देश / ऐसा क्या हुआ जो महज 2 साल में बदल गए गुलाम नबी आजाद के सुर

AajTak : Aug 29, 2020, 08:46 AM
Delhi: कांग्रेस में बदलाव की मांग का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का दो साल पुराना एक वीडियो काफी चर्चा में है। यह वीडियो 18 मार्च 2018 का है जब दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का महाधिवेशन हुआ था। वीडियो में आजाद एक प्रस्ताव में कांग्रेस अध्यक्ष को कार्यसमिति के सदस्यों के नामांकन के लिए अधिकृत करते हुए सुने जा रहे हैं, जबकि अब उनका कहना है कि कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के लिए चुनाव कराए जाने चाहिए।

गांधी परिवार के वफादार नेताओं ने अब मांग उठाई है कि उन सभी बागी (पार्टी से नाराज) नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाए जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देशों की अवहेलना की है। 

नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के उन नाराज नेताओं में एक हैं जिनकी मांग है कि सीडब्ल्यूसी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर चुनाव कराया जाना चाहिए। हालांकि, ठीक 29 महीने पहले उनकी राय इससे अलग थी। 18 मार्च 2018 को दिल्ली में आयोजित पार्टी महाधिवेशन में उन्होंने एक प्रस्ताव रखते हुए पार्टी अध्यक्ष को सीडब्ल्यूसी सदस्यों के चयन के लिए पूरी तरह से अधिकृत माना था। इसका एक वीडियो पार्टी सर्किल में तेजी से सुर्खियां बटोर रहा है। 

पूर्व में आजाद के बयान

महाधिवेशन में आजाद ने कहा था, 'हमारी पार्टी के संविधान में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव का एक प्रावधान है। 135 साल के इतिहास में कई नेता अध्यक्ष हुए जिनका चुनाव हुआ था। लेकिन बहुत कम बार ही ऐसा हुआ, लगभग दर्जन बार से भी कम जब वर्किंग कमेटी के लिए चुनाव कराए गए। अक्सर एआईसीसी पार्टी अध्यक्ष पर यह जिम्मेदारी छोड़ देता है कि वह सीडब्ल्यूसी का गठन करे। उसकी जिम्मेदारी होती है कि वह अलग-अलग क्षेत्रों से सदस्यों का चयन करता है। यह हमारी परिपाटी रही है कि अध्यक्ष ही सीडब्ल्यूसी का गठन करता है। मैं एक प्रस्ताव रखते हुए पार्टी अध्यक्ष को वर्किंग कमेटी बनाने के लिए अधिकृत करता हूं। मुझे खुशी है कि लोगों ने इसे एक सुर में पारित कर दिया।' 

राज्यसभा का डर

अब सवाल उठता है कि महज दो साल में गुलाम नबी आजाद के विचार में ऐसा क्या बदलाब हो गया? आजाद गांधी परिवार के सबसे वफादार नेताओं में एक रहे हैं जिससे उनकी यात्रा राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष तक तय हुई। आज उनका नाम पार्टी के बागी नेताओं में शुमार है। लिहाजा कई नेताओं को ताज्जुब है कि ऐसा क्या हुआ।

आजाद का मानना है कि जो पत्र जारी किया गया वह पार्टी को मजबूत करने के लिए था। पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले आजाद समेत 23 नेताओं का कहना है कि यह पार्टी हित में है लेकिन बाकी नेताओं की राय कुछ और ही है। पार्टी के एक नेता का मानना है कि आजाद का बागी होना उनके निकट भविष्य की एक झांकी हो सकती है। पार्टी के एक सूत्र ने कहा, 'उनके (आजाद) राज्यसभा के अगले कार्यकाल को लेकर अभी कोई निश्चितता नहीं है जो फरवरी 2021 में समाप्त हो रहा है। हाल में मल्लिकार्जुन खड़गे को कर्नाटक से राज्यसभा भेजा गया है। इससे साफ है कि खड़गे राज्यसभा में बहुत जल्द नेता प्रतिपक्ष हो सकते हैं।' खड़गे राहुल गांधी के करीबी नेताओं में माने जाते हैं।

पार्टी के अंदर जारी उठापटक का नतीजा है कि यूपी के पूर्व विधान पार्षद नसीब पठान ने बागी नेताओं को पार्टी से निकालने की मांग उठाई है। एक वीडियो में पठान कहते हुए सुने जा रहे हैं कि 'जब सोनिया गांधी जी कह चुकी हैं कि हम सभी एक परिवार की तरह हैं तो उनके इस बयान के बावजूद हमारे नेता गुलाम नबी आजाद इंटरव्यू दे रहे हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके पहले विधानसभा चुनाव में उन्हें मात्र 320 वोट मिले थे। बाद में पूरी जिंदगी उन्हें नॉमिनेट किया जाता रहा। लेकिन अब ऐसे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि 'गुलाम' को 'आजाद' कर दिया जाए। जो लोग पार्टी फोरम पर अपनी बात नहीं रखते और बाहर बात करते हैं, उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाना चाहिए।'


अहम पदों पर चुनाव

गुलाम नबी आजाद ने गुरुवार को एक इंटरव्यू में कहा कि सभी महत्वपूर्ण पदों पर नेताओं का चुनाव होना चाहिए। उन्होंने CWC के पदों पर भी चुनाव की बात कही। आजाद ने कहा, जो सीडब्ल्यूसी मेंबर, पीसीसी प्रेसिडेंट, डीपीसीसी चीफ हमारी आलोचना कर रहे हैं, वे कभी चुनकर नहीं आए। जो सच्चा कांग्रेसी होगा वह हमारी बातों का स्वागत करेगा।

आजाद ने कहा, हम यही कह रहे हैं कि पीसीसी, डीसीसी, ब्लॉक प्रमुख और सीडब्ल्यूसी का चुनाव होना चाहिए। इसका फायदा यह होगा कि चुनाव होगा तो दो या तीन लोगों में चुनाव कराए जाएंगे। जीतने वाले के साथ 51 फीसदी पार्टी के लोग होंगे। अन्य को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि उन्हे ज्यादा मेहनत करनी चाहिए। मौजूदा वक्त में पीसीसी प्रमुख को एक प्रतिशत लोगों का भी समर्थन नहीं होता। ऐसे प्रदेश अध्यक्ष महासचिवों की सिफारिश पर नॉमिनेट किए जाते हैं। हमें यह भी पता नहीं कि उन्हें 100 या शून्य कितने लोगों का समर्थन प्राप्त होता है। जिन्हें 100 लोगों का समर्थन प्राप्त होता है, वे अच्छा काम करते हैं लेकिन जो शून्य वाले हैं वे राज्यों में पार्टी को शून्य पर ही ले जाते हैं।


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