भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जिससे देश कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से अग्रसर हुआ है। यह प्रणाली आज हर छोटे-बड़े शहर और गांव में इस्तेमाल की जा रही है, जिससे करोड़ों लोगों के लिए वित्तीय लेनदेन आसान हो गए हैं। हालांकि, इस अभूतपूर्व सफलता के बीच अब एक गंभीर चिंता सामने आई है, जो इसकी दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठाती है। फिनटेक सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञों ने सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को एक महत्वपूर्ण चेतावनी जारी की है, जिसमें देश के डिजिटल भुगतान सिस्टम में बढ़ते 'कॉन्सनट्रेशन रिस्क' पर प्रकाश डाला गया है।
फिनटेक कंपनियों की सरकार और RBI को चेतावनी
मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंडस्ट्री निकाय इंडिया फिनटेक फाउंडेशन (IFF) ने खुलासा किया है कि भारत में UPI के माध्यम से होने वाले कुल डिजिटल लेनदेन का 80% से अधिक हिस्सा केवल दो थर्ड पार्टी ऐप प्रदाताओं (TPAPs) यानी प्रमुख मोबाइल पेमेंट ऐप्स द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है और यह स्थिति एक गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह देश की पूरी डिजिटल भुगतान प्रणाली को कुछ चुनिंदा संस्थाओं पर अत्यधिक निर्भर बनाती है। यदि किसी भी कारणवश इन दो प्रमुख ऐप्स में से किसी एक की सेवाएं बाधित होती हैं, चाहे वह तकनीकी खराबी हो, साइबर हमला हो, या कोई अन्य परिचालन समस्या, तो इसका सीधा और व्यापक असर पूरे UPI नेटवर्क पर पड़ सकता है, जिससे लाखों-करोड़ों उपयोगकर्ताओं और व्यवसायों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
इंडिया फिनटेक फाउंडेशन (IFF) ने 29 अक्टूबर, 2025 को वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) दोनों को एक विस्तृत पत्र भेजकर इस गंभीर स्थिति से अवगत कराया है। इस पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि UPI वर्तमान में 'गंभीर कॉन्सनट्रेशन रिस्क' से जूझ रहा है, जो देश के डिजिटल भुगतान ढांचे की मजबूती के लिए एक बड़ा खतरा है और iFF ने अपनी चेतावनी में इस बात पर जोर दिया है कि देश के डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत और लचीला बनाए रखने के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। उनका मानना है कि अन्य ऐप्स को भी समान अवसर मिलने चाहिए ताकि एकाधिकार की स्थिति को रोका जा सके और प्रणाली में विविधता लाई जा सके। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कोई भी एकल बिंदु विफलता पूरे सिस्टम को प्रभावित न करे।
कॉन्सनट्रेशन रिस्क क्या है और इसके निहितार्थ
'कॉन्सनट्रेशन रिस्क' का अर्थ है किसी भी प्रणाली या बाजार का कुछ ही खिलाड़ियों पर अत्यधिक निर्भर होना। UPI के संदर्भ में, जब केवल दो ऐप्स 80% से अधिक लेनदेन संभाल रहे हैं, तो यह एक गंभीर जोखिम पैदा करता है। इस स्थिति में, यदि इन प्रमुख ऐप्स को किसी भी प्रकार की तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ता है, तो इससे पूरे देश का भुगतान नेटवर्क ठप पड़ सकता है और इसी तरह, यदि इन ऐप्स पर कोई बड़ा साइबर हमला होता है, तो यह न केवल वित्तीय डेटा की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है, बल्कि लाखों उपयोगकर्ताओं के विश्वास को भी हिला सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि इन ऐप्स से संबंधित कोई नीतिगत विवाद या नियामक समस्या उत्पन्न होती है, तो इसका व्यापक आर्थिक प्रभाव हो सकता है और यह जोखिम अर्थव्यवस्था और आम लोगों दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है, जिससे वित्तीय अस्थिरता और दैनिक जीवन में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
UPI लेनदेन में रिकॉर्ड वृद्धि के बावजूद जोखिम
राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, UPI ने हाल के महीनों में लेनदेन के मामले में नए रिकॉर्ड स्थापित किए हैं। सितंबर 2025 में, UPI के माध्यम से कुल 19. 63 अरब लेनदेन हुए, जिनका कुल मूल्य लगभग ₹24 और 90 लाख करोड़ था। इससे पहले, अगस्त 2025 में यह संख्या 20 अरब के आंकड़े को पार कर गई। थी, जो भारत में डिजिटल लेनदेन की अविश्वसनीय गति और व्यापक स्वीकृति को दर्शाता है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि UPI भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग बन गया है। हालांकि, इस प्रभावशाली वृद्धि के बावजूद, लेनदेन का अधिकांश हिस्सा कुछ चुनिंदा कंपनियों के नियंत्रण में होने से यह प्रणाली एक अंतर्निहित जोखिम के साथ आगे बढ़ रही है। यह स्थिति एक मजबूत और विविध डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता को और भी बढ़ा देती है।
सरकार और RBI से सुझाव: प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना
IFF ने अपने पत्र में सरकार, RBI और NPCI को मिलकर UPI प्रोत्साहन नीति (Incentive Mechanism) में आवश्यक बदलाव करने का सुझाव दिया है। इस नीतिगत बदलाव का मुख्य उद्देश्य छोटे और नए थर्ड पार्टी ऐप प्रदाताओं (TPAPs) को अधिक प्रोत्साहन प्रदान करना है। IFF का मानना है कि ऐसे प्रोत्साहन से UPI बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, जिससे एकाधिकार की स्थिति समाप्त होगी और अधिक विविध तथा लचीला डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र विकसित होगा। यह न केवल प्रणाली की स्थिरता को बढ़ाएगा, बल्कि नवाचार को भी प्रोत्साहित करेगा और उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध कराएगा। एक संतुलित बाजार संरचना यह सुनिश्चित करेगी कि भारत का डिजिटल भुगतान भविष्य सुरक्षित और समावेशी बना रहे।
डिजिटल भविष्य के लिए विविधता की आवश्यकता
भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए UPI एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, और इसकी सफलता को बनाए रखने के लिए इसकी अंतर्निहित कमजोरियों को दूर करना आवश्यक है। कॉन्सनट्रेशन रिस्क को कम करने और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठाना देश के वित्तीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। सरकार, RBI और NPCI को मिलकर एक ऐसी रणनीति बनानी होगी जो न केवल UPI की पहुंच का विस्तार करे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि यह प्रणाली कुछ ही खिलाड़ियों के हाथों में केंद्रित न हो। एक विविध और प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र ही भारत के डिजिटल भुगतान के भविष्य को सुरक्षित और। मजबूत बना सकता है, जिससे लाखों भारतीय बिना किसी चिंता के डिजिटल लेनदेन का लाभ उठा सकें।