Rupee 4-Year Low / रुपए में 4 साल की सबसे बड़ी गिरावट: पेट्रोल-डीजल, लोन EMI और महंगाई पर गहरा असर

भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 89.66 के अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया, जो लगभग चार वर्षों में सबसे बड़ी एकल-दिवसीय गिरावट है। इस गिरावट से पेट्रोल-डीजल महंगा हो सकता है, आयातित महंगाई बढ़ सकती है और आरबीआई की ब्याज दर में कटौती की उम्मीदें खत्म हो सकती हैं, जिससे आम आदमी के सपने धराशाई हो सकते हैं।

भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89. 66 के अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ, जो पिछले चार वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है और यह गिरावट न केवल करेंसी ट्रेडर्स और एनालिस्ट्स के बीच खौफ पैदा कर रही है, बल्कि आम आदमी के कई सपनों को भी धराशाई कर सकती है। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में रुपए में और भी बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है, कुछ का तो यह भी मानना है कि साल खत्म होने तक रुपया 91 के स्तर को भी पार कर सकता है।

रुपए में चार साल की सबसे बड़ी गिरावट का विश्लेषण

शुक्रवार को घरेलू विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की भारी मांग और स्थानीय व वैश्विक शेयर बाजारों में व्यापक बिकवाली दबाव के कारण रुपए में 98 पैसे की भारी गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट लगभग चार वर्षों में सबसे बड़ी थी, इससे पहले 24 फरवरी 2022 को डॉलर के मुकाबले 99 पैसे की गिरावट देखी गई थी और इंटरबैंक फॉरेन करेंसी एक्सचेंज मार्केट में रुपया लगभग स्थिर 88. 67 पर खुला, लेकिन दोपहर के सत्र में अत्यधिक अस्थिर हो गया, दिन के कारोबार के दौरान यह 88. 59 के उच्च और 89. 66 के निचले स्तर के बीच घूमता रहा और गुरुवार को रुपया 20 पैसे टूटकर 88. 68 पर बंद हुआ था।

मौजूदा साल में रुपए का प्रदर्शन और भविष्य की संभावनाएं

मौजूदा साल में डॉलर के मुकाबले रुपए में काफी बड़ी गिरावट देखने को मिली है। पिछले साल के आखिरी कारोबारी दिन रुपया 85. 64 के स्तर पर बंद हुआ था, जिसके बाद से इसमें 4. 02 रुपए यानी 4. 69 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। 17 नवंबर के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपए में 1 और 21 फीसदी यानी 1. 07 रुपए की गिरावट देखी जा चुकी है, जब यह 88. 59 के स्तर पर बंद हुआ था और जानकारों का मानना है कि रुपए में गिरावट का सिलसिला अभी रुकने वाला नहीं है। वेल्थ मैनेजमेंट के डायरेक्टर अनुज गुप्ता के अनुसार, साल के अंत तक रुपया 91 के स्तर को पार करता हुआ दिखाई दे सकता है, जिसका मुख्य कारण फेड द्वारा रेट पॉज के संकेत हैं, जिससे डॉलर को मजबूती मिलेगी।

पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर सीधा असर

आयातित महंगाई बढ़ने का खतरा

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है। डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट का सीधा असर पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर पड़ता है और भले ही विदेशी बाजारों में कच्चे तेल की कीमतें कम होकर 62 डॉलर प्रति बैरल के आसपास आ गई हों, लेकिन रुपए की बड़ी गिरावट के कारण भारत में पेट्रोल और डीजल के सस्ता होने की उम्मीदें खत्म हो गई हैं। रुपए की कमजोरी की वजह से वही सस्ता कच्चा तेल भारत को महंगा पड़ रहा है, जिसका सीधा दबाव देश की जनता पर देखने को मिलेगा। रुपए में गिरावट देश में आयातित महंगाई में इजाफा कर सकती है और जब भी रुपए में गिरावट आती है, तो भारत को विदेशी सामान खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। इसकी वजह से विदेशी सामान भारत में महंगा हो जाता है, जो भारत में समग्र महंगाई को बढ़ाने का काम करता है। वैसे मौजूदा समय में देश में महंगाई 1 फीसदी से नीचे देखने को मिल रही है, लेकिन रुपए की गिरावट से यह आंकड़ा बढ़ सकता है।

ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों पर संकट

कुछ समय पहले तक कई जानकार भविष्यवाणी कर रहे थे कि दिसंबर के महीने में आरबीआई 0. 25 फीसदी से 0. 50 फीसदी तक ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। लेकिन रुपए में आई बड़ी गिरावट इस विचार पर विराम लगा सकती है और आरबीआई विदेशी बाजारों में छाई अनिश्चितता और रुपए में गिरावट को ढाल बनाकर एक बार फिर से ब्याज दरों को होल्ड करने का फैसला ले सकता है। जून में आखिरी बार ब्याज दरों में गिरावट देखने को मिली थी, उसके बाद अगस्त और अक्टूबर की पॉलिसी मीटिंग में ब्याज दरों को होल्ड पर रखा गया था।

विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव

रुपए में गिरावट का असर देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी देखने को मिल सकता है। अब विदेशी सामान खरीदने के लिए भारत को ज्यादा डॉलर और विदेशी करेंसी खर्च। करनी पड़ेगी, जिसकी वजह से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में असर देखने को मिलेगा। मौजूदा समय में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 692 अरब डॉलर से ज्यादा देखने को मिल रहा है,। लेकिन रुपए की लगातार गिरावट इसे प्रभावित कर सकती है, जो देश की इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं है।

रुपए की इस बड़ी गिरावट के प्रमुख कारण

सीआर फॉरेक्स एडवाइजर्स ने एक नोट में कहा कि शुक्रवार को भारतीय रुपए के मुकाबले डॉलर में नाटकीय उछाल आया और इसने अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तर को तोड़ दिया और यह बदलाव मुख्यतः मांग-आधारित था, जो ऐसे समय में डॉलर की अप्रत्याशित खरीदारी के कारण हुआ जब आपूर्ति कम थी। अन्य सभी प्रमुख संकेतक मोटे तौर पर स्थिर रहे – डॉलर इंडेक्स, कच्चे तेल की कीमतें, उभरते बाजारों की करेंसीज, और यहां तक कि सोने में भी कोई खास बदलाव नहीं हुआ। इसके अलावा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक वाले शेयरों के आसपास संभावित बुलबुले के निर्माण की चिंताओं। और विदेशी पूंजी की नए सिरे से निकासी ने भी निवेशकों की भावनाओं को प्रभावित किया।

वैश्विक बाजार की गतिशीलता और जोखिम-मुक्त धारणा

कोटक सिक्योरिटीज के रिसर्च करेंसी, कमोडिटी और इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव्स प्रमुख, अनिंद्य बनर्जी ने बताया कि क्रिप्टोकरेंसी और एआई-लिंक्ड टेक्नोलॉजी शेयरों में रातोंरात हुई भारी गिरावट के बाद वैश्विक जोखिम-मुक्त धारणा करेंसी बाजारों में भी फैल गई है और जोखिम वाले सौदों में अचानक कमी आने से भारतीय रुपए सहित उभरते बाजारों की करेंसी पर दबाव बढ़ रहा है। प्रस्तावित भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर बनी अनिश्चितता भी इस दबाव को और बढ़ा रही है। इस बीच, छह मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर सूचकांक 0. 09 प्रतिशत बढ़कर 100 और 17 पर पहुंच गया। वैश्विक तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 2. 18 प्रतिशत की गिरावट के साथ 62. 00 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। घरेलू शेयर बाजार के मोर्चे पर, सेंसेक्स 400. 76 अंक या 0. 47 प्रतिशत की गिरावट के साथ 85,231 और 92 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 124. 00 अंक या 0. 47 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,068. 15 पर बंद हुआ और एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने गुरुवार को शुद्ध आधार पर 1,766. 05 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

आरबीआई गवर्नर का रुपए की अस्थिरता पर रुख

रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने गुरुवार को कहा कि केंद्रीय बैंक रुपए के लिए किसी स्तर को लक्षित नहीं करता है, और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में हालिया गिरावट मुख्य रूप से अमेरिकी प्रशासन द्वारा टैरिफ लगाए जाने के बाद व्यापार अनिश्चितताओं के कारण है और मल्होत्रा ​​ने कहा कि यह बाजार को तय करना है, यह एक वित्तीय साधन है, और डॉलर की मांग है, और अगर डॉलर की मांग बढ़ती है, तो रुपया गिरता है; और अगर रुपए की मांग बढ़ती है, तो डॉलर गिरता है, तो यह मजबूत होता है। गवर्नर ने यह भी विश्वास व्यक्त किया कि भारत अमेरिका के साथ एक अनुकूल व्यापार समझौता करेगा, जिससे चालू खाते पर दबाव कम करने में मदद मिलेगी।