News18 : Aug 21, 2020, 04:27 PM
नई दिल्ली। लोकल स्तर पर निवेश को बूस्ट करने और विदेशी आउटफ्लो को कम करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अब चाहती है कि भारतीय कंपनियां अपने विदेशी पार्टनर्स को कम रॉयल्टी दें। इस बारे में सरकार ने एक कैबिनेट ड्राफ्ट नोट भी तैयार कर लिया है, जिसे अंतिम रूप देने के लिए अगले सप्ताह अंतर मंत्रालयी समूह (Inter Ministerial Group) के सामने रखा जाएगा। इसके बाद कैबिनेट की अंतिम मंजूरी ली जाएगी। भारत की मारुति सुजुकी (Maruti Suzuki) और हुंडई (Hyundai) जैसी कंपनियां जापान और दक्षिण कोरिया स्थित अपने विदेशी पार्टनर्स को टेक्नोलॉजी और ब्रांड के इस्तेमाल के बदले लाखों डॉलर रॉयल्टी के रूप में भेजती हैं।
दरअसल, सरकार चाहती है कि जो कंपनी अपने विदेशी पार्टनर को पैसा देती है, उसे विदेश न भेजे। उसे देश में ही रखे। उसे यहां पर निवेश करें या कैपिटल एक्सपेंडिचर (Capital Expenditure) पर खर्च करें। इसीलिए सरकार रॉयल्टी पेमेंट पर एक अधिकतम सीमा लगाने जा रही है। सरकार की एक चिंता यह भी है कि रॉयल्टी के जरिए आउटफ्लो ज्यादा है। कुछ पुरानी टेक्नोलॉजी के नाम पर भी ज्यादा पैसा विदेश जा रहा है। CNBC-आवाज़ को सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक, उद्योग मंत्रालय ने इसका एक कैबिनेट ड्राफ्ट नोट तैयार कर लिया है।>> इस प्रस्ताव में यह है कि कोई भी कंपनी विदेशी पार्टनर के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के नाम पर उनको रॉयल्टी देती है तो शुरू के 4 साल में अपने टर्नओवर का 4 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी नहीं दे सकती।
>> उसके बाद के 3 साल के लिए यह 3 फीसदी होगा। इसके बाद अगले 3 साल के लिए 2 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी नहीं दे सकेंगी। जब 10 साल पूरा हो जाएगा, तब कंपनियों को 1 फीसदी तक रॉयल्टी देनी होगी।
>> अगर कोई कंपनी ब्रांड के नाम पर या डिजाइन के नाम पर विदेशी पार्टनर को रॉयल्टी देती है तो 1 फीसदी से ज्यादा नहीं दे सकेगी। अगर कोई कंपनी 1 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी देना चाहती है तो सरकार से मंजूरी लेनी पड़ेगी।
>> इस संबंध में अगले सप्ताह अंतर मंत्रालयी कमेटी की बैठक भी बुलाई गई है। इस बैठक के बाद सरकार कैबिनेट से अंतिम मंजूरी लेगी।
>> प्रस्ताव के मुताबिक, ब्रांड या डिजाइन के नाम पर 10 साल के बाद रायॅल्टी नहीं दे सकेंगे। ऑटो सेक्टर में हुंडई, BOSCH, मारुति सुजुकी जो अपने विदेशी पार्टनर को रॉयल्टी पेमेंट करती हैं।
क्या कंपनियों के पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स पर भी यह लागू होगा?पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर क्या शर्तें होंगी, इस बारे में सरकार ने कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है। चूंकि, पिछले दिनों ऑटो कंपनियों के साथ भी बैठक हुई थी, जिसमें उद्योग मंत्री ने यह बात कही थी कि आप इसके लिए तैयार रहिए। संभव है कि मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट में यह सख्ती से लागू न किया जाये या इसके लिए कोई दूसरा फॉर्मुला निकाला जाए। इस पर अंतर मंत्रालयी बैठक में फैसला लिया जाएगा।विदेशी पार्टनर्स को हर साल अरबों रुपये की रॉयल्टीभारत में लिस्टेड कंपनी मारुति सुजुकी, बोश, शैफलर इंडिया (Schaefller India) और वैब्को इंडिया (Wabco India) फिलहाल 1 से 5 फीसदी तक रॉयल्टी देती हैं। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए मारुति सुजुकी ने अपनी जापानी कंपनी सुजुकी मोटर को 38।2 अरब रुपये रॉयल्टी के रूप में दिया था, जोकि 5 फीसदी है। हुंडई ने अपनी दक्षिण कोरियाई पार्टनर को वित्त वर्ष 2018-19 में 2।6 फीसदी रॉयल्टी दी थी। पिछले वित्त वर्ष में यह 3।4 फीसदी था।
