कोरोना वायरस लॉकडाउन / किसान नहीं बेच पा रहे स्ट्रॉबेरी, गायों के लिए बना चारा

Live Hindustan : Apr 03, 2020, 11:23 AM
India Lockdown: आप जो इस तस्वीर में देख रहे हैं वह सच है। गाय घास नहीं स्ट्रॉबेरी खा रही है। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन में यह भी एक सच्चाई है, जिस स्ट्रॉबेरी के कुछ अतिरिक्त दानों के लिए हम कुल्फी वालों से गुजारिश करते थे, वह आज वह गायों और मवेशियों के लिए चारा है। यह तस्वीर जितनी हैरान करने वाली है उससे अधिक परेशान करने वाली है उन किसानों की समस्याएं जो इसके उत्पादक हैं।

महाराष्ट्र और केरल में स्ट्रॉबेरी के किसानों के लिए यह लॉकडाउन बड़े आघात के रूप में आया है। वे इन दिनों अपने इस महंगे उत्पाद को बाजारों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। इडुकी के मुन्नार इलाके में स्ट्रॉबेरी के उत्पादक किसानों ने बताया कि कोरोना वायरस की वजह से सब चौपट हो गया है। गर्मियों में स्ट्रॉबेरी की मांग बहुत अधिक बढ़ जाया करती थी, लेकिन इस बार कोरोना ने उनकी सारी मेहनत, लागत पर पानी फेर दिया है। मांग में कमी की वजह से इलाके के लाखों किसान सिर पर हाथ धरे बैठे हैं और ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहे हैं कि कोरोना का कहर जल्द खत्म हो। 

महराष्ट्र के सतारा जिले में गाय को स्ट्रॉबेरी खिला रहे किसान अनिल सालुंखे कहते हैं, 'पर्यटक और आइसक्रीम उत्पादक स्ट्रॉबेरी के मुख्य खरीदार हैं। लेकिन अभी ना तो टूरिस्ट हैं और ना ही आइस्क्रीम बिक रही है।' अनिल ने  अपने दो एकड़ खेत में स्ट्रॉबेरी की खेती की थी, जिससे उन्हें करीब 8 लाख रुपये आमदनी की उम्मीद थी। लेकिन अब उन्हें 25 लाख रुपये की लागत ऊपर होने का भी भरोसा नहीं है, क्योंकि उत्पाद को शहर तक ले जा नहीं सकते हैं और फिर डिमांड भी तो नहीं है।

यह समस्या केवल स्ट्रॉबेरी उत्पादकों की नहीं है, कर्नाटक के अंगूर उत्पादकों की भी मुश्किलें ऐसी ही हैं। बेंगलुरु के पास एक किसान मुनिशामाप्पा ने 15 टन अंगूर जंगल के पास फेंक दिए हैं, क्योंकि वे इसे बाजार में जाकर बेच नहीं सकते थे। उन्होंने इसके उत्पादन पर करीब 5 लाख रुपये खर्च किए थे। उन्होंने आसपास के गावों के लोगों से भी कहा था कि मुफ्त में आकर ले जाएं, लेकिन कुछ ही लोग आए। 

देश के सबसे बड़े अंगूर निर्यातक सायदी फार्म्स के दयानेश अगले कहते हैं, 'भारतीय अंगूर यूरोप में भी निर्यात किए जाते हैं। लेकिन कोरोना वायरस के प्रसार की वजह से मांग में बड़ी गिरावट आई है।' गेरबेरा, ग्लाडियोली जैसे महंगे फूलों को उगाने वाले किसानों की जिंदगी से भी रौनक दूर हो गई है।

2 एकड़ जमीन में फूल उगाए राहुल पवार ने कहा, 'गर्मियों में मैं एक फूल 15-20 रुपये में बेचता था। लेकिन अभी कोई 1 रुपये में लेने को तैयार नहीं है।' एक अन्य फूल उत्पादक सचिन ने कहा कि हमारी अधिकांश आमदनी गर्मियों में ही होती थी, लेकिन इस बार कोरोना की नजर लग गई।  

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