Sheikh Hasina News / शेख हसीना की मौत की सज़ा पर भारत के हाथ में फैसला: प्रत्यर्पण पर जटिल पहेली

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने का भारत से आग्रह किया है, जिन्हें 'मानवता के खिलाफ अपराधों' के लिए मौत की सज़ा सुनाई गई है। भारत में रह रहीं हसीना का भाग्य अब दिल्ली के कानूनी और कूटनीतिक फैसले पर निर्भर करता है, जिसके भू-राजनीतिक परिणाम दूरगामी हो सकते हैं।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमां खान कमाल को तुरंत प्रत्यर्पित करने का सोमवार को आग्रह किया है और यह अनुरोध हसीना को ढाका में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) द्वारा 'क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी' के आरोपों में मौत की सज़ा सुनाए जाने के बाद किया गया है। शेख हसीना, जो वर्तमान में भारत में पनाह लिए हुए हैं, उनकी जान अब भारत के फैसले पर टिकी है। यह स्थिति भारत के लिए एक जटिल कानूनी और कूटनीतिक चुनौती पेश करती है, जिसमें उसे अपने सिद्धांतों, पड़ोसी देशों के साथ संबंधों और भू-राजनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाना होगा।

2024 का छात्र आंदोलन और हसीना का पलायन

पिछले साल 2024 में बांग्लादेश में एक बड़े पैमाने पर छात्र आंदोलन शुरू हुआ था। यह आंदोलन बांग्लादेश सरकार की आरक्षण नीति सुधार के विरोध से शुरू हुआ था, लेकिन सिर्फ 48 घंटों के भीतर यह एक राष्ट्रव्यापी बगावत में बदल गया और कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस आंदोलन में 1,200 से 1,400 के करीब लोगों की मौत हुई, जबकि 20,000 से अधिक लोग घायल हुए। इस दौरान 8,000 से अधिक छात्रों को गिरफ्तार किया गया और 23 दिनों तक सोशल मीडिया ब्लैकआउट रहा, जिससे सूचना का प्रवाह बाधित हुआ। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे 'बांग्लादेश का largest civilian uprising' यानी बांग्लादेश का सबसे बड़ा नागरिक विद्रोह बताया। सरकार के दमन अभियान के बाद, सेना तटस्थ हो गई और संसद भंग हो गई, जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। हालात बिगड़ते देख, अगस्त 2024 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर भारत पहुंचीं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें 'ऋणात्मक सुरक्षा कवच' मुहैया करवाया, जिसका अर्थ है कि। उनका ठिकाना गोपनीय रखा गया है, लेकिन उन्हें सरकारी सुरक्षा प्रदान की गई है।

ICT-1 का फैसला: 'मानवता के खिलाफ अपराध'

17 नवंबर को, बांग्लादेश की International Crimes Tribunal-1 (ICT-1) ने शेख हसीना को मौत की सज़ा सुनाई। अदालत ने तीन प्रमुख अभियोगों का हवाला दिया, जिनके आधार पर यह फैसला लिया गया। इनमें प्रदर्शनकारियों पर हवाई हमले की मंज़ूरी देना, शहरी इलाकों में एयर-टार्गेटिंग ऑपरेशन का आदेश देना और मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन करना शामिल था और अदालत का निष्कर्ष था कि 'राज्य के सुरक्षा बलों का इस्तेमाल युद्ध-जैसे अभियान के लिए किया गया, शहरी नागरिक जनसंख्या को दुश्मन के तौर पर चिह्नित किया गया। ' अभियोजन पक्ष ने एक कथित कॉल रिकॉर्डिंग भी पेश की, जिसमें हसीना को यह कहते सुना जाता है: 'मेरे खिलाफ दर्ज केस मुझे मारने का लाइसेंस देते हैं। ' ICT-1 ने इन कृत्यों को 'क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी' (मानवता के खिलाफ अपराध) की श्रेणी में मानते हुए सज़ा-ए-मौत दी है।

