देश / कोरोना से बचाने के लिए पुरुषों को दिया जा रहा है महिलाओं का सेक्स हार्मोन

दुनिया में कोरोना संक्रमण से अब तक 31 लाख 30 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 15 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। इसी बीच ये देखा जा रहा है कि महिलाओं में मृत्युदर पुरुषों की अपेक्षा काफी कम है। अब वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या महिलाओं में पाए जाने वाले सेक्स हार्मोन एक्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन के कारण वे वायरस से कुछ हद तक सुरक्षित हैं।

News18 : Apr 29, 2020, 10:11 AM
दिल्ली: दुनिया में कोरोना संक्रमण से अब तक 31 लाख 30 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 15 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। इसी बीच ये देखा जा रहा है कि महिलाओं में मृत्युदर पुरुषों की अपेक्षा काफी कम है। ये लगभग सभी देशों में वायरस की शुरुआत से ही दिख रहा है। चीन के शोधकर्ताओं ने फरवरी में कोरोना के कारण मृत्युदर निकालने पर देखा कि वायरस 2.8% पुरुषों में मौत की वजह बना, जबकि महिलाओं में ये दर 1.7% थी। ये स्टडी 44,600 मरीजों पर की गई थी। अब वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या महिलाओं में पाए जाने वाले सेक्स हार्मोन एक्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन के कारण वे वायरस से कुछ हद तक सुरक्षित हैं।


क्या कहता है देशों का आंकड़ा

अमेरिका में कोविड-19 के 5,700 मरीजों में से 60% पुरुष ही थे, जबकि बाकी महिलाएं थीं। वहीं ICU तक पहुंचे कोरोना मरीजों में 66।5% मरीज पुरुष रहे। इसके बाद से इटली, फ्रांस, यूके, जर्मनी और साउथ कोरिया में भी समान पैटर्न दिखा। यूके ने हाल ही में जो डाटा जारी किया, उसके मुताबिक पुरुषों में कोरोना के कारण होने वाली मौतें महिलाओं से लगभग दोगुनी हैं। ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य विभाग का डाटा भी कुछ यही बताता है।

दूसरी बीमारियों में भी यही ट्रेंड


कोरोना फैमिली की दूसरी बीमारियों में भी समान ट्रेंड दिखा। जैसे साल 2003 में SARS या फिर साल 2012 में MERS के दौरान भी पुरुषों में मृत्युदर महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा देखी गई। वैज्ञानिक जर्नल Western Journal of Emergency Medicine (WJEM) में इसी महीने आई स्टडी में ये सारे आंकड़े दिए गए हैं। यहां तक कि श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियों के कारण पुरुषों की मौत की दर ज्यादा होने के कारण ऐसी बीमारियों को "man flu" भी कहा जाता है।


जेनेटिक संरचना भी हो सकती है जिम्मेदार

माना जा रहा है कि महिलाओं की जेनेटिक संरचना भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है, जिसमें दो X क्रोमोजोम होते हैं। इन्हीं X क्रोमोजोम्स में इम्यून स्सिटम को मजबूत बनाने वाले ज्यादातर जीन्स होते हैं। जबकि Y क्रोमजोम में ये तुलनात्मक तौर पर कम होते हैं। इसी वजह से बीमारियों से लड़ने में उनका इम्यून पुरुषों की अपेक्षा बेहतर काम करता है। इस थ्योरी के साथ-साथ अब वैज्ञानिक सेक्स हार्मोन पर भी स्टडी कर रहे हैं।

