बिज़नेस / महंगाई या मंदी, किसे रोकना चाहता है US, भारत पर कैसे पड़ेगा असर, समझें

Zoom News : Jun 17, 2022, 03:38 PM
बिज़नेस : ''बाइडेन एक काल्पनिक दुनिया में हैं, वह अमेरिका की महंगाई को ''पुतिन इन्फ्लेशन'' नाम देना चाहते हैं।'' रूस सरकार की ओर से जब ये प्रतिक्रिया दी गई तब अमेरिका का सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व महंगाई या मंदी, दोनों में से किसी एक को चुनने की जद्दोजहद कर रहा था।

हालांकि, अब फेड रिजर्व ने ब्याज दरों में रिकॉर्ड 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर यह साफ कर दिया है कि उसका पहला लक्ष्य महंगाई को काबू में लाना है। यह इसलिए भी क्योंकि अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। अब यह भी तय माना जा रहा है कि अमेरिकी इकोनॉमी शॉर्ट टर्म मंदी की ओर जा रही है। वहीं, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इकोनॉमी शॉर्ट टर्म के लिए ही सही लेकिन मंदी आ चुकी है।

मंदी का मतलब: दरअसल, कई तिमाहियों तक इकोनॉमी में सुस्ती की वजह से मंदी की बात की जाती है। मंदी को मापने का सबसे बड़ा पैमाना जीडीपी ग्रोथ रेट होते हैं। अनुमान है कि अमेरिका की ग्रोथ रेट 1 फीसदी से भी नीचे जा सकती है। इस बात को हवा अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व के अनुमान से मिली है। सेंट्रल बैंक का अनुमान है कि 2022 का GDP ग्रोथ 1.7 फीसदी रहेगा, जो पहले 2.8 फीसदी पर रखा गया था। फेड रिजर्व का अनुमान वर्तमान हालात को देखते हुए है लेकिन आगे और भी सिकुड़न की आशंका है।

ब्याज दर बढ़ने से मंदी कैसे आएगी: इसका सिंपल फॉर्मूला उपभोक्ता के खर्च से जुड़ा है। सेंट्रल बैंक ब्याज दर में बढ़ोतरी इसलिए करते हैं ताकि उपभोक्ता खर्च करने में कंजूसी दिखाएं। इसका मकसद डिमांड और सप्लाई के अंतर को कम करना होता है। अर्थशास्त्र का सीधा गणित है कि उपभोक्ता की जेब मे पैसे ज्यादा होंगे तो खर्च ज्यादा करेंगे। खर्च ज्यादा का मतलब है कि बाजार में डिमांड बढ़ेगी। डिमांड को पूरा करने के लिए सप्लाई को बढ़ाना पड़ेगा। इसके लिए बाहरी देशों से आयात करना होगा।

सप्लाई चेन पर असर: वर्तमान में कोविड और रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग की वजह से अमेरिका समेत दुनियाभर में सप्लाई चेन प्रभावित है। कोविड की वजह से चीन में अब भी फैक्ट्रियां बंद हैं, तो उत्पादन भी ठीक से नहीं हो पा रहा है। वहीं, रूस-यूक्रेन जंग में बाहरी देशों की सप्लाई चेन टूटती दिख रही है। इससे अमेरिका भी अछूता नहीं है। कहने का मतलब ये है कि डिमांड और सप्लाई के बीच का अंतर ना बढ़े, इसके लिए ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं। अगर यह अंतर बढ़ता जाएगा तो उपभोक्ताओं की जरूरत के सामान की किल्लत होगी। वहीं, महंगाई में भी तेजी आएगी। 

मंदी के मायने: अमेरिका ने शॉर्ट टर्म के लिए ही सही लेकिन मंदी की राह चुनी है तो ये भी उतना आसान नहीं है। मंदी की वजह से इकोनॉमी की ग्रोथ सुस्त होगी। इससे जॉब डेटा पर असर पड़ सकता है और बेरोजगारी बढ़ सकती है। लोगों की सैलरी में स्थिरता आएगी। हालांकि, अच्छी बात ये है कि अमेरिका में बेरोजगारी अब भी बेकाबू नहीं है। 

बाजार पर आहट: अमेरिका में मंदी की आहट का सबसे पहला असर देश के शेयर बाजारों में देखने को मिल रहा है। अमेरिकी शेयर बाजार के कुछ सूचकांक की बियर मार्केट में एंट्री हो चुकी है। मतलब ये कि सूचकांक उच्चतम स्तर से 20 फीसदी या उससे ज्यादा नीचे आ चुके हैं। अमेरिका के बिगड़ते हालात की वजह से एशिया के अधिकतर शेयर मार्केट भी रेंग रहे हैं। भारतीय शेयर बाजार की बात करें तो यह एक साल के निचले स्तर पर है।

भारत के बाजार पर असर क्यों: फेड रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं तो उन विदेशी निवेशकों के लिए एक झटका है जो कम ब्याज दर पर कर्ज लेकर तगड़ा रिटर्न के लिए भारत जैसे देशों में निवेश करते हैं। इसके अलावा भविष्य की अस्थिरता को देखते हुए विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं। यही नहीं, निवेशकों को ब्याज दरें बढ़ने से अपने देश में अधिक मुनाफा कमाने का एक मौका भी मिलेगा।

भारत के लिए चिंता क्यों: अमेरिका की मंदी की वजह से रुपया कमजोर होगा। इसका असर दिख भी रहा है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया अपने सबसे निचले स्तर तक आ गया है। ऐसा अनुमान है कि जल्द ही 1 डॉलर के मुकाबले रुपये का मोल 80 हो जाएगा। मतलब एक डॉलर का भाव भारत में 80 रुपया या उससे अधिक होगा। 

रुपया कमजोर हुआ तो क्या होगा: देश को आयात के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। इससे आयात बिल बढ़ेगा, कच्चे तेल की रिकॉर्ड कीमतों के बीच यह बड़ा नुकसान हो सकता है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार भी कमजोर होगा। इसके अलावा कंपनियां भी आयातित चीजों के लिए ज्यादा रुपये का भुगतान करेंगी। इससे उनका मार्जिन कम होगा और इसकी वसूली के लिए वह प्रोडक्ट के दाम बढ़ा देंगी, ऐसे में महंगाई बढ़ेगी।

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