Zee News : Apr 16, 2020, 08:01 PM
नई दिल्ली: कोरोना महामारी (Coronavirus) ने दुनिया के सभी देशों को एक ही जगह लाकर खड़ा कर दिया है, जहांं केवल उन्हें यही सोचना है कि तेजी से फैलते से वायरस को कैसे रोका जाए। हालांकि, कुछ छोटे देश इस लड़ाई में उम्मीद की तरह सामने आए हैं, जो यह दर्शा रहे हैं कि किस तरह के उपाय कोरोना से मुकाबले में कारगर साबित हो सकते हैं। आइसलैंड भी ऐसे कुछ चुनिंदा देशों में शामिल है। आइसलैंड ने शुरुआत में कई ऐसे फैसले लिए, जिनके चलते कोरोना दूसरे मुल्कों की तुलना में यहां कम नुकसान पहुंचा सका।महामारी से निपटने के इस ‘आइसलैंड मॉडल’ पर बाकायदा एक अध्ययन हुआ है, जिसकी रिपोर्ट न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन द्वारा मंगलवार को प्रकाशित की गई। शोधकर्ताओं ने 31 जनवरी को शुरू किए गए ऑल-आउट स्क्रीनिंग प्रोग्राम के परिणामों को भी रिपोर्ट में शामिल किया है। गौर करने वाली बात यह है कि आइसलैंड ने स्क्रीनिंग का फैसला वायरस को COVID-19 नाम मिलने और इसके वैश्विक महामारी का रूप लेने से पहले ही ले लिया था।पहले चरण में हुई पहचानरिपोर्ट के मुताबिक, आइसलैंड ने अपने अभियान को मुख्य रूप से दो चरणों में विभाजित किया। पहला चरण 31 जनवरी से शुरू हुआ था, जिसमें COVID-19 के लक्षण वाले लोगों की पहचान करना, और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की यात्रा करने वालों को चिन्हित करना शामिल था। खासतौर पर वे लोग चीन, ऑस्ट्रिया, इटली और स्विट्जरलैंड के आल्प्स इलाकों से आये थे। इसके अलावा, पॉजिटिव पाए गए व्यक्तियों के संपर्क में आने वालों का पता लगाना। इस चरण में 9,000 लोगों की जांच की गई, जिसमें से 13।3 प्रतिशत कोरोनावायरस संक्रमित पाए गए। गौरतलब है कि 28 फरवरी को आइसलैंड में कोरोना का पहला मामला सामने आया था।दूसरे चरण में शुरू की जांच13 मार्च से शुरू हुए दूसरे चरण में बड़े पैमाने पर टेस्टिंग शुरू की गई। ऐसे लोगों की भी जांच हुई, जिनमें कोरोना के हल्के या बिल्कुल भी लक्षण थे, और न ही उन्हें क्वारंटाइन किया गया था। अध्ययन में पता चला है कि पॉजिटिव मामलों का अनुपात काफी कम था। अब तक, आइसलैंड ने COVID-19 के लिए 36,000 लोगों की जांच की है, जो उसकी आबादी का 10 प्रतिशत है। यानी प्रति व्यक्ति जांच के मामले में वह दूसरों से काफी आगे है।क्या हुआ टेस्टिंग का फायदा?व्यापक स्तर पर टेस्टिंग का फायदा यह हुआ कि ऐसे लोगों की पहचान हो सकी जो लक्षण न होने के बावजूद कोरोना संक्रमित थे। पॉजिटिव रोगियों को 10 दिनों के लिए आइसोलेशन में भेजा गया, इसके अलावा, जो अन्य लोग उनके संपर्क में आये थे उनसे भी दो हफ़्तों के लिए सेल्फ- क्वारंटाइन होने के लिए कहा गया। संक्रमितों के बारे में जल्द पता चलने से उन्हें उचित उपचार मिल सका इसके साथ ही वायरस की गति को नियंत्रित करने में मदद मिली। नहीं बंद किये स्कूलअन्य देशों के विपरीत, आइसलैंड ने डे केयर सुविधाओं और प्राथमिक स्कूलों को बंद नहीं किया। हालांकि, 16 मार्च को हाई स्कूल और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए, इसके बाद स्विमिंग पूल, स्पोर्ट्स एरेना, बार और रेस्तरां को भी अगले आदेश तक बंद रहने को कहा गया। आइसलैंड में अब तक कोरोना के 1,720 मामले सामने आये हैं, और 8 लोगों की मौत हुई है। सरकार का मानना है कि संकट का सबसे बुरा समय खत्म हो गया है और 4 मई से हाई स्कूलों, विश्वविद्यालयों, संग्रहालयों और ब्यूटी पार्लर आदि को फिर से खोला जा सकता है।