शेख हसीना द्वारा फैसले को अस्वीकार करना

अपने खिलाफ आए मौत की सज़ा के फैसले के बाद, शेख हसीना। ने बयान दिया है कि 'यह राजनीतिक हटाओ अभियान है, न्याय नहीं। ' प्रमुख रिपोर्ट्स और बयानों के मुताबिक, शेख हसीना, जो वर्तमान में भारत में रह रही हैं, उन्होंने बांग्लादेश के अंतरिम प्रशासन द्वारा स्थापित International Crimes Tribunal-1 को 'पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित' बताया है और उन्होंने इसे एक 'कंगारू कोर्ट' और अपनी अवामी लीग पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेने से रोकने के लिए 'राजनीतिक अभियान' का हिस्सा बताया है। हसीना ने इस मुकदमे को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। यह प्रतिक्रिया उनके और उनकी पार्टी के इस रुख को दर्शाती है कि यह फैसला न्याय पर आधारित न होकर, राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा है।

भारत में विदेशी सज़ाओं की कानूनी स्थिति

भारत में कानूनी स्थिति इस मामले में काफी स्पष्ट है। भारत का कानून यह कहता है कि किसी विदेशी अदालत द्वारा सुनाई गई सज़ा भारत में तब तक लागू नहीं होती, जब तक भारत की अपनी अदालत उसकी समीक्षा करके उसे स्वीकार न करे। इसका सीधा अर्थ यह है कि भारत में बैठी शेख हसीना पर ICT-1 की मौत की सज़ा का कोई सीधा कानूनी प्रभाव नहीं है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र (UN) भी इस सज़ा को लागू नहीं करा सकता। ICT-1 एक घरेलू कोर्ट है, और UN केवल दो अदालतों – International Criminal Court (ICC) और International Court of Justice (ICJ) – के फैसलों को ही लागू करवा सकता है। चूंकि ICT-1 की जूरीडिक्शन UN-एन्फोर्स्ड नहीं है, इसलिए UN भारत को शेख हसीना को बांग्लादेश को सौंपने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

प्रत्यर्पण संधि और भारत के कानूनी सुरक्षा कवच

भारत और बांग्लादेश के बीच एक प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) मौजूद है, जो दोनों देशों को अपराधियों का आदान-प्रदान करने की अनुमति देती है। हालांकि, भारत का कानून प्रत्यर्पण पर तीन महत्वपूर्ण सुरक्षा फ़िल्टर लागू करता है, जिनकी अलग-अलग शर्तें हैं और पहला, यदि प्रत्यर्पण में राजनीतिक प्रतिशोध का जोखिम हो, तो उसे रोका जा सकता है। दूसरा, यदि यह आशंका हो कि व्यक्ति को निष्पक्ष ट्रायल नहीं मिलेगा, तो प्रत्यर्पण को पूरी तरह से ब्लॉक किया जा सकता है। तीसरा, यदि मानवाधिकार उल्लंघन का खतरा हो या मौत की सज़ा का डर हो, तो ऐसे मामलों में राजनीतिक शरण को प्राथमिकता दी जाएगी और भारत का एक्स्ट्राडिशन एक्ट स्पष्ट रूप से कहता है कि 'Death Penalty + Political Reasons = Extradition legally deniable' (मौत की सज़ा और राजनीतिक कारण होने पर प्रत्यर्पण को कानूनी रूप से अस्वीकार किया जा सकता है)। इसका मतलब है कि भारत चाहे तो पूरी तरह कानूनी आधार पर शेख हसीना के प्रत्यर्पण को रोक सकता है।

अगर भारत मना करे तो बांग्लादेश के कूटनीतिक विकल्प

यदि भारत शेख हसीना के प्रत्यर्पण से इनकार करता है, तो बांग्लादेश कूटनीतिक दबाव डाल सकता है। वह SAARC, OIC (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) और Commonwealth जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में शिकायत कर सकता है। इसके अतिरिक्त, इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भी उठाया जा सकता है। हालांकि, इस सूरत में भारत के पास भी मजबूत कानूनी सुरक्षा दीवारें हैं। इनमें मानवाधिकार शील्ड (Human Rights Shield), राजनीतिक उत्पीड़न खंड (Political Persecution Clause) और निष्पक्ष सुनवाई सिद्धांत (Fair Trial Doctrine) शामिल हैं। इन कानूनी प्रावधानों के चलते बांग्लादेश भारत को कानूनी रूप से बाध्य नहीं कर सकता कि वह शेख हसीना को उसके हवाले करे।

