वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने आज वाणिज्य। मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थायी समिति के सामने एक महत्वपूर्ण और उत्साहजनक जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि अमेरिका द्वारा हाल ही में बढ़ाए गए टैरिफ के बावजूद, भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह खुलासा भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों, टैरिफ वृद्धि और उसके प्रभावों पर विस्तृत चर्चा के लिए आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक के दौरान हुआ। यह बैठक लगभग दो घंटे तक चली, जिसमें दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिशीलता के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श किया गया। बैठक का मुख्य एजेंडा भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों का मूल्यांकन करना था, जिसमें वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल और मंत्रालय के कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे, जिन्होंने समिति के सदस्यों के सवालों का जवाब दिया और नवीनतम व्यापार आंकड़ों को प्रस्तुत किया। यह वृद्धि भारतीय उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और अमेरिकी बाजार में उनकी निरंतर मांग को रेखांकित करती है, जो टैरिफ बाधाओं के बावजूद अपनी जगह बनाने में सफल रहे हैं।
समिति द्वारा उठाए गए कड़े प्रश्न और मंत्रालय की प्रतिक्रिया
संसदीय समिति के सदस्यों ने वाणिज्य मंत्रालय से कई कड़े और तकनीकी सवाल पूछे, जो भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की जटिलताओं को दर्शाते हैं। सदस्यों ने सबसे पहले इस बात पर गंभीर सवाल उठाया कि जब भारत और अमेरिका को "रणनीतिक साझेदार" के रूप में देखा जाता है, तो फिर अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने जैसी कार्रवाई क्यों की जा रही है। यह प्रश्न दोनों देशों के बीच गहरे होते भू-राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों के बावजूद व्यापारिक मोर्चे पर उत्पन्न होने वाली बाधाओं पर चिंता को दर्शाता है और समिति के सदस्यों ने इस विरोधाभास पर स्पष्टीकरण मांगा, यह जानने की कोशिश की कि क्या ये टैरिफ रणनीतिक साझेदारी की भावना के अनुरूप हैं।
मंत्रालय के अधिकारियों ने इस पर सीधे तौर पर कोई राजनीतिक जवाब देने के बजाय, व्यापारिक आंकड़ों और बाजार की गतिशीलता के। माध्यम से स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया, यह दर्शाते हुए कि भारतीय निर्यात ने इन चुनौतियों का सामना कैसे किया है।
किसानों और प्रमुख उद्योगों पर टैरिफ के संभावित प्रभाव की चिंता
बैठक में केवल आंकड़ों। पर ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी गंभीर चर्चा हुई। समिति के सदस्यों ने विशेष रूप से भारतीय किसानों पर अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के संभावित असर को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने जानना चाहा कि अमेरिकी टैरिफ वृद्धि का भारतीय कृषि उत्पादों पर क्या प्रभाव पड़ा है और सरकार प्रभावित उद्योगों व किसानों को किस तरह राहत देने की योजना बना रही है। यह दर्शाता है कि समिति केवल व्यापारिक आंकड़ों पर ही नहीं, बल्कि देश के कृषि क्षेत्र और उससे जुड़े लाखों लोगों की आजीविका पर पड़ने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को लेकर भी गंभीर रूप से चिंतित है। इसके अतिरिक्त, समिति ने भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभों जैसे वस्त्र, फार्मा, जूट, कपास और रत्न-आभूषण सेक्टरों पर पड़े असर को लेकर भी विस्तृत जानकारी मांगी। इन क्षेत्रों में लाखों लोगों को रोजगार मिलता है और ये भारत के निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, इसलिए इन पर पड़ने वाला कोई भी नकारात्मक प्रभाव व्यापक चिंता का विषय है।
टैरिफ के बावजूद भारतीय उत्पादों की निरंतर बढ़ती मांग
वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने समिति को आश्वस्त किया कि टैरिफ बढ़ने के बावजूद भारत से अमेरिका को निर्यात में सुधार देखा गया है, जो भारतीय उत्पादों की मजबूत गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण का प्रमाण है। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि पिछले वर्ष अप्रैल-अक्टूबर की अवधि की तुलना में इस वर्ष उसी अवधि में अमेरिकी बाजार के लिए भारतीय निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई है।
यह आंकड़ा न केवल भारतीय निर्यातकों की दृढ़ता को दर्शाता है, बल्कि यह भी इंगित करता है कि अमेरिकी उपभोक्ता भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता देना जारी रखे हुए हैं, भले ही वे थोड़े अधिक महंगे हो गए हों और अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय बाजार का आकार भारत के निर्यात बाजार से कहीं बड़ा है, और घरेलू उपभोग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है। यह आंतरिक मांग बाहरी व्यापारिक झटकों से निपटने में देश की अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार प्रदान करती है, जिससे निर्यात में उतार-चढ़ाव का कुल आर्थिक विकास पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है। यह संतुलन भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और लचीलेपन को दर्शाता है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील और 'लेवल प्लेइंग फील्ड' पर अनसुलझे सवाल
समिति के सदस्यों ने भारत-अमेरिका ट्रेड डील की वर्तमान स्थिति पर भी अपडेट मांगा, जो दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है और हालांकि, इस पर वाणिज्य सचिव ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया, जिससे इस महत्वपूर्ण समझौते की प्रगति पर अनिश्चितता बनी हुई है। सदस्यों ने यह भी सवाल उठाया कि अमेरिका, रूस और चीन जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ व्यापार में भारत को "लेवल प्लेइंग फील्ड" क्यों नहीं मिलता। यह प्रश्न उन व्यापारिक असमानताओं की ओर इशारा करता है जिनका भारतीय निर्यातकों को सामना करना पड़ता है। कई उद्योगों में आयात पर छूट होने के बावजूद निर्यातकों को समान लाभ न मिलने की शिकायत भी समिति के सामने रखी गई, जो व्यापार नीतियों में संभावित विसंगतियों और निर्यातकों के लिए चुनौतियों को उजागर करती है और इन महत्वपूर्ण और जटिल सवालों पर तुरंत जवाब न दे पाने की स्थिति में, वाणिज्य सचिव ने समिति से 10 दिनों का समय मांगा, ताकि विस्तृत और तथ्यात्मक जवाब तैयार किए जा सकें।
समिति ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए मंत्रालय को अगले चरण में एक विस्तृत लिखित। जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, जिससे इन मुद्दों पर अधिक स्पष्टता आने की उम्मीद है।
अगली बैठक में व्यापक हितधारकों की भागीदारी की उम्मीद
संसदीय समिति की अगली बैठक 16 दिसंबर को निर्धारित। की गई है, जो भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर आगे की चर्चा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच होगी। इस बैठक में विदेश मंत्रालय, MSME मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, वाणिज्य और वस्त्र मंत्रालय सहित कई प्रमुख सरकारी विभागों के वरिष्ठ अधिकारी पेश होंगे। विभिन्न मंत्रालयों की यह व्यापक भागीदारी यह सुनिश्चित करेगी कि व्यापार संबंधों के बहुआयामी पहलुओं पर विचार किया जा सके, जिसमें कूटनीतिक, आर्थिक, कृषि और औद्योगिक दृष्टिकोण शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, FICCI, ASSOCHAM और अन्य प्रमुख व्यापार संगठनों को भी बुलाया जाएगा,। ताकि भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर और अधिक व्यापक तथा व्यावहारिक चर्चा की जा सके। इन व्यापारिक निकायों की उपस्थिति से निजी क्षेत्र के दृष्टिकोण और चुनौतियों को। समझने में मदद मिलेगी, जिससे सरकार को अधिक प्रभावी नीतियां बनाने में सहायता मिलेगी। यह उम्मीद की जा रही है कि अगली बैठक में व्यापारिक चुनौतियों और अवसरों पर अधिक स्पष्टता आएगी, और सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों तथा भविष्य की रणनीतियों पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की जाएगी, जिससे भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को एक नई दिशा मिल सके।