कर्नाटक कांग्रेस के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल अपने चरम पर है, जहां मुख्यमंत्री पद को लेकर उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच गहरे मतभेद उभरकर सामने आए हैं। यह स्थिति पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि दोनों ही नेता अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं, जिससे राज्य में कांग्रेस सरकार की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं और डीके शिवकुमार के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि सिद्धारमैया अपना पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इस आंतरिक कलह ने कांग्रेस आलाकमान को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया। है, जिस पर अब इस संवेदनशील मुद्दे को सुलझाने की जिम्मेदारी आ गई है।
आलाकमान की चुनौती और खरगे की बेंगलुरु यात्रा
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस बढ़ते विवाद को शांत करने के उद्देश्य से शुक्रवार को बेंगलुरु का दौरा किया। उनकी यात्रा का मुख्य मकसद दोनों गुटों के बीच सुलह कराना और एक स्वीकार्य समाधान निकालना था। हालांकि, उनकी यात्रा के बावजूद, डीके शिवकुमार ने उनसे मुलाकात नहीं की, जो उनकी नाराजगी और स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। शिवकुमार का यह कदम आलाकमान के लिए एक स्पष्ट संदेश था कि वे अपनी मांगों पर अडिग हैं और उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। खरगे की उपस्थिति के बावजूद शिवकुमार की अनुपस्थिति ने पार्टी के भीतर की दरार को और गहरा कर दिया है, जिससे आलाकमान पर जल्द से जल्द कोई ठोस निर्णय लेने का दबाव बढ़ गया है।
डीके शिवकुमार के घर नागा साधुओं का आगमन
इस सियासी ड्रामे के बीच एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आया, जब कुछ नागा साधु डीके शिवकुमार के आवास पर पहुंचे। इन साधुओं में से एक ने शिवकुमार से कहा कि वे काशी से आए हैं और उन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद भी दिया और यह घटनाक्रम राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। नागा साधुओं का यह आशीर्वाद ऐसे समय में आया है जब शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी को लेकर मुखर हैं और पार्टी के भीतर उनके समर्थन में आवाजें उठ रही हैं और इस घटना को शिवकुमार के पक्ष में एक प्रतीकात्मक समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, जो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को और बल प्रदान करता है।
मल्लिकार्जुन खरगे का संयमित बयान
रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस पूरे मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ी, लेकिन उनका बयान काफी संयमित और सतर्कता भरा था। उन्होंने कहा, "मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है। जो भी फिलहाल हो रहा है, जो मसला है, उस पर अभी कुछ भी बयान नहीं देना चाहता और आप लोगों का सर्दी में धूप में यहां खड़ा रहना ठीक नहीं है। जो भी फैसला होगा, हाई कमान ही करेगा। इसीलिए मैं आपसे कह रहा हूं कि आप लोग व्यर्थ। परेशान न हों, इससे मुझे भी पीड़ा हो रही है। " खरगे का यह बयान दर्शाता है कि पार्टी आलाकमान इस मुद्दे की। संवेदनशीलता को समझता है और किसी भी जल्दबाजी में निर्णय से बचना चाहता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अंतिम निर्णय केंद्रीय नेतृत्व द्वारा ही लिया जाएगा, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे सभी पक्षों को सुनकर एक संतुलित समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं।
ऊर्जा मंत्री केजे जॉर्ज की मध्यस्थता भूमिका
इस सियासी संग्राम में ऊर्जा मंत्री केजे जॉर्ज एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए नजर आ रहे हैं। रविवार को उन्होंने सबसे पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से उनके आवास पर मुलाकात की, जो इस। बात का संकेत है कि वे स्थिति को समझने और सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके बाद, दोपहर में वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मिले, जहां उन्होंने संभवतः पार्टी आलाकमान को जमीनी हकीकत से अवगत कराया होगा। शाम को, केजे जॉर्ज के घर पर डीके शिवकुमार ने उनसे मुलाकात की, और यह बैठक लगभग एक घंटे तक चली और जॉर्ज की ये लगातार मुलाकातें दर्शाती हैं कि पार्टी के भीतर एक वरिष्ठ नेता के रूप में वे इस गतिरोध को तोड़ने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं।
जॉर्ज की सलाह और शिवकुमार की ठोस आश्वासन की मांग
सूत्रों के अनुसार, केजे जॉर्ज ने अपनी बैठक में डीके शिवकुमार को पार्टी की ओर से धैर्य बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने शिवकुमार से मार्च में पेश होने वाले बजट तक शांत रहने का आग्रह किया, जो यह दर्शाता है कि पार्टी फिलहाल किसी बड़े बदलाव से बचना चाहती है ताकि राज्य के वित्तीय मामलों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। हालांकि, डीके शिवकुमार ने इस सलाह के जवाब में एक 'ठोस आश्वासन' की मांग की है। शिवकुमार की यह मांग स्पष्ट करती है कि वे केवल मौखिक आश्वासनों से संतुष्ट नहीं हैं और भविष्य में मुख्यमंत्री पद को लेकर एक स्पष्ट रोडमैप चाहते हैं। उनकी यह शर्त आलाकमान के लिए एक और चुनौती पेश करती है, क्योंकि उन्हें शिवकुमार को संतुष्ट करने के लिए एक विश्वसनीय और स्वीकार्य समाधान प्रस्तुत करना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आलाकमान इस आंतरिक कलह को कैसे सुलझाता है और क्या शिवकुमार को उनकी मांगों के अनुरूप कोई ठोस आश्वासन मिल पाता है।