Karnataka Congress / कर्नाटक में 'शब्द' पर छिड़ी जंग: डीके शिवकुमार के बाद सिद्धारमैया का पलटवार, गिनाए अगले ढाई साल के वादे

कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच नेतृत्व को लेकर जुबानी जंग तेज हो गई है। डीके शिवकुमार ने 'शब्द' और वादों की अहमियत पर जोर दिया, जिसके जवाब में सिद्धारमैया ने अपने शेष कार्यकाल के लिए किए गए कामों की सूची गिनाई। कांग्रेस आलाकमान इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दिल्ली में बैठक बुलाएगा।

कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर शीर्ष नेतृत्व को लेकर अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है और राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। यह संघर्ष, जो पहले दबी जुबान में चल रहा था, अब सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर निशाना साधने में बदल गया है और गुरुवार को यह उथल-पुथल तब खुलकर सामने आई जब उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने 'शब्द' की अहमियत पर जोर देते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट किया, जिसके कुछ ही घंटों बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी उसी 'शब्द' का इस्तेमाल करते हुए पलटवार किया।

'शब्द' पर डीके शिवकुमार का दांव

उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक इमेज के जरिए अपनी बात रखी, जिसमें उन्होंने 'शब्दों' और 'वादों' की ताकत को याद दिलाया। इस पोस्ट को पार्टी आलाकमान को उस कथित वादे की याद दिलाने से जोड़ा गया, जिसमें उन्हें राज्य सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दूसरे हिस्से के लिए मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया गया था। यह पोस्ट ऐसे समय में आया जब राज्य की कांग्रेस सरकार ने 20 नवंबर को अपने कार्यकाल के शुरुआती ढाई साल पूरे कर लिए। शिवकुमार ने अपने पोस्ट में कहा था, “शब्दों की ताकत ही दुनिया की असली ताकत है। दुनिया में सबसे बड़ी ताकत बात रखना है। चाहे वह जज हों, राष्ट्रपति हों या कोई भी, चाहे मैं ही क्यों न हूं, सभी को अपने वादे के अनुसार काम करना चाहिए। शब्दों की ताकत ही दुनिया की असली ताकत है। ” यह बयान सीधे तौर पर उस अनौपचारिक समझौते की ओर इशारा। करता है, जिसके तहत उन्हें ढाई साल बाद मुख्यमंत्री पद मिलना था।

अघोषित ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला

हालांकि, आधिकारिक तौर पर कांग्रेस पार्टी ने कभी यह नहीं कहा कि 2023 में चुनाव जीतने के बाद ऐसा कोई ढाई-ढाई साल वाला फॉर्मूला तय किया गया था और इसके बावजूद, डीके शिवकुमार के समर्थकों की ओर से लगातार इस दावे को दोहराया जाता रहा है। खुद शिवकुमार ने भी पिछले दिनों कुछ लोगों के बीच 'सीक्रेट डील' की बात कही थी, जिस पर पार्टी की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। इस चुप्पी ने अटकलों को और हवा दी है कि वास्तव में ऐसा कोई समझौता हुआ था, जिसे अब लागू करने का समय आ गया है। शिवकुमार का सोशल मीडिया पोस्ट इसी पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बयान माना जा। रहा है, जो आलाकमान पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

सिद्धारमैया का 'पूरे कार्यकाल' का पलटवार

डीके शिवकुमार के 'शब्द' वाले बयान के कुछ ही घंटों बाद, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी उसी भाषा का इस्तेमाल करते हुए पलटवार किया। उन्होंने उन कामों की एक लंबी सूची गिनाई जिन्हें वह अपने शेष कार्यकाल में पूरा करना चाहते हैं, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि वह पद छोड़ने या किसी विकल्प को स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं और सिद्धारमैया ने अपने पोस्ट में कहा, “कर्नाटक के लोगों का दिया हुआ जनमत एक पल नहीं, बल्कि वो जिम्मेदारी है जो पूरे 5 साल तक चलती है। ” उन्होंने आगे कहा, “एक शब्द तब तक ताकत नहीं बनता है जब तक वह लोगों के लिए दुनिया को बेहतर न बना दे। कर्नाटक के लोगों के लिए हमारा शब्द कोई नारा नहीं है, बल्कि यह हमारे लिए दुनिया है और ” यह बयान शिवकुमार के दावे को सीधे तौर पर चुनौती देता है और सिद्धारमैया के पूर्ण कार्यकाल के इरादे को दर्शाता है।

उपलब्धियों का ब्योरा और भविष्य के वादे

अपने पलटवार में, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने पहले कार्यकाल (2013-2018) का भी जिक्र किया। उन्होंने दावा किया कि उस दौरान 165 में से 157 वादे पूरे किए गए थे, जो 95% से अधिक की उपलब्धि थी। वर्तमान कार्यकाल के बारे में उन्होंने बताया कि 593 में से 243 से अधिक वादे पहले ही पूरे हो चुके हैं, और बाकी हर वादा प्रतिबद्धता, भरोसे और सावधानी के साथ पूरा किया जा रहा है। यह आंकड़ों के साथ अपनी सरकार की दक्षता और जनहितैषी नीतियों को उजागर करने का प्रयास था, ताकि यह दिखाया जा सके कि वह मुख्यमंत्री के रूप में प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं और उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने का अधिकार है। यह उनके नेतृत्व को मजबूत करने और किसी भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा है।

कांग्रेस आलाकमान की दखल

कर्नाटक में जारी इस अंदरूनी कलह के बीच, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हस्तक्षेप करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा है कि कर्नाटक के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए दिल्ली में राहुल गांधी, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री शिवकुमार सहित वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक बुलाई जाएगी। खरगे ने स्पष्ट किया कि कोई भी फैसला सिर्फ पार्टी आलाकमान ही लेगा और इस पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा करने की जरूरत नहीं है। इस बैठक का उद्देश्य इस मुद्दे को सुलझाना, आगे की रणनीति पर चर्चा करना और जो भी 'भ्रम' है, उसे खत्म करना है और खरगे का यह बयान दर्शाता है कि पार्टी आलाकमान इस स्थिति को गंभीरता से ले रहा है और जल्द से जल्द इसका समाधान चाहता है ताकि राज्य में सरकार की स्थिरता बनी रहे।

पिछली सरकारों में भी दिखी कलह

कर्नाटक से पहले, कांग्रेस शासित अन्य राज्यों में भी नेतृत्व परिवर्तन को लेकर इसी तरह के संघर्ष देखे गए हैं। राजस्थान में साल 2020 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच तीखा संघर्ष हुआ था। हालांकि, पार्टी नेतृत्व ने गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखा, जबकि पायलट उपमुख्यमंत्री। और राज्य प्रमुख का पद छोड़ने के बाद भी पार्टी में बने रहे। इसी तरह, छत्तीसगढ़ (2018 से 2023) में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंह देव के बीच संघर्ष रहा था और बघेल को हटाया नहीं गया, लेकिन 2023 के चुनाव से ठीक पहले टीएस सिंह देव को उपमुख्यमंत्री बनाकर मामले को सुलझाने की कोशिश की गई। हालांकि, इन दोनों राज्यों में, जहां नेतृत्व को लेकर अंदरूनी कलह थी, 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। यह इतिहास कर्नाटक में कांग्रेस आलाकमान के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य कर सकता है, जिससे वे इस मुद्दे को जल्द से जल्द और प्रभावी ढंग से सुलझाने का प्रयास करेंगे।