जयपुर / जयपुर में शेखावत के बहाने राजनीतिक दलों को सीख दे गए उप राष्ट्रपति

Zoom News : Aug 15, 2019, 08:55 AM
जयपुर। उपराष्ट्रपति एम.वैंकेया नायडू ने कहा है कि अब समय आ गया है जब  संसदीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए हर राजनीतिक दल को अपने सदस्यों के लिए स्वयं ही आचार संहिता का निर्माण करने की दिशा में सोचना चाहिए। 

नायडू बुधवार को बिड़ला सभागार में पूर्व उपराष्ट्रपति स्व.भैरोंसिंह शेखावत की स्मृति में आयोजित द्वितीय स्मृति व्याख्यानमाला को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीति चार ‘सी’ करक्टर, कैलिबर, कैपेसिटी और कन्डक्ट की मर्यादा में रहते हुए की जानी चाहिए जबकि आज व्यवहार में राजनीति अन्य चार ‘सी’ कास्ट, कम्यूनिटी, कैश और क्रिमिनलिटी के आधार पर की जा रही है। इसलिए जरूरी है कि सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी आचार संहिता बनाएं ताकि भारत का लोकतंत्र मजबूत हो सके।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्व शेखावत ने संसदीय लोकतंत्र की परम्पराओं को सुदृढ़ करने के लिए भारत के उपराष्ट्रपति, राज्य के मुख्यमंत्री एवं दस बार विधानसभा सदस्य के रूप में अमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि स्व. शेखावत उस परम्परा के वाहक थे जिसमें राजनीतिक मतभेद के बावजूद विरोधियों से भी सोहार्दपूर्ण सम्बन्ध रहते थे। आज यह परम्परा कहीं पीछे छूटती जा रही है। 

उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह जरूरी है कि राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी को राजनीतिक शत्रु न समझा जाए, उनके प्रति कोई कटुता न रखी जाए।  उन्होंने कहा कि वे बड़ी वेदना से कह रहे हैं कि आज राजनीतिक मूल्यों में कमी आई है, आज विपक्ष के साथ समन्वय का भाव कम होता जा रहा है। लोकतंत्र में सरकार ‘प्रपोज’ करे, विपक्ष ‘अपोज’ करे और सदन ‘डिस्पोज’ करे सबकी अपनी भूमिका है। इसके लिए विपक्ष के पास अपनी बात कहने का अधिकार होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में स्व. शेखावत की प्रगाढ़ आस्था थी जो कहते थे कि यह भारतीय लोकतंत्र की महानता है जिसमें एक किसान का बेटा भी उपराष्ट्रपति के पद तक पहुंच सका। 

नायडू ने कहा कि उपराष्ट्रपति के रूप में स्व. शेखावत ने उच्च संसदीय परम्पराओं की जो छाप छोड़ी है, वह अमिट है और वे स्वयं उस आसन पर श्री शेखावत द्वारा स्थापित आदर्शाें, मर्यादाओं का पालन करने का प्रयास करते हैंं। नायडू ने कहा कि स्व. शेखावत दूरदृष्टा थे। उन्हाेंने कहा कि गरीब, किसान के लिए उनका स्नेह और जनता से जुड़ाव स्व. शेखावत की विलक्षणता थी। वर्ष 1952 में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन को लेकर उनकी पार्टी के 8 में से 6 विधायकों के साथ छोड़ देने के बावजूद वे किसान के हित में अपने निर्णय पर अडिग रहे। वे ऎसे सरल व्यवहार के धनी थे कि हर कोई उनसे आत्मीयता अनुभव करता था। 

राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ.सी.पी.जोशी ने कहा कि स्व. शेखावत संसदीय परम्पराओं के पुरोधा, संसदीय मूल्यों के रक्षक एवं अपनी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध राजनेता थे। जोशी ने कहा कि आज के विधायक अखबार पढकर सदन में चर्चा करते हैं जबकि स्व. शेखावत सदन में जो चर्चा करते थे, मुद्दे उठाते थे, अगले दिन अखबार की खबर बनते थे। उन्होंने कहा कि 1980 में मात्र 29 वर्ष की उम्र में वे स्वयं जब विधायक बने तो लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के नाते स्व. शेखावत से उनका प्रथम परिचय हुआ। वे जब विधायक नहीं भी थे तब शेखावत से मिला स्नेह वे भूल नहीं सकते। श्रीनाथजी मंदिर के विकास में शेखावत का अत्यधिक सहयोग मिला और तीर्थ का वर्तमान रूप उसी का परिणाम है। उपराष्ट्रपति के रूप में नाथद्वारा में शेखावत के नागरिक सम्मान का अवसर भी एक विधायक के रूप में उन्हें मिला। 

राज्यसभा सांसद ओमप्रकाश माथुर ने कहा कि स्व. शेखावत एक सरल, कार्यनिष्ठ व्यक्ति थे जिन्होंने उन्हेंं संयम, सम्पर्क और स्नेह का महत्व बताया।  विधानसभा मेें प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि स्व. शेखावत अपनी विचारधारा के लिए अटल रहने वाले व्यक्ति थे।  स्वागत भाषण अभिमन्यु सिंह राजवी ने दिया। इस मौके पर पुलिस बैंण्ड पर राष्ट्रगान हुआ एवं चित्रकार योगी ने कैनवास पर स्व. शेखावत का चित्र बनाया। इस अवसर पर विधायक नरपतसिंह राजवी एवं विभिन्न गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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