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- 03-Sep-2025 07:25 AM IST
Chinese Navy: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नया भू-राजनीतिक तूफान खड़ा हो रहा है। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती नौसेना, चीन, और समुद्री ताकत का दशकों पुराना बादशाह, अमेरिका, अब आमने-सामने हैं। चीन की नौसेना का अभूतपूर्व विस्तार अमेरिका को सीधी चुनौती दे रहा है। सवाल यह है कि क्या यह टकराव केवल युद्धपोतों तक सीमित रहेगा, या हिंद-प्रशांत की राजनीति में बड़ा भूचाल लाएगा? और अगर ये दोनों महाशक्तियां टकराईं, तो भारत और अन्य इंडो-पैसिफिक देशों पर इसका क्या असर होगा? आइए, इस नौसैनिक दौड़ की पूरी कहानी और इसके भारत पर प्रभाव को समझें।
डालियान शिपयार्ड: चीनी नौसैनिक महत्वाकांक्षा का केंद्र
पीले सागर के तट पर बसा डालियान शहर, जहां का सुवोयुवान पारーク पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, अब चीन की नौसैनिक ताकत का प्रतीक बन गया है। डालियान के विशाल शिपयार्ड्स में हर महीने नए युद्धपोत और कमर्शियल जहाज बन रहे हैं। लंदन के इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के विशेषज्ञ निक चाइल्ड्स के अनुसार, “चीन की शिपबिल्डिंग क्षमता अमेरिका से 200 गुना ज्यादा है। इसका पैमाना अविश्वसनीय है।” यह स्पष्ट करता है कि चीन न केवल संख्या में, बल्कि गति और तकनीक में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
वैश्विक व्यापार पर चीनी पकड़
चीन की समुद्री ताकत सिर्फ सैन्य जहाजों तक सीमित नहीं है। उसने वैश्विक व्यापार पर भी मजबूत पकड़ बना ली है। 2025 में दुनिया के 60% से अधिक जहाजों के निर्माण के ऑर्डर चीन के शिपयार्ड्स को मिले हैं, जिससे वह विश्व का सबसे बड़ा शिपबिल्डिंग हब बन गया है। विश्व के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से 7 चीन में हैं, जो वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला की रीढ़ हैं। यह आर्थिक और रणनीतिक बढ़त चीन को समुद्री मार्गों पर अपनी शर्तें थोपने की ताकत देती है।
चीनी नौसेना का विस्तार: रफ्तार और ताकत
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना खड़ी कर दी है। 2010 में चीन के पास 220 युद्धपोत थे, जो 2024 तक बढ़कर 370 से अधिक हो गए। अमेरिकी रक्षा विभाग का अनुमान है कि अगले दस साल में यह संख्या 475 तक पहुंच सकती है। चीन के पास अब तीन एयरक्राफ्ट कैरियर—लियाओनिंग, शानदोंग और फुजियान—हैं, जिसमें फुजियान पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है।
चीन की नौसेना न केवल जहाजों की संख्या बढ़ा रही है, बल्कि उन्नत मिसाइल सिस्टम, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस युद्धपोतों को भी शामिल कर रही है। Type 055 डेस्ट्रॉयर, जिसे दुनिया के सबसे घातक युद्धपोतों में गिना जाता है, अब चीनी नौसेना की शान है। PLA नेवी के रियर एडमिरल लुओ युआन ने कहा, “चीन को अपने समुद्री हितों की रक्षा के लिए सबसे ताकतवर नौसेना चाहिए।”
अमेरिका बनाम चीन: तुलना और टकराव
अमेरिका अभी भी तकनीक और अनुभव में आगे है, खासतौर पर अपने 11 सुपरकैरियर्स के साथ, जो किसी भी अन्य देश के पास नहीं हैं। लेकिन चीन की बढ़ती संख्या और आक्रामक कूटनीति ने अमेरिका को चिंता में डाल दिया है। 2025 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, “हम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे। चीन की एकतरफा कार्रवाइयां स्वीकार्य नहीं हैं।”
हाल ही में दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी और चीनी युद्धपोत आमने-सामने आए, जहां रेडियो पर तीखी बातचीत वायरल हुई। अमेरिका अपने ‘फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन’ के जरिए चीन के दावों को चुनौती दे रहा है, जबकि चीन इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मानता है।
2010 से अब तक: चीन का नौसैनिक विकास और विवाद
पिछले 15 सालों में चीन ने हर साल औसतन 10-12 नए युद्धपोत लॉन्च किए हैं। 2016 में दक्षिण चीन सागर पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने चीन के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसे चीन ने मानने से इनकार कर दिया। 2023-24 में चीन ने पैरासेल और स्प्रैटली द्वीपों के आसपास अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई, जिससे फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया के साथ कई टकराव हुए। मई 2025 में चीन ने फिलीपींस के सप्लाई बोट्स पर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई।
इंडो-पैसिफिक और भारत पर प्रभाव
हिंद-प्रशांत क्षेत्र अब वैश्विक भू-राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। इस क्षेत्र से हर साल 50% से अधिक वैश्विक व्यापार गुजरता है, जिसमें भारत का भी बड़ा हिस्सा है। चीन की आक्रामकता ने जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और भारत को सतर्क कर दिया है। पूर्व भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा, “हिंद महासागर में भारत की मौजूदगी और ताकत, चीन की हरकतों पर नजर रखने के लिए पर्याप्त है, लेकिन हमें सतर्क रहना होगा।”
भारत की रणनीति और क्वाड की भूमिका
