Anandpal Encounter / पुलिस अधिकारियों पर नहीं चलेगा हत्या का केस, कोर्ट ने माना आत्मरक्षा में चली थीं गोलियां

जोधपुर जिला एवं सत्र न्यायालय ने आनंदपाल एनकाउंटर मामले में निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाई थीं, जिससे 3 पुलिस अधिकारियों और 4 पुलिसकर्मियों को हत्या के मुकदमे से राहत मिली है। आनंदपाल की पत्नी के वकील ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।

जोधपुर जिला एवं सत्र न्यायालय ने कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया गया है, जिसमें एनकाउंटर में शामिल पुलिस अधिकारियों और कर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले से चूरू के तत्कालीन एसपी राहुल बारहठ सहित तीन अधिकारियों और चार पुलिसकर्मियों को बड़ी राहत मिली है, जिन पर हत्या का आरोप लगाने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाई थीं, और यह उनके आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा था।

निचली अदालत का आदेश और विवाद की पृष्ठभूमि

यह मामला 24 जून 2017 को चूरू जिले के मालासर गांव में हुए आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर से जुड़ा है। आनंदपाल, जो 41 गंभीर आपराधिक मामलों में वांछित था, को राजस्थान पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) टीम ने एक घर की छत से फायरिंग करते हुए मार गिराया था। एनकाउंटर के बाद से ही इसे लेकर विवाद चल रहा था, और कुछ लोगों ने इसे 'फर्जी एनकाउंटर' करार दिया था और दिसंबर 2017 में, राजस्थान सरकार ने इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दी थी। सीबीआई ने अपनी जांच के बाद एक क्लोजर रिपोर्ट पेश की, जिसमें एनकाउंटर को सही ठहराया गया था। हालांकि, आनंदपाल की पत्नी राजकंवर ने सीबीआई की इस क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी थी।

ACJM कोर्ट का फैसला और पुलिसकर्मियों पर आरोप

राजकंवर की चुनौती के बाद, 24 जुलाई 2024 को जोधपुर की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) कोर्ट ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। निचली अदालत ने एनकाउंटर में शामिल सात पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। इन पुलिसकर्मियों में तत्कालीन चूरू एसपी राहुल बारहठ, तत्कालीन एडिशनल एसपी विद्या प्रकाश चौधरी, डीएसपी सूर्यवीर सिंह राठौड़, आरएसी हेड कॉन्स्टेबल कैलाश चंद्र, कॉन्स्टेबल धर्मपाल, कॉन्स्टेबल धर्मवीर सिंह और आरएसी के सोहन सिंह शामिल थे। इन सभी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 148, 302 (हत्या), 326, 325, 324 और 149 के तहत मामला दर्ज करने के आदेश दिए गए थे, जिससे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था।

जिला एवं सत्र न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

जोधपुर जिला एवं सत्र न्यायालय के न्यायाधीश अजय शर्मा ने ACJM कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पुलिसकर्मियों को राहत दी। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि पुलिस टीम अपनी ड्यूटी का पालन कर रही थी, जिसका उद्देश्य 41 गंभीर मामलों में वांछित कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल को गिरफ्तार करना था। कोर्ट ने कहा कि जब आनंदपाल ने अपनी AK-47 राइफल से लगातार गोलीबारी की और पुलिस टीम के सदस्यों को घायल कर दिया, तो पुलिस ने अपनी जान बचाने के लिए जवाबी फायरिंग की। इसे उनके आधिकारिक कर्तव्य के दायरे में ही माना जाएगा, न कि हत्या का प्रयास।

आत्मरक्षा का सिद्धांत और कानूनी संरक्षण

न्यायाधीश अजय शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के ओमप्रकाश बनाम झारखंड राज्य के फैसले का भी उल्लेख किया और उन्होंने कहा कि यदि कर्तव्य का निर्वहन करते समय कुछ अतिक्रमण या सीमा उल्लंघन की स्थिति उत्पन्न होती है, तो भी पुलिस अधिकारियों को धारा 197 CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए, बशर्ते कि उस कार्य और आधिकारिक कर्तव्य के बीच उचित और वैध संबंध हो। इस मामले में, कोर्ट ने माना कि पुलिस अधिकारी अपना कर्तव्य निभा रहे थे, और इसलिए उन्हें सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना मुकदमे का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह फैसला पुलिसकर्मियों को उनके आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते समय कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के महत्व को रेखांकित करता है। जिला एवं सत्र न्यायालय ने ACJM के आदेश को कानूनी और तथ्यात्मक दोनों दृष्टिकोणों से त्रुटिपूर्ण बताया। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने FSL (फोरेंसिक साइंस लैब) रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट और बैलिस्टिक रिपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण सबूतों को नजरअंदाज किया और इन रिपोर्टों में एनकाउंटर के दौरान हुई घटनाओं और पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए गए बल की प्रकृति का विस्तृत विश्लेषण होता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ठोस सबूत के बिना कर्तव्य निभाने वाले पुलिसकर्मियों को आपराधिक मुकदमे का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए। यह टिप्पणी निचली अदालतों को ऐसे मामलों में सभी उपलब्ध साक्ष्यों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता पर बल देती है।

आगे की कानूनी लड़ाई

हालांकि, इस फैसले से पुलिसकर्मियों को तत्काल राहत मिली है, लेकिन कानूनी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। आनंदपाल की पत्नी राजकंवर के वकील भंवर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वे जिला एवं सत्र न्यायालय के इस फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती देंगे और इसका मतलब है कि यह मामला अभी भी उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए जा सकता है, जहां एक बार फिर एनकाउंटर की वैधता और पुलिसकर्मियों की कार्रवाई की जांच की जाएगी। यह घटनाक्रम भारतीय न्याय प्रणाली में ऐसे संवेदनशील मामलों की जटिलता और लंबी कानूनी प्रक्रियाओं को दर्शाता है।

एनकाउंटर का विस्तृत विवरण

मालासर गांव में 24 जून 2017 को आनंदपाल की सटीक लोकेशन मिलने के बाद राजस्थान पुलिस की SOG टीम ने कार्रवाई की थी। टीम जब लोकेशन की तरफ बढ़ रही थी, तो आनंदपाल ने एक घर की छत से AK-47 राइफल से पुलिस पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी और पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की, और लगभग 45 मिनट तक चले इस भीषण एनकाउंटर में आनंदपाल मारा गया। इस एनकाउंटर ने राजस्थान में एक बड़े आपराधिक अध्याय का अंत किया था, लेकिन इसके बाद से ही कानूनी और सामाजिक स्तर पर इसकी वैधता को लेकर बहस जारी है। यह फैसला इस लंबी बहस में एक नया मोड़ लेकर आया है, जो। पुलिस के मनोबल और कानून प्रवर्तन की सीमाओं पर भी बहस छेड़ सकता है।