देश / लॉकडाउन में कोरोना से ज्यादा इन बीमारियों से बढ़ा जान का खतरा, न करें अनदेखी

News18 : May 24, 2020, 05:17 PM
बेंगलुरु। कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रसार को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन (Lockdown) के कारण टीबी और हैजा जैसी बीमारियों की अनदेखी परेशानी का कारण हो सकती है। जन स्वास्थ्य क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने कहा है कि जितनी जिंदगियां इन प्रयासों से बचाई गई हैं, उतनी ही जान टीबी और हैजे की वजह से जा सकती हैं। इन बीमारियों (Diseases) से जान का खतरा बढ़ गया है।

हैदराबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर वी रमण धारा ने कहा कि तपेदिक, हैजा और कुपोषण जैसी गरीबी संबंधी बीमारियों से मौतों पर विचार करना ही होगा, जिनके लॉकडाउन जारी रहने के दौरान नजरअंदाज किए जाने की आशंका है। उन्होंने कहा कि इन बीमारियों से होने वाली मौत संभवत: लॉकडाउन के चलते बची जिंदगियों की उपलब्धि को बेअसर कर देंगी। हर किसी को इस महामारी को मानवों द्वारा पर्यवारण को पहुंचाए गए बेहिसाब नुकसान को लेकर प्रकृति प्रदत्त प्रतिक्रिया के रूप में देखना चाहिए, जिसके कारण जानवरों के प्राकृतिक वास छिन गए और परिणामस्वरूप इंसानों तथा जानवरों के बीच के संबंध खराब हो गए।

कुल मृत्यु दर अधिक महत्त्वपूर्ण

भारत में कोविड-19 स्थिति के अपने आकलन में रमण धारा ने पाया कि शनिवार शाम तक आए संक्रमण के 1,25,000 मामले साफ तौर पर मई के अंत तक अनुमानित 1,00,000 मामलों से ज्यादा हो गए हैं और इनका लगातार बढ़ना जारी है। मामलों के हिसाब से मृत्यु दर भले ही धीरे-धीरे कम हो रही हो लेकिन कुल मृत्यु दर अधिक महत्त्वपूर्ण है लेकिन उनका कहना है कि हो सकता है सही आंकड़ें सामने नहीं आ रहे हों क्योंकि इसकी संभावना है कि मौत के कुछ मामलों में कोविड-19 की जांच न की गई हो।

1918 के स्पैनिश फ्लू की तरह दूसरे दौर की आशंका

उन्होंने कहा कि भारत में बुजुर्गों की आबादी 10 प्रतिशत से कम है जिस कारण भी मृत्य दर कम हो सकती है। हालांकि मौत के कई मामलों में कोविड-19 की जांच नहीं किया जाना भी कम मृत्यु दर का कारण हो सकती है जैसे जो मौतें घर पर होती हैं उनमें जांच नहीं होती। उनके मुताबिक ज्यादातर मॉडल संक्रमण के मामलों में लगातार वृद्धि का अनुमान जताते हैं जिनमें देश में मामलों के शिखर पर पहुंचने के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। धारा ने कहा, “अगर मामलों में कमी देखी भी जाती है, तो भी हमें 1918 के स्पैनिश फ्लू की तरह दूसरे दौर की आशंका के लिए तैयार रहना चाहिए। वर्तमान में ऐसा कोई तरीका नहीं है जो बता सके कि ऐसा होगा ही।”

धारा ने भोपाल त्रासदी पर अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के सदस्य रहते हुए गैस के संपर्क में आए समुदाय पर दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों के अध्ययन को डिजाइन एवं प्रकाशित किया है। मास्क पहनने और सामाजिक दूरी के अलावा तत्काल और क्या उपाय किए जा सकते हैं, यह पूछने पर उन्होंने कहा, ‘चूंकि कोई भी टीका या प्रमाणित इलाज उपलपब्ध नहीं है इसलिए हमें केवल साफ-सफाई पर निर्भर रहना होगा।’ धारा ने कहा, ‘यह जरूरी है कि इन कदमों को सख्ती से लागू किया जाए।’ उन्होंने कहा कि आंशिक तौर पर लॉकडाउन हटाने पर हम पहले की तरह की अनुशासनहीनता देख रहे हैं। इससे संक्रमण का निश्चित तौर पर प्रसार होगा और हम पहले ही मामलों की संख्या में वृद्धि देख रहे हैं।

साथ ही उन्होंने कहा कि अस्पतालों को तत्काल आक्सीजन और वेंटीलेटर व आईसीयू बिस्तरों के साथ तैयार किया जाना चाहिए। भारत में कोविड-19 से मौतों को लेकर आकलन के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस बारे में अनुमान का कोई तरीका नहीं है , लेकिन हमे गंभीर मामले से निपटने के लिए अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को तैयार करना होगा।


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