अमेरिका में हो रहा प्रयोग

इसके तहत न्यूयॉर्क की Stony Brook University ने कोरोना के कुछ पुरुष मरीजों को महिलाओं में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन हार्मोन से इलाज देना शुरू किया। वहीं लॉस एंजिलस में Cedars-Sinai Medical Center ने पुरुष कोरोना मरीजों में प्रोजेस्ट्रॉन का हल्का डोज शुरू किया। ये महिलाओं में पाया जाने वाला एक अन्य हार्मोन है। ये डोज लगातार 7 दिनों तक दिए जाएंगे और फिर देखा जाएगा कि क्या कोरोना के दूसरे पुरुष मरीजों की तुलना में महिला हार्मोन्स से ट्रीट किए जा रहे मरीज बेहतर लग रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार स्टडी में शामिल मुख्य वैज्ञानिक Dr Sara Ghandehari बताती हैं कि देखा जा रहा है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में इस वायरस से बेहतर मुकाबला कर पा रही हैं। यहां तक कि गर्भवती महिलाएं, जिनमें दो हार्मोन्स का स्तर काफी ज्यादा होता है, उनमें कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत कम दिख रहा है। इन्हीं कारणों को देखते हुए महिला हार्मोन्स के जरिए पुरुषों के इलाज की कोशिश हो रही है।

भारत में ये है स्टडी

भारत में भी महिला-पुरुषों में दिख रहे इस ट्रेंड को समझने की कोशिश हो रही है। इसके तहत मुंबई में 68 कोरोना मरीजों को लिया गया और इलाज के दौरान लगातार उनकी नाक से सैंपल लिया गया, जब तक कि उनके रिजल्ट कोरोना निगेटिव नहीं आ गए। स्टडी के नतीजे चौंकाने वाले रहे। इसमें शामिल महिलाओं के शरीर से वायरस लगभग 4 दिनों में खत्म हो गया, जबकि पुरुषों में ये वायरस लोड लगभग 6 दिनों तक बना रहा। इस स्टडी के नतीजे medRxiv जर्नल के डाटाबेस में आए हैं।

दूसरा पक्ष भी है

हालांकि इस स्टडी के दूसरा पक्ष भी है। बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि महिलाओं के इन दो हार्मोन्स  का वायरस से लड़ने में कोई लेनादेना नहीं। उनमें ये हार्मोन प्रजनन की अवस्था के दौरान काफी ज्यादा होते हैं, जो गर्भधारण के दौरान और भी बढ़ जाते हैं। मेनोपॉज आने से पहले ही इनका कम होना शुरू हो जाता है और इसके आते-आते ये दोनों महिला हार्मोन लगभग खत्म हो जाते हैं। यानी अगर ये दोनों हार्मोन ही महिलाओं को वायरस से बचा रहे हैं तो बड़ी उम्र की महिलाएं, जिनमें मेनोपॉज आ चुका है, उनमें भी मृत्युदर पुरुषों जितनी बढ़ी-चढ़ी दिखनी चाहिए थी, जबकि ऐसा है नहीं। बल्कि यहां भी उम्रदराज महिलाएं, अपनी ही उम्र के पुरुषों से ज्यादा बेहतर ढंग से वायरस से मुकाबला करते दिख रही हैं।

लाइफस्टाइल भी है जिम्मेदार

जॉन हॉपकिन्स के Bloomberg School of Public Health में वायरल बीमारियों और वैक्सिनेशन पर स्टडी कर रही शोधकर्ता Sabra Klein के मुताबिक वायरस और मृत्युदर का सिर्फ महिलाओं के हार्मोन से मतलब नहीं है, बल्कि इसमें महिलाओं की जेनेटिक संरचना की बड़ी भूमिका हो सकती है, या फिर ये कुछ और ही होगा, जो अभी समझना बाकी है। वैज्ञानिकों का एक खेमा इसमें पुरुषों में स्मोकिंग की आदत का महिलाओं से ज्यादा होना भी मान रहा है। वहीं एक स्टडी ये भी बताती है कि हैंड हाइजीन जैसी आदतों में पुरुष महिलाओं की तुलना में काफी पीछे हैं और इसलिए ही उन्हें किसी भी किस्म की वायरल या बैक्टीरियल बीमारी का खतरा ज्यादा है।