भारत ने अपनी नौसेना को आधुनिक बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। 2024 में INS विक्रांत के कमीशन के बाद भारत के पास अब दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। P-8I मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट, स्कॉर्पीन-क्लास सबमरीन और ब्रह्मोस मिसाइलों ने भारतीय नौसेना की ताकत
चीन, अमेरिका और भारत की भूमिका
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लहरें अब केवल पानी की नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक ताकत की भी उठ रही हैं। एक तरफ चीन, जिसकी नौसेना दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है, और दूसरी तरफ अमेरिका, जो दशकों से समुद्री वर्चस्व का प्रतीक रहा है। यह नौसैनिक दौड़ केवल जहाजों की संख्या या तकनीक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक शक्ति संतुलन और हिंद-प्रशांत की भविष्य की राजनीति को परिभाषित कर रही है। इस टकराव का असर भारत और अन्य इंडो-पैसिफिक देशों पर क्या होगा? आइए, इस समुद्री जंग की कहानी और इसके भारत के लिए मायने समझें।
चीन की समुद्री महत्वाकांक्षा: डालियान से वैश्विक दबदबे तक
चीन का डालियान शहर, अपने विशाल शिपयार्ड्स के लिए जाना जाता है, आज उसकी नौसैनिक महत्वाकांक्षा का केंद्र बन चुका है। ये शिपयार्ड्स न केवल युद्धपोतों, बल्कि वैश्विक व्यापार के लिए कमर्शियल जहाजों का भी निर्माण कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की शिपबिल्डिंग क्षमता अमेरिका से कहीं आगे है, जिससे वह न केवल सैन्य, बल्कि आर्थिक रूप से भी समुद्री मार्गों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। 2025 में, वैश्विक जहाज निर्माण का 60% से अधिक हिस्सा चीन के पास है, और दुनिया के सबसे व्यस्त 10 बंदरगाहों में से 7 उसके नियंत्रण में हैं। यह आर्थिक और रणनीतिक शक्ति चीन को वैश्विक समुद्री नियमों को प्रभावित करने की ताकत देती है।
चीनी नौसेना: संख्या और तकनीक का संगम
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने न केवल दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बनाई है, बल्कि इसे उन्नत तकनीक से भी लैस किया है। 2010 में 220 युद्धपोतों से शुरूआत कर, 2024 तक यह संख्या 370 से अधिक हो गई है, और अगले दशक में इसके 475 तक पहुंचने की संभावना है। चीन के पास अब तीन एयरक्राफ्ट कैरियर हैं—लियाओनिंग, शानदोंग और फुजियान—जो स्वदेशी तकनीक का प्रतीक है। Type 055 डेस्ट्रॉयर जैसे अत्याधुनिक युद्धपोत, ड्रोन, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस जहाज चीनी नौसेना को घातक बना रहे हैं।
अमेरिका: अनुभव और तकनीक का दम
अमेरिका के पास 11 सुपरकैरियर्स हैं, जो किसी भी देश से ज्यादा हैं, और उसकी तकनीकी श्रेष्ठता व वैश्विक अनुभव उसे अभी भी आगे रखते हैं। फिर भी, चीन की आक्रामक रणनीति और तेज विस्तार ने अमेरिका को सतर्क कर दिया है। दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी ‘फ्रीडम ऑफ नेविगेशन’ अभियान और चीनी युद्धपोतों के साथ तनावपूर्ण मुलाकातें इस टकराव को और गहरा रही हैं। 2025 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्पष्ट किया कि अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत में मुक्त नेविगेशन सुनिश्चित करेगा।
दक्षिण चीन सागर: तनाव का केंद्र
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता ने क्षेत्रीय और वैश्विक तनाव को बढ़ाया है। 2016 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को ठुकराकर चीन ने पैरासेल और स्प्रैटली द्वीपों पर अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई। 2025 में फिलीपींस के जहाजों पर वाटर कैनन के इस्तेमाल ने चीन की आक्रामकता को उजागर किया, जिसकी वैश्विक निंदा हुई। ये घटनाएं न केवल क्षेत्रीय देशों, बल्कि वैश्विक व्यापार के लिए भी चिंता का विषय हैं, क्योंकि हिंद-प्रशांत से 50% से अधिक वैश्विक व्यापार गुजरता है।
भारत की रणनीति और क्वाड की भूमिका
भारत, हिंद-प्रशांत का एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी, अपनी नौसेना को मजबूत कर रहा है। INS विक्रांत और INS विक्रमादित्य जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर्स, P-8I विमान, और ब्रह्मोस मिसाइलों ने भारत की समुद्री ताकत को बढ़ाया है। क्वाड (भारत, अमेरिका, जievingपान, ऑस्ट्रेलिया) गठबंधन के जरिए भारत चीन की आक्रामकता का मुकाबला कर रहा है। 2025 में मालाबार नौसैनिक अभ्यास ने क्वाड की एकजुटता का संदेश दिया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “भारत किसी भी बाहरी दबाव में नहीं झुकेगा। हमारी नौसेना हर चुनौती के लिए तैयार है।”
भारत और इंडो-पैसिफिक पर प्रभाव
हिंद-प्रशांत में बढ़ता तनाव भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक चुनौतियां लाता है। भारत का वैश्विक व्यापार का बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र से होकर गुजरता है। चीन की बढ़ती मौजूदगी भारत के हिंद महासागर में प्रभाव को चुनौती दे सकती है। हालांकि, क्वाड और भारत की नौसैनिक आधुनिकीकरण रणनीति इसे मजबूत स्थिति में रखती है। भारत को सतर्क रहते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय प्रभाव को बनाए रखना होगा।
