बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान अपने चरम पर है, और इस बार सियासी बयानबाजी में सोशल मीडिया रील और सस्ते इंटरनेट डेटा का मुद्दा प्रमुखता से उभरा है. जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया है, वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी और जन सुराज के प्रशांत किशोर ने इस पर तीखा पलटवार किया है और यह बहस केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों, युवा रोजगार के अवसरों और सोशल मीडिया के हमारे समाज पर पड़ रहे गहरे प्रभावों को भी सामने ला रही है.
प्रधानमंत्री मोदी का डिजिटल इंडिया पर जोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बिहार चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए सस्ते डेटा और सोशल मीडिया रील्स को अपनी सरकार की अहम उपलब्धि के रूप में पेश किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार के प्रयासों से भारत में 1 जीबी डेटा की कीमत एक कप चाय से भी कम हो गई है. मोदी ने दावा किया कि बिहार के लाखों युवा इस सस्ते इंटरनेट का लाभ उठाकर अपनी कला. और रचनात्मकता को दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं, जिससे उन्हें अच्छी-खासी कमाई भी हो रही है. प्रधानमंत्री का यह बयान न केवल डिजिटल इंडिया के स्वप्न को साकार करने का दावा था, बल्कि. यह भी दर्शाता था कि उनकी सरकार युवाओं को स्वरोजगार और नए डिजिटल अवसरों से जोड़ रही है.
राहुल गांधी का पलटवार और कांग्रेस की रणनीति
प्रधानमंत्री मोदी के बयान के तुरंत बाद, बिहार कांग्रेस ने एक पुरानी वीडियो क्लिप के जरिए राहुल गांधी के विचारों को साझा करते हुए उन पर पलटवार किया. इस वीडियो में राहुल गांधी युवाओं के रील देखने की आदत पर तंज कसते हुए कहते हैं. कि आज के युवा रोज 7-8 घंटे रील्स देखते रहते हैं और दोस्तों को भेजते रहते हैं. उन्होंने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा, "अंबानी और अडानी के बेटे वीडियो नहीं देखते, वे पैसे गिनने में व्यस्त रहते हैं. " कांग्रेस का इरादा साफ था: सस्ते डेटा और रील को उपलब्धि बताने की बजाय, वे इसे समय की बर्बादी और युवाओं के भविष्य के लिए चिंता का विषय बता रहे थे, जिससे सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच स्पष्ट अंतर देखा जा सके.
प्रशांत किशोर की तीखी प्रतिक्रिया
इस बहस में जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) भी कूद पड़े. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन पहले बिहार में कहा था कि हम बिहार में सस्ता डेटा उपलब्ध करा रहे हैं. मैं उनसे कहना चाहता हूं – हमें डेटा नहीं, बेटा चाहिए. " पीके ने आरोप लगाया कि सरकार कारखाने गुजरात ले जा रही है और बिहार को सिर्फ. डेटा दे रही है, ताकि यहां के लोग अपने बच्चों को केवल वीडियो कॉल पर ही देख सकें. उनका यह बयान युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी और बिहार के औद्योगिक विकास की धीमी गति पर सीधा हमला था, जो इस बहस को आर्थिक और सामाजिक असमानता के मुद्दे से जोड़ता है.
यह बहस रील बनाने वालों और रील देखने वालों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर को भी उजागर करती है. प्रधानमंत्री मोदी का भाषण मुख्य रूप से उन रील क्रिएटर्स पर केंद्रित था, जिन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है और आर्थिक रूप से सशक्त हुए हैं. ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां युवा अपनी क्रिएटिविटी से अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं और वहीं, राहुल गांधी और अन्य आलोचकों का ध्यान उन लाखों युवाओं पर है जो दिन का बड़ा हिस्सा केवल रील्स देखने में बिताते हैं, जिसे 'डूम स्क्रॉलिंग' भी कहा जाता है. रिसर्च बताती है कि रील देखने वालों की संख्या बनाने वालों की तुलना में कहीं अधिक है, और उनके समय का यह उपयोग अक्सर उनकी पढ़ाई, करियर और व्यक्तिगत विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है.
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
सोशल मीडिया और अत्यधिक स्क्रीन टाइम के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं और डॉक्टर्स और विशेषज्ञ लंबे समय तक फोन या स्क्रीन पर समय बिताने को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक मानते हैं. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के एक सर्वे के अनुसार, इंटरनेट की लत से सामाजिक संज्ञानात्मक ढांचे में आत्म-नियंत्रण शक्ति में कमी आती है और यह रिसर्च शिक्षा और छात्रों पर सोशल मीडिया के विभिन्न सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर केंद्रित है. इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि नकारात्मक प्रभावों से बचने के. लिए छात्रों और युवाओं की सोशल मीडिया तक पहुंच को सीमित करना महत्वपूर्ण है. सोशल मीडिया साइटों पर बिताए जाने वाले समय को कम करके अधिकांश नुकसानों को कम किया जा सकता है, जो इस चुनावी बहस को एक व्यापक सामाजिक मुद्दे में बदल देता है.