- अफ़ग़ानिस्तान,
- 02-Sep-2025 10:13 AM IST
अफगानिस्तान के पूर्वी क्षेत्रों में 31 अगस्त-1 सितंबर की रात एक शक्तिशाली 6.0-6.3 रिक्टर स्केल का भूकंप आया, जिसने खास तौर पर कुनर, नंगरहार, लघ्मान और नूरिस्तान प्रांतों में भारी तबाही मचाई। यह हाल के वर्षों में अफगानिस्तान का सबसे घातक भूकंप साबित हुआ है।
ताज़ा आकड़े
रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक कम से कम 1,100 लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों लोग घायल हैं और कई अब भी मलबे में दबे हुए हैं, जिससे मृतकों की संख्या और बढ़ने की आशंका है। अनुमान है कि लगभग 3,500 से अधिक लोग घायल हुए हैं। कुनर प्रांत में सबसे ज्यादा तबाही हुई, जहां कई गांव पूरी तरह तबाह हो गए।
प्राकृतिक और भौगोलिक चुनौतियाँ
भूकंप की गहराई बेहद कम थी, जिसकी वजह से कंपन की तीव्रता ज्यादा महसूस की गई। भूकंप के बाद पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन हुआ, जिसने राहत कार्यों में बाधा डाली। कई सड़कें और रास्ते बंद हो गए, जिससे दूरदराज के इलाकों तक पहुंचना मुश्किल हो गया। लगातार हो रही बारिश ने भी हालात को और बिगाड़ दिया।
राहत और बचाव कार्य
स्थानीय प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद से राहत कार्य जारी है। हेलीकॉप्टरों और बचाव दलों की मदद से मलबे में दबे लोगों को बाहर निकाला जा रहा है। अब तक दर्जनों फ्लाइट्स के माध्यम से घायलों और मृतकों को अस्पतालों तक पहुंचाया गया है। बावजूद इसके, कई इलाके अभी भी राहत सामग्री और सहायता से वंचित हैं।
आर्थिक और मानवतावादी संकट
अफगानिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक और मानवीय संकट का सामना कर रहा था। बेरोजगारी, खाद्य संकट, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और विदेशी सहायता में कटौती ने हालात और भी खराब कर दिए हैं। इस भूकंप ने देश की कठिनाइयों को कई गुना बढ़ा दिया है। हजारों परिवार बेघर हो गए हैं और बच्चों तथा बुजुर्गों की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने तुरंत मानवीय सहायता का ऐलान किया है। काबुल को 1,000 परिवार तम्बू भेजे गए हैं और लगभग 15 टन भोजन सामग्री भी प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचाई जा रही है। भारत के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान के लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।
वैश्विक सहायता प्रयास
संयुक्त राष्ट्र, रेड क्रॉस और अन्य मानवीय संगठनों ने भी राहत कार्य शुरू कर दिए हैं। चिकित्सा सहायता, पानी और खाद्य सामग्री तेजी से प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचाई जा रही है। ब्रिटेन, चीन और अन्य देशों ने भी सहायता भेजने का वादा किया है। हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता और भौगोलिक चुनौतियों की वजह से राहत कार्यों को पूरा करने में समय लग रहा है।
