निर्भया रेप कांड / निर्भया के दोषियों पर डेथ वारंट जारी, 22 जनवरी को सुबह 7 बजे दी जाएगी फांसी की सजा

AajTak : Jan 07, 2020, 05:30 PM
नई दिल्ली | देश की राजधानी दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भया रेप कांड को लेकर मंगलवार को पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई हुई। निर्भया के दोषियों का डेथ वॉरंट जारी, 22 जनवरी सुबह 7 बजे चारों दोषियों को दी जाएगी फांसी। इस बीच अगर चारों दोषी चाहें तो क्यूरेटिव पिटिशन या दया याचिका दाखिल कर सकते हैं। निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करेंगे।

पटियाला हाउस कोर्ट में निर्भया केस को लेकर सुनवाई शुरू हो गई है। वकील एमएल शर्मा की ओर से कहा गया कि वह मुकेश सिंह की ओर से पेश हो रहे हैं। जज के पूछने पर एमएल शर्मा ने कहा कि वह पहली बार इस केस को लेकर पेश हो रहे हैं।

राजीव मोहन ने कहा कि सिर्फ डेथ वॉरंट जारी होने से मामला खत्म नहीं होगा। वॉरंट से लेकर फांसी तक कोई भी दया याचिका दायर कर सकता है।  कानून के हिसाब से दोषी को 14 दिन का समय मिलना चाहिए।

निर्भया रेप कांड / 22 जनवरी होगी चारों दोषियों को फांसी, क्यूरेटिव पिटिशन दायर करने के लिए 14 दिन का समय

वकील राजीव मोहन की ओर से कहा गया कि ट्रायल कोर्ट की ओर से उन्हें दोषी करार दिया जा चुका है। आज की तारीख में कोई भी दया याचिका पेंडिंग नहीं है। इस दौरान एपी सिंह ने कहा कि उनके वकील पूरी रिपोर्ट कर रहे हैं, हमें भी इसकी कॉपी देनी चाहिए।

दोषी अक्षय ने एक अखबार में छपी रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि निर्भया मामले का दोषी सजा टलवाने की साजिश रच रहा है। उसने कहा कि ये सभी झूठी रिपोर्ट्स हैं। इसमें कोई साजिश नहीं है।

जो कानूनी कागजात फॉर्म नंबर 42 देख रहे हैं, यही होता है ब्लैक वॉरंट यानी डेथ वॉरंट। इसमें लिखा भी हुआ है वॉरंट ऑफ Execution Of A Sentence Of Death। पहले खाली कॉलम में जेल का नंबर लिखा होता है, जिस जेल में फांसी दी जाएगी। दूसरे कॉलम में फांसी पर चढ़ने वाले सभी दोषियों के नाम लिखे जाते हैं। खाली कॉलम में केस का FIR नंबर केस नंबर लिखा जाता है। उसके बाद के कॉलम में जिस दिन ब्लैक वॉरंट जारी हो रहा है, वो तारीख पहले लिखी जाती है, उसके बाद के कॉलम में फांसी देने वाले दिन यानी मौत के दिन की तारीख लिखी जाती है और किस जगह फांसी दी जाएगी वो लिखा जाता है, जिसके बाद अगले खाली कॉलम में फांसी पर चढ़ने वाले दोषियों के नाम के साथ बकायदा यह आगे फॉर्म में साफ-साफ लिखा है कि जिस-जिस को फांसी दी जा रही है, उनके गले में फांसी का फंदा जब तक लटकाया जाए जब तक उनकी मौत न हो जाए। फांसी होने के बाद मौत से जुड़े सर्टिफिकेट और फांसी हो गई है ये लिखित में वापस कोर्ट को जानकारी दी जाए, सबसे नीचे समय दिन और ब्लैक वॉरंट जारी करने वाले जज के साइन होते हैं। उसके बाद ये डेथ वॉरंट जेल प्रशासन के पास पहुंचता है, फिर जेल सुप्रीटेंडेंट समय तय करता है उसके बाद फांसी की जो प्रक्रिया जेल मैनुएल में तय होती है उस हिसाब से फांसी दी जाती है।

SC से खारिज हो चुकी है याचिका

इस मामले में अब निर्भया केस से जुड़ा कोई भी केस दिल्ली की किसी भी अदालत में लंबित नहीं है। पिछले 1 महीने के दौरान तकरीबन 3 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और पटियाला हाउस कोर्ट से खारिज हो चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट एक दोषी की पुनर्विचार याचिका खारिज कर चुका है। जबकि दिल्ली हाई कोर्ट ने एक और दोषी की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने खुद को जुवेनाइल बताकर मामले की सुनवाई जेजे एक्ट के तहत करने की गुहार लगाई थी।

पटियाला हाउस कोर्ट सोमवार को एक और दोषी के पिता की तरफ से लगाई गई उस अर्जी को भी खारिज कर चुका है जिसमें निर्भया केस के एकमात्र चश्मदीद गवाह और निर्भया के दोस्त अवनींद्र पांडे पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि अवनींद्र ने मीडिया को दिए अपने बयान के एवज में पैसा लिया है इसलिए कोर्ट में दी उसकी गवाही को भी फर्जी माना जाए।

चारों दोषियों के पास विकल्प के तौर पर अब दया याचिका लगाने का ही मौका है, क्यूरेटिव पिटीशन भी एक और विकल्प है लेकिन कानूनी जानकार कहते हैं कि इस मामले में क्यूरेटिव पिटीशन लगाने के विकल्प लगभग ना के बराबर हैं। क्योंकि यह मामला क्यूरेटिव पिटीशन लगाने के लिए फिट नहीं है।

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