देश / क्या भारत में पहले ही दस्तक दे चुका था ओमिक्रॉन? सुलग रहे सवाल, टेंशन में सरकार

Zoom News : Dec 04, 2021, 07:27 AM
New Delhi : अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार और जाने-माने संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची ने ओमिक्रॉन को लेकर हाल में जो बात कही थी वह भारत के संदर्भ में भी सही प्रतीत होती दिख रही है। बेंगलुरु में एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के ओमिक्रॉन संक्रमित पाए जाने से सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं। क्योंकि वह व्यक्ति विदेश से नहीं लौटा था और न ही ऐसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आया था। ऐसे में उसके संक्रमण की सबसे बड़ी वजह यही हो सकती है कि यह वेरिएंट पहले ही देश में पहुंच चुका हो। चिकित्सा विशेषज्ञ भी इस बात से इनकार नहीं करते।

यदि जांच हो तो और मिलेंगे मामले :

फाउची के अनुसार, ओमिक्रॉन को रोकना संभव नहीं है और यदि जांच हो तो कोई बड़ी बात नहीं कि यह पहले से देश में मौजूद हो। दरसअल, नवंबर मध्य में ओमिक्रॉन के संक्रमण की पुष्टि होते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पूरी दुनिया में सतर्कता बढ़ा दी थी। तब पहली बार दक्षिण अफ्रीका में इसके मामले मिले थे, लेकिन 249 कोरोना पॉजिटिव नमूनों की जांच में 74 फीसदी मामलों में ओमिक्रॉन पाया गया। यह दर्शाता है कि जब तक वेरिएंट पकड़ में आया तब तक वह बड़े पैमाने पर दक्षिण अफ्रीका में पैर पसार चुका था। इस बीच वहां से लोगों की आवाजाही जारी रही जिससे उसका प्रसार होता रहा हो सकता है। यही कारण है कि पिछले दस दिनों के दौरान जब इस वेरिएंट की निगरानी तेज हुई है तो 30 देशों में इसके मामले पकड़ में आ चुके हैं।

रोजाना बढ़ रहे मामले :

वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. जुगल किशोर ने कहा कि बेंगलुरु में जिस प्रकार से स्थानीय नागरिक में इस वेरिएंट की पुष्टि हुई है, वह यही दर्शाता है कि देश में इसकी एंट्री हो चुकी थी। देश में रोजाना दस हजार नए संक्रमित आ रहे हैं, यदि इनमें से ज्यादा से ज्यादा मामलों की जीनोम सिक्वेंसिंग की जाए तो कई और ओमिक्रॉन संक्रमित मिल सकते हैं।

सिर्फ पांच फीसदी की ही जीनोम सिक्वेंसिंग :

एनसीडीसी के प्रमुख सुजीत के सिंह कहते हैं कि जुलाई के पहले तक देश में कई वेरिएंट आ रहे थे जिनमें अल्फा के नौ, बीटा के 0.44, गामा के 0.004, डेल्टा के 63 तथा एवाई-1-एवाई-25 तक के 17 और कप्पा के 11 फीसदी मामले दर्ज किए गए थे। उसके बाद सिर्फ डेल्टा और उससे परिवर्तित हुए एवाई के मामले ही दर्ज किए गए हैं तथा पहली बार गुरुवार को दो मामले ओमिक्रॉन के मिले हैं। लेकिन जितने भी कोरोना संक्रमित मामले मिलते हैं, उसके पांच फीसदी की ही जीनोम सिक्वेंसिंग करने के प्रावधान हैं। सच्चाई यह है कि इतनी जांच हो ही नहीं पाती है। प्रतिमाह तीन लाख मामले देश में आ रहे हैं। इस प्रकार 15 हजार नमूनों की जीनोम सिक्वेंसिंग प्रतिमाह होनी चाहिए,लेकिन इसके आधे ही ही होते हैं।

ज्यादा प्रभाव देश पर नहीं होगा :

इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो महत्वपूर्ण बातें कही हैं। एक डेल्टा के बड़े पैमाने पर संक्रमण और टीकाकरण बढ़ने के कारण ओमिक्रॉन का ज्यादा प्रभाव देश पर नहीं होगा। दूसरे, इसके बचाव के लिए जो रणनीति डेल्टा के लिए अपनाई गई है, वहीं अब भी काम आएगी। बता दें कि देश में 85 फीसदी वयस्क आबादी को एक और करीब 50 फीसदी को दोनों टीके लग चुके हैं।

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