Bharat Jodo Setu / बीजेपी का 'नामकरण' खेल: जयपुर के 'भारत जोड़ो सेतु' का नाम अब 'सरदार पटेल सेतु'

जयपुर के 'भारत जोड़ो सेतु' का नाम बदलकर 'सरदार वल्लभभाई पटेल सेतु' कर दिया गया है। यह कदम राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के नाम पर रखे गए पुल के नाम को सरदार पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर बदलने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। यह राजस्थान में नाम बदलने की राजनीति का एक और उदाहरण है, जहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ने सार्वजनिक संपत्तियों के नाम बदलकर राजनीतिक संदेश दिए हैं।

जयपुर में सार्वजनिक संपत्तियों के नाम बदलने की राजनीति एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। हाल ही में, जयपुर के एक महत्वपूर्ण पुल, जिसे पहले 'भारत जोड़ो सेतु' के नाम से जाना जाता था, का नाम बदलकर 'सरदार वल्लभभाई पटेल सेतु' कर दिया गया है। यह कदम जयपुर नगर निगम द्वारा उठाया गया है और इसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक चतुर राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जो विरोध की संभावनाओं को लगभग शून्य कर देती है।

'भारत जोड़ो सेतु' का नामकरण और पुन: नामकरण

इस पुल का उद्घाटन 2022-23 में उस समय किया गया था जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' राजस्थान से गुजर रही थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए पुल का नाम राहुल गांधी की यात्रा के नाम पर 'भारत जोड़ो सेतु' रख दिया था। यह नामकरण न केवल सामयिक था, बल्कि कांग्रेस के 'भारत जोड़ो' के संदेश को भी मजबूती प्रदान करता था और हालांकि, अब भाजपा ने एक ऐसा 'खेल' खेला है, जिसने इस नाम को बदल दिया है। हाल ही में सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मनाई गई, और इसी अवसर पर जयपुर नगर निगम ने 'भारत जोड़ो सेतु' का नाम बदलकर 'सरदार वल्लभभाई पटेल सेतु' रखने का प्रस्ताव पारित कर दिया। सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत को एकजुट करने के लिए जाना जाता है, क्योंकि आजादी के बाद उन्होंने देश की 562 रियासतों को भारतीय संघ में मिलाकर भारत गणराज्य का निर्माण किया था। इस प्रकार, 'भारत जोड़ो' का संदेश कांग्रेस की यात्रा से हटकर सीधे सरदार पटेल के। ऐतिहासिक योगदान से जुड़ गया, जिससे कांग्रेस के लिए इसका विरोध करना मुश्किल हो गया। यह पहली बार नहीं है जब राजस्थान में सार्वजनिक संपत्तियों के नाम राजनीतिक उद्देश्यों के लिए बदले गए हैं। भाजपा के लिए यह एक पुरानी और आजमाई हुई रणनीति रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी पहली सरकार के दौरान जयपुर के जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर शिक्षा विभाग के लिए एक विशाल भवन 'शिक्षा संकुल' का निर्माण करवाया था। उन्होंने इसे 'राजीव गांधी शिक्षा संकुल' नाम दिया था, जो। कांग्रेस के एक और प्रमुख नेता के नाम पर था।

नाम बदलने की पुरानी राजनीतिक परंपरा

'राजीव गांधी शिक्षा संकुल' का प्रकरण

2003 में जब भाजपा की वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पहली सरकार। सत्ता में आई, तो उन्होंने इस भव्य भवन का नाम बदल दिया। 'राजीव गांधी शिक्षा संकुल' का नाम बदलकर 'डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा संकुल' कर दिया गया। डॉ. राधाकृष्णन भी एक सम्मानित राष्ट्रीय व्यक्ति और पूर्व राष्ट्रपति थे, जिनका संबंध भी कांग्रेस से रहा था। इस कदम ने कांग्रेस को एक बड़ी दुविधा में डाल दिया, क्योंकि वे एक राष्ट्रीय शिक्षाविद् और पूर्व राष्ट्रपति के नाम। का विरोध नहीं कर सकते थे, भले ही यह उनके अपने नेता के नाम को बदलने के लिए किया गया था। इस प्रकार, भाजपा ने बिना किसी बड़े विरोध के अपना राजनीतिक एजेंडा साध लिया।

जोधपुर के 'अशोक उद्यान' में बदलाव

इसी तरह का एक और उदाहरण जोधपुर में देखने को मिला और राजस्थान हाउसिंग बोर्ड ने एक बड़ा उद्यान बनाया था, जिसके तत्कालीन अध्यक्ष मानसिंह देवड़ा थे। मानसिंह देवड़ा वही व्यक्ति थे जिन्होंने 1999 में सूरसागर सीट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए खाली की थी, जिसके बाद गहलोत ने उन्हें हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। देवड़ा ने इस उद्यान का नाम 'अशोक उद्यान' रखा था, जो जोधपुर में 'अशोक गहलोत उद्यान' का ही आभास देता था और वसुंधरा राजे सरकार ने इसमें भी एक 'खेल' किया। उन्होंने 'अशोक' के आगे 'सम्राट' जोड़ दिया, और नाम 'सम्राट अशोक उद्यान' हो गया। इस सूक्ष्म बदलाव ने उद्यान के नाम का संबंध मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हटाकर महान ऐतिहासिक शासक सम्राट अशोक से जोड़ दिया। इसके बाद अशोक गहलोत दो बार और राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्होंने इस नाम को नहीं बदला। यह दर्शाता है कि भाजपा की यह रणनीति कितनी प्रभावी थी कि कांग्रेस भी इसे पलटने में संकोच करती थी।

राजनीतिक रणनीति का बदलता स्वरूप

पहले ऐसे 'खेल' मुख्यमंत्री स्तर पर किए जाते थे, लेकिन अब यह रणनीति मेयर स्तर पर भी अपनाई जा रही है। जयपुर की मेयर सौम्या गुर्जर ने इस नवीनतम नामकरण के साथ अपनी राजनीतिक समझ और कौशल का प्रदर्शन किया है। उन्होंने मात्र पांच साल के अपने कार्यकाल में राजनीति के मुख्यमंत्री स्तर के खेल सीख लिए हैं, जो उनके उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य का संकेत देता है। यह दर्शाता है कि भाजपा की यह रणनीति अब निचले स्तर तक पहुंच गई है और स्थानीय निकायों के माध्यम से भी इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। यह राजनीतिक दांव-पेंच न केवल प्रतीकात्मक होते हैं, बल्कि जनता के मानस पर भी गहरा प्रभाव डालते। हैं, जिससे सत्ताधारी दल को एक मजबूत संदेश देने और विपक्ष को कमजोर करने का अवसर मिलता है।