Donald Trump News / ट्रंप की डॉलर के 'दुश्मनों' को नई धमकी, कहा- चुकानी होगी बड़ी कीमत

डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को चेताया कि अगर वे डॉलर से दूरी बनाते हैं, तो उनके निर्यात पर 10% टैरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप ने डी-डॉलराइजेशन को डॉलर पर हमले जैसा बताया। भारत ने पलटवार करते हुए कहा कि ब्रिक्स का एजेंडा डॉलर को कमजोर करना नहीं है।

Donald Trump News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर टैरिफ के हथियार का इस्तेमाल करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। व्हाइट हाउस में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ब्रिक्स देशों को कड़ी चेतावनी दी, जिसमें कहा गया कि अगर इन देशों ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की कोशिश की, तो उनके निर्यात पर 10 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। यह बयान नए क्रिप्टोकरेंसी कानून पर हस्ताक्षर समारोह के दौरान आया, जिसका मूल उद्देश्य डिजिटल असेट्स के लिए नियम बनाना था, लेकिन ट्रंप ने इस मंच का उपयोग उभरती अर्थव्यवस्थाओं को आर्थिक दबाव का संदेश देने के लिए किया।

ब्रिक्स पर ट्रंप की नजर

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के ब्रिक्स गठबंधन का विस्तार अब मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तक हो चुका है। यह समूह लंबे समय से स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है, जिसे ट्रंप ने अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरे के रूप में देखा। ट्रंप ने दावा किया कि उनकी चेतावनियों का असर दिख रहा है, क्योंकि ब्रिक्स की हालिया बैठक में भागीदारी कम थी। उन्होंने कहा, "वे टैरिफ नहीं चाहते। मैंने उन पर बहुत जोरदार प्रहार किया है, और यह जल्द ही खत्म हो जाएगा।"

भारत की प्रतिक्रिया: डी-डॉलराइजेशन से दूरी

भारत, जो ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है, ने डी-डॉलराइजेशन के एजेंडे से स्पष्ट रूप से दूरी बना ली। 17 जुलाई 2025 को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "ब्रिक्स ने सीमा पार भुगतान के लिए स्थानीय मुद्राओं पर चर्चा की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम डॉलर को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।" यह बयान दर्शाता है कि ब्रिक्स देशों के बीच स्थानीय मुद्राओं को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण पर मतभेद हैं।

ट्रंप की पुरानी रणनीति

यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने डॉलर के बचाव में आक्रामक व्यापार नीतियों का सहारा लिया है। 2024 में उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर ब्रिक्स देश डॉलर के समकक्ष एक संयुक्त मुद्रा बनाने की दिशा में बढ़े, तो उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। उनकी हालिया टिप्पणी उसी रणनीति का विस्तार है, जिसमें आर्थिक दबाव के जरिए अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुता को बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।

डी-डॉलराइजेशन का मुद्दा

डी-डॉलराइजेशन का विचार नया नहीं है। कई देश, विशेष रूप से ब्राजील, रूस और चीन, लंबे समय से विश्व व्यापार में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व की आलोचना करते रहे हैं। हाल के वर्षों में, रूस और ईरान ने गोल्ड-समर्थित क्रिप्टोकरेंसी शुरू करने की योजना बनाई, जो वैश्विक व्यापार में वैकल्पिक भुगतान प्रणाली के रूप में काम कर सके। इसके अलावा, भारत और मलेशिया जैसे देशों ने स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन शुरू किया है, जबकि सऊदी अरब ने भी अन्य मुद्राओं में व्यापार की संभावनाओं पर चर्चा की है।

डॉलर की ऐतिहासिक मजबूती

अमेरिकी डॉलर की वैश्विक स्वीकार्यता का इतिहास लंबा है। 1920 के दशक में प्रथम विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने पाउंड स्टर्लिंग को पीछे छोड़कर अंतरराष्ट्रीय आरक्षित मुद्रा के रूप में अपनी जगह बनानी शुरू की। 1944 में ब्रेटन वुड्स समझौते ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद डॉलर की स्थिति को और मजबूत किया, जिसने इसे दुनिया की प्रमुख रिजर्व करेंसी बना दिया।

वैश्विक परिदृश्य और भविष्य

हाल के भू-राजनीतिक तनावों, जैसे ईरान-इजराइल और रूस-यूक्रेन युद्ध, ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्यवधान पैदा किया है। स्विफ्ट जैसी डॉलर-आधारित प्रणालियों से अलग होने की जरूरत ने छोटे देशों को वैकल्पिक मुद्राओं की तलाश के लिए प्रेरित किया है। ट्रंप की धमकियों के बावजूद, डी-डॉलराइजेशन की चर्चा वैश्विक मंच पर गूंज रही है। क्या यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बड़े बदलाव की शुरुआत है, या अमेरिकी डॉलर अपनी प्रभुता बनाए रखेगा? यह समय ही बताएगा।