देश / कोरोना वायरस के मरीजों में बन रहे खून के थक्‍कों ने बढ़ाया मौत का खतरा

News18 : May 24, 2020, 03:55 PM
दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) को शुरुआत में रेस्पिरेटरी वायरस माना गया, जिससे संक्रमित व्‍यक्ति को फेफड़ों (Lungs) में गंभीर समस्‍या होने के कारण सांस लेने में बहुत तकलीफ होने लगती है। अब पूरी दुनिया में डॉक्‍टरों को कोविड-19 के मरीजों में खून के थक्‍के (Blood Clotting) बनने की समस्‍या भी नजर आ रही है। हालांकि, डॉक्‍टर्स अभी तक इन थक्‍कों के बनने का सही कारण नहीं बता पा रहे हैं। विशेषज्ञोंं के मुताबिक, खून के थक्‍के बनने के कई कारण हो सकते हैं।कुछ स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना के मरीजों में ये खून के थक्‍के रोगप्रतिरोधक प्रणाली (Immune System) के ओवर रिएक्‍शन के कारण भी बन सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, ये खून के थक्के कई मरीजों की मौत का कारण भी बन सकते हैं। इन खून के थक्‍कों को थ्रोंबोसिस (Thrombosis)  कहा जाता है। इन थक्कों के कारण फेफड़ों में गंभीर सूजन हो जाती है। इससे मरीज को सांस लेने में ज्‍यादा तकलीफ होने लगती है।

कई मरीजों के फेफड़ों में खून के थक्‍के जमने से फेल हुआ श्‍वसन तंत्र

लंग्‍स में होने वाले वायरल इंफेक्‍शन में अमूमन मरीजों में गंभीर निमोनिया की शिकायत के कारण मौत होने के मामले सामने आते रहे हैं। इसके उलट कोरोना वायरस के मरीजों में संक्रमण के शुरुआती दौर में ही फेफड़ों में खून के थक्‍के जमने के कारण श्‍वसन तंत्र के फेल होने के मामले सामने आए हैं। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्‍टरों ने पाया कि बहुत बड़ी संख्‍या में कोरोना मरीजों में डी-डिमर (D-Dimer) बढ़ने के कारण थ्रोंबोसिस की समस्‍या होने लगी


कोरोना वायरस के मरीजों में संक्रमण के शुरुआती दौर में ही फेफड़ों में खून के थक्‍के जमने के कारण श्‍वसन तंत्र के फेल होने के मामले सामने आए हैं।

डॉक्टरों को अस्पताल में भर्ती काफी मरीजों में खून के थक्के जमने की दिक्कत का पता चला। कुछ मरीजों के फेफड़ों में सैकड़ों की संख्या में माइक्रो-क्लॉट्स भी पाए गए। इस वायरस की वजह से डीप वेन थ्रोंबोसिस के मामलों में भी इजाफा दर्ज किया गया है। डीप वेन थ्रोंबोसिस ऐसे खून के थक्के होते हैं जो आमतौर पर पैर में पाए जाते हैं। अगर इनके टुकड़े होकर फेफड़ों में पहुंचने लगते हैं तो जान को जोखिम हो सकता है। इनसे रक्त वाहिकाएं (Blood Vessels) अवरुद्ध हो जाती हैं।

कोरोना वायरस के मरीजों में थ्रोंबोसिस बन रहा है जानलेवा समस्‍या

लंदन के किंग्स कॉलेज हॉस्पिटल में थ्रोंबोसिस और हैमोस्टेसिस के प्रोफेसर रूपेन आर्या के मुताबिक, पिछले कुछ हफ्तों से बड़े पैमाने पर आ रहे आंकड़ों से लगता है कि कोरोना के मरीजों में थ्रोंबोसिस (Thrombosis) बड़ी समस्या बन गई है। हाल में किए गए कुछ अध्ययनों से पता चल रहा है कि इनमें से करीब आधे मरीज लंग्‍स में खून के थक्के जमने से पीड़ित हैं।

उनका मानना है कि कोरोना वायरस के गंभीर रूप से बीमार कई मरीजों में खून के थक्के जमने के मामले 30 फीसदी तक हो सकते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, हॉस्पिटल में प्रोफेसर आर्य की ब्लड साइंसेज की टीम ने मरीजों के सैंपल का विश्लेषण किया है। इससे पता चला है कि कोरोना वायरस खून में बदलाव कर रहा है, जिससे ये ज्यादा चिपचिपा हो रहा है। चिपचिपे खून की वजह से खून के थक्के बन सकते हैं। खून में बदलाव फेफड़ों में गंभीर सूजन पैदा कर सकता है।

कोरोेना वायरस के गंभीर संक्रमित मरीजों के खून में कई रसायनों का स्राव होता दिख रहा है। इससे खून के थक्के जमना शुरू हो जाते हैं।


गंभीर संक्रमितों के खून में कई रसायन बना रहे हैं खून के थक्‍के

आर्या कहते हैं क‍ि वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों के खून में कई रसायनों का स्राव होता दिख रहा है। इससे खून के थक्के जमना शुरू हो जाते हैं। इसकी वजह से मरीज की हालत खराब होने लगती है। थ्रोंबोसिस एक्सपर्ट प्रोफेसर बेवरले हंट के मुताबिक, केवल खून के थक्के के मुकाबले चिपचिपे खून का असर कहीं ज्यादा खराब होता है। इसकी वजह से स्ट्रोक्स और हार्ट अटैक्स की दर भी बढ़ जाती है।


वह कहती हैं कि निश्चित तौर पर कोरोना मरीजों में चिपचिपा खून ऊंची मृत्यु दर की वजह बनता है। अब कुछ ऐसे अध्ययन भी सामने आए हैं, जिनसे चुनौतियां बड़ी हो गई हैं। इन अध्ययनों से पता चल है कि खून के थक्कों का इलाज करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे ब्लड थिनर्स या खून पतला करने वाली दवाएं हर बार काम नहीं करती हैं। साथ ही इनकी डोज को बढ़ाने से मरीजों में ब्लीडिंग शुरू हो सकती है, जो जोखिम भरा हो सकता है।

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