बिहार चुनाव / सात दिन में चली गई थी नीतीश की कुर्सी, लालू के इस दांव से बन गई राबड़ी सरकार

AajTak : Sep 22, 2020, 09:12 AM
Delhi: 20 साल पहले की बात है जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन महज 7 दिनों बाद ही उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। नीतीश कुमार मार्च 2000 में सीएम बने लेकिन बहुमत न होने के चलते इस्तीफा देना पड़ा। साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं था। इस चुनाव में लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को सबसे अधिक 124 सीटें मिली थी। उस वक्त झारखंड बिहार से अलग नहीं था और 324 सदस्यों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 163 विधायकों की जरूरत थी।

आरजेडी के लिए अकेले सरकार बनाना नामुमकिन था उसको सरकार बनाने के लिए 39 और विधायकों की जरूरत थी। कांग्रेस का साथ मिले बिना यह मुश्किल था। इस चुनाव में  कांग्रेस के 23 विधायक चुनाव जीतकर सदन पहुंचे थे। लालू यादव ने अपना पूरा जोर लगाया, कांग्रेस और निर्दलियों के सहारे राबड़ी देवी की सरकार बनी। एक ओर जहां राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं तो दूसरी ओर कांग्रेस के 23 में से 21 विधायक मंत्री और एक विधायक विधानसभा अध्यक्ष बने।


ऐसा पहली बार था जब सभी विधायक बन गए मंत्री

साल 2000 में कांग्रेस ने बिहार चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया। कांग्रेस की ओर से सभी 324 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए लेकिन नतीजे कहीं से भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं गए। इस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद ही निराशाजनक रहा। 324 सीटों में से केवल 23 सीटों पर ही उसके उम्मीदवार चुनाव जीत सके।

यह पार्टी के लिए बेहद ही निराशाजनक प्रदर्शन था लेकिन चुनाव जीते विधायकों के लिए नहीं। कांग्रेसी विधायकों की मदद से बिहार में राबड़ी देवी की सरकार बन गई। बिहार में शायद यह पहला मौका था जब कांग्रेस के जितने भी विधायक जीते उनमें से एक को छोड़कर सभी मंत्री बन गए।

कांग्रेस के सदानंद सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। बाकी 22 विधायकों को भी मंत्री पद मिला, एक विधायक ने राज्य मंत्री बनने से इनकार करते हुए शपथ नहीं ली। ऐसे में देखा जाए तो उसके सभी विधायक मंत्री बनाए गए थे।


राज्यमंत्री का पद लगा साजिश, नहीं ली शपथ

राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में साल 2000 में जिस एक कांग्रेसी विधायक ने बतौर राज्यमंत्री पद की शपथ नहीं ली वो थे अब्दुल जलील मस्तान। अब्दुल जलील मस्तान पहली बार पूर्णिया जिले के अमौर विधानसभा से निर्दलीय विधायक बने। 1990 में वो कांग्रेस में शामिल हो गए।

कांग्रेस को 90 के चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन मस्तान जीत गए। हालांकि 95 का चुनाव वो हार गए। साल 2000 में चुनाव जीतने के बाद उन्हें राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्यौता मिला। मस्तान को राज्यमंत्री का पद अपने खिलाफ साजिश लगी। मस्तान 2005 का चुनाव जीते लेकिन 2010 में उनकी हार हुई।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब नीतीश, लालू और कांग्रेस सभी मिलकर लड़े। मस्तान को जीत मिली और मंत्री बने। मंत्री रहते हुए उन्होंने पीएम मोदी के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया था जिसके चलते बिहार में जमकर हंगामा हुआ था।


कांग्रेस के इस  फैसले पर आज भी सवाल

कांग्रेस और आरजेडी दोनों ही चुनाव अलग- अलग लड़े थे। बहुमत किसी के पास नहीं था, नीतीश कुमार को महज 7 दिनों बाद ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस के सहयोग से आरजेडी की सरकार बिहार में बन गई लेकिन कई चुनावी जानकार आज भी इस फैसले पर सवाल खड़े करते हैं।

चुनावी विश्लेषक मानते हैं कि राबड़ी देवी की सरकार भले ही कांग्रेस के सहयोग से चलती रही लेकिन उन वर्षों में कांग्रेस बिहार में कमजोर होती चली गई। कांग्रेस के सभी विधायक मंत्री तो बन गए लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव आते-आते पार्टी की हालत काफी खराब हो गई। उसके बाद के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की संख्या कम होती चली गई। 

2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें घटकर 9 हो गईं। 2010 के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन और भी ज्यादा खराब हो गया और उसे महज 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा। पहली बार कांग्रेस को बिहार में इतनी कम सीटें मिली। बिहार चुनावी राजनीति के जानकारों की मानें तो कहीं न कहीं साल 2000 में कांग्रेस से चूक हुई जिसका खामियाजा उसे बिहार में उठाना पड़ा।


SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER