Iran-Israel Conflict / आखिरी वक्त तक ईरान ने नहीं मानी हार, इन 2 फोन कॉल से जाकर रुकी इजराइल से जंग

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कतर की सिफारिश पर ईरान और इजराइल के बीच सीजफायर कराया। रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी मिसाइल अटैक के बाद कतर सक्रिय हुआ। ट्रंप ने मध्यपूर्व दूत विटकॉफ के जरिए ईरान से बात की। इजराइल के हमले रोकने की शर्त पर ईरान सीजफायर पर सहमत हुआ।

Iran-Israel Conflict: मध्यपूर्व में बढ़ते तनाव के बीच एक बड़ी कूटनीतिक सफलता सामने आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कतर की सिफारिश पर ईरान और इजराइल के बीच युद्धविराम लागू करवाया है। यह खुलासा अमेरिकी मैगजीन न्यूजवीक ने राजनयिक सूत्रों के हवाले से किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे ही ईरान ने कतर की राजधानी दोहा स्थित अमेरिकी एयरबेस पर छह मिसाइलें दागीं, कतर के अमीर और प्रधानमंत्री ने तुरंत अमेरिका से हस्तक्षेप की मांग की।

कतर का कूटनीतिक हस्तक्षेप

न्यूजवीक की रिपोर्ट के अनुसार, कतर के शासकों ने तत्काल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से संपर्क किया। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ट्रंप ने अपने मध्यपूर्व के विशेष दूत विटकॉफ से चर्चा की। विटकॉफ ने तत्काल ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघाची से संपर्क साधा।

शर्तों के साथ बनी सहमति

Axios की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि विटकॉफ के संपर्क में आते ही ईरानी विदेश मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि ईरान तभी पीछे हटेगा जब इजराइल अपने सैन्य अभियान को रोकेगा। अराघाची का कहना था कि संघर्ष की शुरुआत इजराइल ने की थी, इसलिए अब पहला कदम भी उसे ही उठाना होगा। विटकॉफ ने भरोसा दिलाया कि इजराइल अगले 24 घंटे तक कोई हमला नहीं करेगा। इसके बाद ईरान ने सशर्त सहमति जताई और युद्धविराम की राह साफ हुई।

कतर के अमीर की सक्रिय भूमिका

पूरे घटनाक्रम के दौरान कतर के अमीर और प्रधानमंत्री लगातार अमेरिकी नेतृत्व से संपर्क में रहे। सीजफायर की घोषणा से पहले तक दोनों नेताओं ने न केवल स्थिति की गंभीरता साझा की, बल्कि समाधान की प्रक्रिया में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। कतर को आशंका थी कि हमले का अगला निशाना फिर से वही बन सकता है।

अमेरिका की रणनीति और ईरान की प्रतिक्रिया

इस संघर्ष के पीछे एक अहम मुद्दा ईरान का यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम रहा है। अमेरिका और इजराइल की रणनीति इसी पर केंद्रित थी। अमेरिकी हमले में ईरान की तीन न्यूक्लियर साइट्स को निशाना बनाया गया, जिनके बारे में अमेरिका का दावा था कि वहां यूरेनियम का भंडारण था। हालांकि, ईरान ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि इन साइट्स पर संवर्धित यूरेनियम मौजूद ही नहीं था।

ब्रिटिश अखबार ‘द टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान ने हमले से पहले ही लगभग 400 किलोग्राम यूरेनियम को गुप्त रूप से अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया था। इस कदम की जानकारी न तो अमेरिका को थी और न ही इजराइल को।

अब आगे क्या?

इजराइल का मानना है कि अब ईरान कम से कम अगले एक-दो साल तक परमाणु हथियार तैयार करने की स्थिति में नहीं होगा। लेकिन स्थिति कितनी स्थिर रहेगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि ईरान आगे क्या रणनीति अपनाता है। एक ओर जहां अमेरिका और इजराइल यह मानकर चल रहे हैं कि उन्होंने ईरान के कार्यक्रम को रोक दिया है, वहीं ईरान के अंदरूनी कदमों की जानकारी फिलहाल सीमित है।