दरअसल, सरकार चाहती है कि जो कंपनी अपने विदेशी पार्टनर को पैसा देती है, उसे विदेश न भेजे। उसे देश में ही रखे। उसे यहां पर निवेश करें या कैपिटल एक्सपेंडिचर (Capital Expenditure) पर खर्च करें। इसीलिए सरकार रॉयल्टी पेमेंट पर एक अधिकतम सीमा लगाने जा रही है। सरकार की एक चिंता यह भी है कि रॉयल्टी के जरिए आउटफ्लो ज्यादा है। कुछ पुरानी टेक्नोलॉजी के नाम पर भी ज्यादा पैसा विदेश जा रहा है। CNBC-आवाज़ को सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक, उद्योग मंत्रालय ने इसका एक कैबिनेट ड्राफ्ट नोट तैयार कर लिया है।>> इस प्रस्ताव में यह है कि कोई भी कंपनी विदेशी पार्टनर के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के नाम पर उनको रॉयल्टी देती है तो शुरू के 4 साल में अपने टर्नओवर का 4 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी नहीं दे सकती।
>> उसके बाद के 3 साल के लिए यह 3 फीसदी होगा। इसके बाद अगले 3 साल के लिए 2 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी नहीं दे सकेंगी। जब 10 साल पूरा हो जाएगा, तब कंपनियों को 1 फीसदी तक रॉयल्टी देनी होगी।
>> अगर कोई कंपनी ब्रांड के नाम पर या डिजाइन के नाम पर विदेशी पार्टनर को रॉयल्टी देती है तो 1 फीसदी से ज्यादा नहीं दे सकेगी। अगर कोई कंपनी 1 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी देना चाहती है तो सरकार से मंजूरी लेनी पड़ेगी।
>> इस संबंध में अगले सप्ताह अंतर मंत्रालयी कमेटी की बैठक भी बुलाई गई है। इस बैठक के बाद सरकार कैबिनेट से अंतिम मंजूरी लेगी।
>> प्रस्ताव के मुताबिक, ब्रांड या डिजाइन के नाम पर 10 साल के बाद रायॅल्टी नहीं दे सकेंगे। ऑटो सेक्टर में हुंडई, BOSCH, मारुति सुजुकी जो अपने विदेशी पार्टनर को रॉयल्टी पेमेंट करती हैं।
क्या कंपनियों के पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स पर भी यह लागू होगा?पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर क्या शर्तें होंगी, इस बारे में सरकार ने कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है। चूंकि, पिछले दिनों ऑटो कंपनियों के साथ भी बैठक हुई थी, जिसमें उद्योग मंत्री ने यह बात कही थी कि आप इसके लिए तैयार रहिए। संभव है कि मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट में यह सख्ती से लागू न किया जाये या इसके लिए कोई दूसरा फॉर्मुला निकाला जाए। इस पर अंतर मंत्रालयी बैठक में फैसला लिया जाएगा।विदेशी पार्टनर्स को हर साल अरबों रुपये की रॉयल्टीभारत में लिस्टेड कंपनी मारुति सुजुकी, बोश, शैफलर इंडिया (Schaefller India) और वैब्को इंडिया (Wabco India) फिलहाल 1 से 5 फीसदी तक रॉयल्टी देती हैं। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए मारुति सुजुकी ने अपनी जापानी कंपनी सुजुकी मोटर को 38।2 अरब रुपये रॉयल्टी के रूप में दिया था, जोकि 5 फीसदी है। हुंडई ने अपनी दक्षिण कोरियाई पार्टनर को वित्त वर्ष 2018-19 में 2।6 फीसदी रॉयल्टी दी थी। पिछले वित्त वर्ष में यह 3।4 फीसदी था।