यह बड़ा निर्णय मेहली मिस्त्री के तीन साल के कार्यकाल को बढ़ाने के प्रस्ताव पर हुई वोटिंग के बाद आया है और इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रस्ट के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने पिछले शुक्रवार को मेहली मिस्त्री के कार्यकाल को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को ट्रस्टी डेरियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर जहांगीर ने अपनी सहमति दे दी थी। हालांकि, टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा (जो रतन टाटा के सौतेले भाई भी हैं),। वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी विजय सिंह ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया। इन तीन प्रभावशाली सदस्यों के विरोध के कारण मिस्त्री के कार्यकाल पर प्रभावी रूप से पूर्णविराम लग गया, जिससे उनकी विदाई का रास्ता साफ हो गया। यह वोटिंग प्रक्रिया ट्रस्ट के भीतर की आंतरिक गतिशीलता और सत्ता समीकरणों को उजागर करती है।
'अक्टूबर' का अजीब संयोग
यह एक अजीब इत्तेफाक है कि मेहली मिस्त्री को भी उसी अक्टूबर महीने में हटाया जा रहा है, जिसमें 2016 में उनके चचेरे भाई साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से नाटकीय ढंग से हटाया गया था। साइरस मिस्त्री, शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप से थे, जिनकी टाटा संस में 18. 37% की बड़ी हिस्सेदारी है। मेहली भी उसी परिवार के चचेरे भाई हैं, जो इस घटनाक्रम को और भी दिलचस्प बनाता है। यह ‘अक्टूबर’ का संयोग टाटा समूह के इतिहास में एक बार फिर से उथल-पुथल और बड़े कॉर्पोरेट फैसलों का महीना बन गया है। यह दिखाता है कि समूह में महत्वपूर्ण निर्णय अक्सर अप्रत्याशित समय पर लिए जाते हैं, जिससे पूरे उद्योग पर असर पड़ता है।
मेहली मिस्त्री एम. पल्लोनजी ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रमोटर हैं। यह ग्रुप इंडस्ट्रियल पेंटिंग, शिपिंग, ड्रेजिंग और कार डीलरशिप जैसे कई विविध क्षेत्रों में काम करता है और खास बात यह है कि टाटा की कई कंपनियां उनके कारोबार से जुड़ी हुई हैं या उनकी पार्टनर रही हैं, जिससे टाटा समूह के साथ उनके व्यावसायिक संबंध काफी गहरे रहे हैं। इसके अलावा, वह ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल ट्रस्ट के भी एक महत्वपूर्ण ट्रस्टी हैं। उनका संबंध सिर्फ कारोबार तक सीमित नहीं था; वह दिवंगत रतन टाटा के बेहद करीबी माने जाते थे और समूह के भीतर उनकी एक खास पहचान थी। उनकी विदाई से टाटा ट्रस्ट्स के भीतर एक महत्वपूर्ण रिक्तता पैदा होगी, और यह देखना बाकी है कि उनकी जगह कौन लेगा और ट्रस्ट की भविष्य की रणनीति क्या होगी।
**कौन हैं मेहली मिस्त्री?
टाटा ट्रस्ट्स का महत्व और आगे की राह
यह समझना महत्वपूर्ण है कि टाटा ट्रस्ट्स, टाटा समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी टाटा संस में 66% हिस्सेदारी रखते हैं। इसमें भी दो प्रमुख ट्रस्ट हैं - सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT), जो मिलकर टाटा संस में 51% की मैज्योरिटी हिस्सेदारी के मालिक हैं। इसका सीधा मतलब है कि इन ट्रस्टों का फैसला ही टाटा समूह की दिशा तय करता है और यह समूह के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। रतन टाटा के निधन के बाद, यह उम्मीद की जा रही थी कि समूह में स्थिरता। आएगी, लेकिन ट्रस्ट के भीतर की यह खींचतान कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। सूत्रों ने यह भी बताया है कि टाटा ग्रुप के कुछ शीर्ष अधिकारियों ने हाल ही में दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों से भी मुलाकात की थी, जिससे इस पूरे घटनाक्रम की गंभीरता और संभावित राजनीतिक आयामों का पता चलता है और यह कदम समूह के भीतर आंतरिक पुनर्गठन और बाहरी प्रभाव दोनों के संकेत देता है, जो आने वाले समय में और भी स्पष्ट हो सकते हैं।