प्रत्यर्पण के भू-राजनीतिक परिणाम

शेख हसीना को बांग्लादेश को वापस सौंपने के फैसले के कई गंभीर भू-राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं। सबसे पहले, बांग्लादेश में भारत-विरोधी भावनाओं का बढ़ना तय है। हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों और सहानुभूति रखने वालों में भारत के खिलाफ भारी गुस्सा पैदा हो सकता है, जिससे दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं। दूसरा, विपक्ष और दूसरे समूह इस घटना का इस्तेमाल यह दावा करने के लिए कर सकते हैं कि भारत अपने पड़ोसी देशों की आंतरिक राजनीति और सत्ता परिवर्तन में सीधे तौर पर दखल देता है। तीसरा, सुरक्षा और राजनीतिक खतरा बढ़ सकता है। अवामी लीग की तरफ से हिंसक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं, और भारत पर 'एक पूर्व प्रधानमंत्री को सौंपने'। का आरोप लगाया जाएगा, जिससे क्षेत्र में भारत की छवि और सुरक्षा पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

प्रत्यर्पण से इनकार के परिणाम

दूसरी ओर, शेख हसीना को वापस नहीं सौंपने के भी अपने परिणाम होंगे। इस निर्णय से दोनों देशों के बीच व्यापार, सीमा पार सहयोग और आर्थिक रिश्तों पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे व्यापार की रफ्तार धीमी हो सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी अभियानों में बांग्लादेश से मिलने वाला सहयोग भी प्रभावित हो सकता है। हालांकि, सबसे बड़ा भू-राजनीतिक जोखिम बांग्लादेश का चीन की तरफ झुकाव है और अगर भारत सहयोग नहीं करता है, तो बांग्लादेश चीन के करीब जा सकता है, जो भारत के रणनीतिक हितों के खिलाफ होगा और क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ाएगा। यह स्थिति भारत के लिए एक जटिल भू-राजनीतिक पहेली है, जिसमें उसे अपनी लॉन्ग टर्म स्ट्रैटेजी और सुरक्षा हितों को संतुलित करना होगा, चाहे वह कोई भी फैसला ले।

भारत के कूटनीतिक मार्ग

भारतीय विदेश रणनीति विशेषज्ञों के मुताबिक, इस स्थिति में भारत के पास 3 संभावित विकल्प हो सकते हैं। पहला, 'साइलेंट असाइलम मॉडल' (Silent Asylum Model) है, जिसमें भारत शेख हसीना को शरण देना जारी रखेगा और प्रत्यर्पण पर चुप्पी साधे रहेगा। मामले को 'अभी समीक्षा में' कहकर प्रक्रिया को लंबित रखा जा सकता है। दूसरा विकल्प 'मानवाधिकार शील्ड मॉडल' (Human Rights Shield Model) है, जिसमें भारत साफ तौर पर कहेगा कि मौत की सज़ा या राजनीतिक बदला होने के कारण प्रत्यर्पण संभव नहीं है। तीसरा विकल्प 'सशर्त प्रत्यर्पण' (Conditional Extradition) है, जिसमें भारत यह शर्त रख सकता है कि 'फांसी हटाओ और निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय ट्रायल दो, तभी प्रत्यर्पण संभव है। ' इन तीनों तरीकों में एक बात सामान्य है: हसीना की ज़िंदगी की डोर दिल्ली की कूटनीतिक रणनीति से जुड़ी है और ढाका में फैसला हो चुका है, लेकिन शेख हसीना की ज़िंदगी अब अदालत नहीं, भारत की विदेश नीति तय करेगी। क्या भारत सिद्धांत चुनेगा, या पड़ोसी से रिश्ते और क्या राजनीतिक शरण कूटनीतिक आग बन जाएगी? अगला अध्याय अभी लिखा जाना बाकी है।